बुधवार, 11 अगस्त 2010

ये हैं आपके लिए खाने की नई गाइडलाइंस

कुछ भी खा लेने की आदत पेट तो भर सकती है, लेकिन इससे सेहत में भी सुधार होगा यह निश्चित नहीं है। भारतीयों की अनियंत्रित खाने की आदत को नियंत्रित करने के लिए आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) ने हाल ही में आरडीए (रिकमेंडेड डाइटरी एलाउंस) की नई गाइडलाइन जारी की है, जिसके अनुसार उम्र, लंबाई, वजन के साथ ही काम की भिन्नता के अनुसार प्रोटीन, कैल्शियम, अमीनो एसिड, विटामिन्स और एंजाइम्स अलग-अलग होने चाहिए।

काम के दौरान प्रत्येक घंटे में ऊर्जा की क्षति होती है, जिसके अगले एक घंटे के भीतर खोई ऊर्जा को पुन: प्राप्त करना भी जरूरी बताया गया है। काउंसिल द्वारा अब तक जारी किए गए डाइटरी एलाउंस में शारीरिक श्रम अधिक करने वाले लोगों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए पौष्टिक तत्वों को शामिल किया जाता रहा, लेकिन नया ड्राफ्ट कॉरपोरेट और मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले युवाओं के साथ ही गर्भवती महिलाओं की डाइट को भी ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।

कितनी ऊर्जा की जरूरत पारंपरिक और पाश्चात्य खाने की थाली ने खाने में पौष्टिकता को प्रभावित किया है, जिसका संतुलन बनाना जरूरी है, जूल और किलो कैलोरी से अब तक नापी जाने वाली खाने की ऊर्जा के लिए नया पैमाना पीएआर और पीएएल को भी माना गया है, जिसके अनुसार काम में प्रति मिनट के आधार पर इस्तेमाल होनी वाली ऊर्जा और उस काम में इस्तेमाल मेटाबॉलिज्म के आधार पर ऊर्जा की जरूरत का आंकड़ा निकाला जाता है।

एक मिनट के काम में प्रयोग होने वाली ऊर्जा शारीरिक क्रियाशीलता अनुपात = (फिजिकल एक्टिवटी रेशो) प्रति एक मिनट में खर्च होने वाली मेटाबॉलिज्म क्षमता सूत्र से प्राप्त इक्वेशन को पीएएल (फिजिकल एक्टिविटी लेवल) माना जाता है।

उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति आठ घंटे सोने में बिताता है तो (पीएआर-1) आठ घंटे नियमित और बिना ऊर्जा के काम में व्यतीत करता है तो पीएआर-2 तथा आठ घंटे नियमित काम में पीएआर-3 खर्च करता है तो व्यक्ति में ऊर्जा की जरूरत को इस आधार पर आंका जाएगा (8.1)+(8.2)+(8.7)=48 पीएआर प्रति घंटा जरूरी है।

बढ़ गए कुछ और पौष्टिक आहार आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूट्रिशियन, हैदराबाद के सहयोग से जारी किए गए डाइटरी एलाउंस में पहली बार माइक्रोन्यूट्रिंट, एंटीऑक्सिटेंड, इलेक्ट्रोलाइट और विटामिन ‘के’ की भूमिका को प्रमुखता दी गई है। एक दशक बाद किए गए डाइटरी एलाउंस में वर्ष 1990 के बाद बड़ा बदलाव किया है। विशेषज्ञों ने हालांकि कैल्शियम, आयरन, जिंक, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स आदि में परिवर्तन नहीं किया गया है। एफएओ, डब्ल्यूएचओ तथा यूएनओ के प्रस्तावों को ध्यान में रखते हुए खाने की थाली में माइक्रोन्यूट्रिंट, अघुलनशील अमीनो एसिड और प्रोटीन की जरूरत को एक बार फिर परिभाषित किया गया है।

