हाल में आई खबर के मुताबिक वैज्ञानिकों ने एक ऐसा टीका बनाया है, जो चर्बी कम कर सकता है और इसके साथ-साथ यही टीका रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल के स्तर और यहां तक कि मधुमेह को भी नियंत्रित करने में सक्षम है। सुखद सा अहसास कराने वाला यह टीका ‘लिरागल्यूटाइड’ जल्दी ही बाजार में मिलने लगेगा। यह भूख कम करने वाले हार्मोन की तरह काम करता है।
वैज्ञानिकों ने इस टीके का सफल परीक्षण मोटापे के शिकार 550 लोगों पर किया था, जिससे यह बात साबित हुई। वैसे 1975 में देश में जब नियमित टीकाकरण कार्यक्रम लांच किया गया था, उस समय बच्चों को लगने वाले केवल पांच टीकों को ही नियमित टीकाकरण में शामिल किया गया था। आज विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए बाजार में 24 से अधिक वैक्सीन उपलब्ध हैं, जिसका दायरा बच्चों से बढ़कर महिलाओं व वयस्कों तक भी पहुंच गया है। 30 प्रतिशत वैक्सीन पर स्वास्थ्य मंत्रलय का कोई नियंत्रण नहीं। ऐसे में जरूरी है कि सरकारी योजना में शामिल वैक्सीन के अलावा अगर कोई वैक्सीन लगवाई जा रही है तो वह पूरी तरह सुरक्षित हो। हाल ही में सरवाइकल कैंसर से बचाव के लिए आंध्र प्रदेश में हृयूमन पैपीलोमा वैक्सीन से दस लड़कियों की मृत्यु की घटना ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को और भी सजग कर दिया है। क्या है नियमित टीकाकरण
किसी भी बीमारी के वायरस के प्रति शरीर में रक्षा कवच बनाने के लिए इम्यूनाइजेशन किया जाता है। यूआईपी (यूनिवर्स इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम) के तहत बच्चों की छह प्रमुख बीमारियों को वीपीडी (वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीज़) के तहत रखा गया है, जिसका टीकाकरण जन्म लेने के बाद 16 साल की उम्र तक किया जाता है। दिल्ली सहित कुछ राज्यों द्वारा हेपेटाइटिस बी को भी नियमित टीकाकरण योजना में शामिल किया गया है। बीसीजी, डिप्थीरिया (डीपीटी), खसरा, हेपेटाइटिस बी, ओरल पोलियो, टिटनेस टॉक्साइड के अलावा तीन चरणों में बूस्टर वैक्सीनेशन को भी स्वास्थ्य योजनाओं में शामिल किया गया है। बच्चे के जन्म से पूर्व गर्भवती महिला को भी 2 माह के गर्भ के बाद नौ महीने तक प्रत्येक महीने के अंतराल में आयरन बूस्टर व टिटनेस का इंजेक्शन भी जरूरी है। बढ़ा वैक्सीन का दायरा
बीमारियों का असर बढ़ा तो वैक्सीनेशन का दायरा भी बढ़ाया गया। हालांकि सरकारी योजनाओं में अब भी केवल बच्चों के नियमित टीकाकरण को ही रूटीन इम्यूनाजेशन माना जाता है। बावजूद इसके स्वाइन फ्लू, हीमोफीलिया, टाइफाइड, रूबेला, रोटावायरस, ह्ययूमन पैपीलोमा वायरस, कालरा, जैपनीज इंसेफलाइटिस, वैक्सीग्रिप, चिकनपॉक्स आदि के वैक्सीन विभिन्न फार्मा कंपनियों ने लांच किए हैं, जिन्हें किसी भी आयु वर्ग का व्यक्ति किसी भी उम्र में नियमित डोज के साथ लगवा सकता है। स्वाइन फ्लू : एएच1एन1 वायरस के खिलाफ शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता बनाने के लिए इसी वर्ष बाजार में स्वाइन फ्लू वैक्सीन लांच की गई है। ओरल रूप में उपलब्ध यह वैक्सीन सूअर से मनुष्य में हस्तांतरित होने वाले वायरस एच1एन1 के खिलाफ रक्षा कवच बनाने में कारगर मानी गई है। हालांकि वायरस के बदलते स्वरूप को देखते हुए सभी चिकित्सक वैक्सीन के सफल प्रयोग से सहमत नहीं हैं। सर्वाइकल कैंसर : महिलाओं के सरवाइकल कैंसर के कारक हृयूमन पैपीलोमा वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए एचपीवी वैक्सीन का सफल प्रयोग हुआ, जिसे 14 से 40 वर्ष की किसी भी लड़की या महिला को लगाया जा सकता है। कुछ राज्यों में वैक्सीन के प्रयोग के लिए ट्रायल हो रहे हैं पर सरकारी योजना में फिलहाल एचपीवी शामिल नहीं है। हीमोफीलिया : जन्मजात रक्त विकृति को हीमोफीलिया कहा जाता है, जिसमें बच्चे के शरीर में जन्म से ही रक्त के फैक्टर एच की कमी होती है। फैक्टर एच रक्त को जमने में कारगर माना जाता है। इसके अनुपस्थिति बच्चे में किसी भी रक्तस्राव का कारण बनती है। ऐसे में फैक्टर एच देकर बच्चे को सामान्य किया जाता है। रूबेला : महिलाओं में बार-बार गर्भपात के कारण माने जाने वाले रूबेला वायरस से बचने के लिए रूबेला वैक्सीन को लांच किया