सरकार ने भरोसा दिलाया है कि जल्द ही देश में कैशलेस मेडिक्लेम सुविधा को फिर से बहाल कर दिया जाएगा। सरकार की कोशिश है कि इस स्कीम को ज्यादा से ज्यादा तर्कसंगत बनाया जा सके ताकि बीमा कंपनियों को भी नुकसान न उठाना पड़े। सरकार का दावा है कि अभी मेडिक्लेम बीमाधारकों को चार महानगरों के 449 अस्पतालों में बिना नगद भुगतान (कैशलेस सुविधा) के इलाज की सुविधा बहाल की जा चुकी है। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री नमोनारायण मीणा ने सरकार की ओर से इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की कल राज्यसभा में जानकारी दी। वे सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनियों की ओर से कैशलेस चिकित्सा सुविधा को एकपक्षीय रूप से संशोधित किए जाने पर भाजपा के एसएस. अहलूवालिया के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा के बाद जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को कैशलेस इलाज की सुविधा से काफी घाटा हो रहा था। अस्पताल बीमा स्कीमों के जरिए इलाज कराने वाले लोगों से सामान्य से अधिक धन वसूल रहे हैं। एक ही बीमारी के लिए पॉलिसीधारकों और गैर-पॉलिसीधारकों से अलग-अलग फीस वसूली जा रही है। सीजेरियन ऑपरेशन के लिए पॉलिसीधारकों से 1.35 लाख रुपये तक वसूले जाते हैं। जबकि गैर पॉलिसीधारकों के लिए खर्च सिर्फ 50 हजार रुपये आता है। उन्होंने बताया कि बीमा कंपनियों ने इलाज की दरों पर सहमत होने के बाद दिल्ली, मुंबई, बेंगलूर और चेन्नई के अस्पतालों को शामिल करके एक अधिमान्य प्रदाता नेटवर्क (पीपीएन) शुरू किया है। मेडिक्लेम पॉलिसी के लगभग 50 प्रतिशत से अधिक बीमाधारक इन महानगरों में हैं। वर्तमान में इस नेटवर्क में 449 अस्पताल शामिल हैं, जबकि और अस्पतालों को इस नेटवर्क से जोड़ने के लिए बातचीत चल रही है। मीणा ने कहा कि जब तक मेडिक्लेम के तहत इलाज की फीस को तर्कसंगत नहीं बनाया जाएगा तब तक इससे संबंधित समस्याएं भी दूर नहीं होंगी। इससे पहले भाजपा के एसएस. अहलूवालिया ने इस मामले को उठाते हुए कहा कि मेडिक्लेम में कैशलेस चिकित्सा सुविधा बंद होने से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों से शिकायतें आ रही हैं। मेडिक्लेम का उद्देश्य जनता को समुचित इलाज उपलब्ध कराना था। इतने बड़े देश में इतने कम अस्पतालों की व्यवस्था क्या मायने रखती है(दैनिक जागरण,दिल्ली,18.8.2010)।
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