शहरी क्षेत्र में बढ़ा वसा का सेवन इंडियन न्यूट्रिशियन मॉनिटरिंग सर्वेक्षण के अनुसार पिछले 10 में नियमित भोजन में वसा की मात्र में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में एक दिन में एक व्यक्ति के वसा का सेवन 25 साल पहले 6-22 ग्राम आंका गया था, हालिया आंकड़ों के अनुसार वसा सेवन की मात्र ग्रामीण क्षेत्र में केवल 10 फीसदी ही बढ़ी है, जबकि शहरी क्षेत्र में यह अनुपात 9-44 प्रति ग्राम प्रति व्यक्ति हो गया, जिसमें पूफा (पॉलिअनसैचुरेटेड फैटी एसिड) की उपलब्धता अधिक देखी गई है, जिसे एचडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल भी कहा गया है। नये मानक में कुल वसा की मात्र, व्यक्तिगत फैटी एसिड और नॉन ग्लिसराइड तत्वों को गर्भवती महिला, सामान्य वयस्क बालिका, कामकाजी युवक और नवजात शिशुओं के लिए कम से कम मात्र में निर्धारित किया गया है।

क्यों जरूरी है वसा का सेवन खाने की थाली में मौजूद वसा हमेशा ही हानिकारक नहीं होता, डाइटरी फैट (लिपिड) में ऐसे जरूरी फैटी एसिड होते हैं जो हमेशा कार्य करने और क्षतिग्रस्त सेल्स की टूट-फूट को दोबारा जोड़ने के लिए सहयोग करते हैं। काब्रोहाइड्रेड और प्रोटीन के तुलना में वसा के सेवन में 5 प्रति किलो कैलोरी और 16.2 ग्राम जूल ऊर्जा प्राप्त होती है, लेकिन विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जरूरत से अधिक वसा का सेवन ही रक्त में वसा की मात्र को बढ़ा देता है, जिसका असर कुछ ही समय में दिल पर दिखाई देने लगता है।

वसा के अन्य जरूरी कंपोनेंट ट्राइग्लीसराइड और ग्लाइकोलिपिड और मोनो साइग्लीसिरियस को माना जाता है, जिसकी मात्र विजिबल फैट (पैकेड रिफाइंड तेल) में उच्चतम तापमान में संघनित कर मिलाई जाती है। इसे सैचुरेटेड फैटी एसिड भी कहा जाता है। खाने में फैटी एसिड की मात्र एसएफए (सैचुरेटेड फैटी एसिड) 300 ग्राम एमजी/डी से अधिक ली जा रही है तो हरी सब्जियों और वसा सहित बीन्स की मात्र बढ़ा कर कोलेस्ट्रॉल की मात्र को संतुलित किया जा सकता है।

वसा रहित सेवन के लिए विशेषज्ञ चिकन की जगह मछली को अधिक महत्व देते हैं, जिसमें अपेक्षाकृत कम वसा होता है। वहीं ब्रांडेड कंपनियों के पैकिंग के खाने में टीएफए (ट्रांसफैटी एसिड) अधिक देखा गया, जिसका सेवन सीएचडी (क्रॉनिक हार्ट डिज़ीज़) को बढ़ाने में अधिक कारगर माना गया है। टीएफए के प्रभाव से बचने के लिए हाइड्रोजेनेटेड वैजिटेबल तेल (पीएचवीओ) को प्रयोग किया जा सकता है।

किस गतिविधि में चाहिए कितनी ऊर्जा 0-2 वर्ष तक के बच्चे से लेकर दूध पिलाने वाली महिला, गर्भवती महिला और 6-8 घंटे काम करने वाले व्यक्ति की हर गतिविधि में 1.24 से 3.33 पीएआर (फिजिकल एक्टिवटी रेशो) तक ऊर्जा खर्च होती है। ऊर्जा की होने वाली क्षति के एवज में पौष्टिक आहार का सेवन ही रोगप्रतिरोधक क्षमता को बरकरार रखता है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सामान्य व्यस्क बालिका के सापेक्ष 30 अतिरिक्त पीएआर की जरूरत होती है।

2-10 साल की उम्र में क्योंकि तेजी से मस्तिष्क का विकास होता है, इसलिए वयस्क के सापेक्ष इस उम्र में 20 अतिरिक्त पीएआर को प्रस्तावित किया गया है। जिसे माँ के दूध पौष्टिक आहार, हरी सब्जियां व एंटी ऑक्सिडेंट तत्वों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। साधारण खड़े होने में 1.20, बैठने में 1.70, कंप्यूटर पर काम करने में 7.6 तथा तीन किलोमीटर प्रति घंटा चलने के लिए 3.71 अतिरिक्त पीएआर की जरूरत बताई गई है।

कितना सोडियम पोटेशियम, मैगनिशियम व फारफोरस सोडियम पोटेशियम को नमक के रूप में जाना जाता है, जिसका अधिक सेवन उच्च रक्तचाप का कारक है तो कम सेवन रक्तचाप कम होने का भी कारण बन सकता है। नये डाइड चार्ट के अनुसार वयस्क महिला को 600 प्रतिएमजी, पुरुष को 600 प्रति एमजी तथा गर्भवती महिला को 1200 एमजी/डी फासफोरस का सेवन करना चाहिए, जबकि 1-3 साल तक बच्चे के लिए फासफोरस की यह मात्रा 750 एमजी बताई गई है। वहीं पुरुषों के लिए 340 एमजी केजीडीएल मैग्निशियम, महिलाओं के 310 व बच्चों के लिए 20 एमजी मैग्निशियम प्रति दिन बताया गया है। सोडियम पोटेशियम की मात्र पुरुषों के लिए क्रमश: 2092 व 3750 महिलाओं के लिए 1902 व 3225 तथा बच्चों के लिए 1005 व 1150 एमजी होनी चाहिए।

क्या कहते हैं हमारे विशेषज्ञ ‘शारीरिक श्रम के अनुसार हर व्यक्ति के खाने में जरूरी पौष्टिक तत्व का महत्व होता है, इसलिए एक डाइटरी चार्ट सभी के लिए मान्य नहीं हो सकता। आईसीएमआर की गाइडलाइन के अनुसार रेस्तरां व मल्टीनेशनल कंपनियों के खाने में भी बदलाव किया जाना चाहिए जहां टीएफए को जरूरत से अधिक इस्तेमाल किया जाता है। निश्चित रूप से बैलेंस डाइट में जंक फूड शामिल नहीं है तो इसका मतलब इनका सेहत पर सीधा बुरा असर पड़ता है।’ डॉ. बलबीर सिंह, कार्डियोलॉजिस्ट, मेदांता अस्पताल

‘खाने में जरूरी कैलोरी के अनुसार ही एंटी ऑक्सिडेंट की मात्र को भी शामिल किया जाना चाहिए, कुछ रेस्तरां इस संदर्भ में बेहतर प्रयास कर रहे हैं। इसके बावजूद, नियमित दिनचर्या में जगह बना चुके जंक फूड को हटाने के लिए सरकार को भी कुछ कदम उठाने चाहिए, जिससे नई गाइडलाइन का बेहतर को सही ढंग से लागू किया जा सके।’ डॉ. शिल्पा ठाकुर, डाइटिशियन, एशियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस

‘सबसे बड़ी चुनौती ट्रांसफैटी एसिड को नियंत्रित करने की ही है, हाल में किए गए सर्वेक्षण में बाहर खाने वालों के दिल की बीमारी में अहम कारण टीएफए को ही माना गया है। इस संदर्भ में सोसाइटी प्रयास कर रही है कि सभी रेस्तरां खाने में इस्तेमाल किए जाने वाले सैचुरेटेड तेल को सार्वजनिक करें। ’ डॉ. स्वाति भारद्वाज, अध्यक्ष इंडियन डायबिटिक फोरम

‘नई गाइडलाइन के लिए फूड इंडस्ट्री को भी संपर्क किया जा सकता है, जिसमें वयस्क और बच्चों के खाने में कैलोरी की मात्र को दोबारा जांचा जाएगा। इसके बावजूद, असंगठित खाद्य बाजार में नये मानकों को लागू करना निश्चित रूप से चुनौती होगा, जो अनहाइजीन तत्व और एचडीएल की मात्र को नियंत्रित नहीं करते।’ डॉ. शचि सोहल, डायटिशियन, एचओडी, बीएल कपूर अस्पताल(हिंदुस्तान,दिल्ली,10.8.2010)

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