गया। गर्भपात से बचने के लिए रूबेला वैक्सीन 28 से 30 साल की उम्र से पहले लगना अधिक कारगर माना गया है। वैक्सीन के बेहतर प्रभाव के लिए इसे 20 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान में संरक्षित होना चाहिए, हालांकि वैक्सीन जमे न यह भी जरूरी है। फ्लू वैक्सीन : हर वर्ष सर्दियों से पहले बाजार में वैक्सीग्रिप नामक फ्लू वैक्सीन की मांग बढ़ जाती है जो बदलते मौसम में वायरस के प्रभाव से शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बनाती है। हर वर्ष फ्लू वायरस बदलता है, इसलिए वैक्सीग्रिप को वायरस के स्टेन के आधार पर तैयार किया जाता है। निमोनिया : पचास की उम्र के बाद निमोनिया वैक्सीन को दिल को सुरक्षित रखने के लिए विशेष रूप से अपनाया जाता है। निमोनिया वैक्सीन को किसी भी अन्य वैक्सीन के साथ सामान्य रूप से लगाया जा सकता है। वैक्सीन बाजार में 300 रुपए से 500 रुपए की कीमत में उपलब्ध है। जैपनीज इंसेफलाइटिस : मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित राज्यों गोरखपुर, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर में जेई को सरकारी योजना में शामिल किया गया है, जबकि बाजार में जैपनीज इंसेफलाइटिस का टीका 7000 से 8000 रुपए की कीमत पर उपलब्ध है।
आईएमए दिल्ली के डॉ. अनिल बंसल द्वारा दी गई जानकारी क्या है जरूरी एहतियात
बीमारियों से सुरक्षा के लिए वैक्सीन के फायदे भी हैं तो वैक्सीनेशन के दौरान बरती गई हल्की सी लापरवाही उसका उल्टा असर डाल सकती है। हाल में डब्लूएचओ द्वारा वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के लिए गाइडलाइन जारी की है। - वैक्सीन के प्रयोग से पहले उसके तरल पदार्थ को देखना जरूरी, यदि किसी भी तरह का रंग या कण निचली तली पर जम रहे हैं तो वैक्सीन नहीं लगानी चाहिए।
- वैक्सीन को इंजेक्शन में भरने से पहले पूरी तरह आश्वस्त हो जाएं कि सिरिंज में हवा नहीं होनी चाहिए।
- वैक्सीन से पहले त्वचा पर एल्कोहल लगाने के 30 सेकेंड बाद इंजेक्शन लगाना चाहिए, इससे एल्कोहल के अंदर जाने की संभावना नहीं रहती।
- आईएम और एसी इंजेक्शन लगाने से पहले त्वचा का चयन विशेष रूप से सावधानी से करना चाहिए।
- इंजेक्शन लगाते समय नर्स या लैब तकनीशियन का हाथ 45 से 90 डिग्री के कोण के एंगल में होना चाहिए।
- डेल्टॉयड मांसपेशी में वैक्सीन देते समय ध्यान रहे कि इंजेक्शन की वॉल्यूम 0.5 एमएल से अधिक व वयस्क के लिए 1.0 एमएल से अधिक न हो।
- 45 डिग्री के इंजेक्शन के लिए 16 एमएम से अधिक लंबाई की सुई नहीं होनी चाहिए।
डॉ. बी.बी. चाहना, महाराजा अग्रसेन अस्पताल, जनकपुरी कितने तरह के वैक्सीनेशन
- डिप्थीरिया, टिटनेस, हेपेटाइटिस ए व बी, हीमोफीलिया व निमोनिया वैक्सीन को इंट्रामस्कुलरी वैक्सीन कहा जाता है, जिन्हें शरीर की मांसपेशियों में लगाया जाता है। डेल्टॉयड मसल्स को सभी आयु वर्ग के लोगों को इंजेक्शन लगाने के लिए सुरक्षित माना गया है।
- केवल बीसीजी वैक्सीन को इंट्राडरमेली वैक्सीन कहा जाता है, जिन्हें त्वचा के किसी भी हिस्से में लगाया जा सकता है।
- खसरा, चिकनपॉक्स और आईपीवी (इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन) को सबक्वाटेनसली वैक्सीन कहा जाता है, जो त्वचा के ऐसे हिस्से में लगाई जाती हैं, जहां से वैक्सीन का द्रव्य आसानी से फैल जाए।
- स्वाइन फ्लू, ओरल पोलियो व रोटावायरस वैक्सीन ओरल रूप में दी जाती है। कब कौन सा टीका
बीसीजी : जन्म लेने के तुरंत बाद
ओरल पोलियो : जन्म लेने के बाद पांच साल की उम्र तक
डीपीटी : जन्म से 6 हफ्ते, 10 हफ्ते, 14 हफ्ते व 9 से 12 महीने के अंतराल में
हेपेटाइटिस बी : 6 हफ्ते से 14 हफ्ते के बीच में तीन चरण का टीकाकरण
खसरा : नौ महीने पर विटामिन ए की खुराक के साथ
पावर बूस्टर
डीपीटी व ओरल पोलियो : 16 महीने से 24 महीने के अंतराल में
डीटी : पांच साल की उम्र तक कभी भी
टिटनेस टॉक्साइड :10 साल की उम्र से 16 साल तक प्रत्येक तीन माह में
विटामिन ए : 9, 18, 24, व 36 महीने तक जरूरी(निशि भाट,हिंदुस्तान,दिल्ली,27.7.2010)
"ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आप फलां तरीक़े से स्वस्थ हैं और वो अमुक तरीक़े से। आप या तो स्वस्थ हैं या बीमार । बीमारियां पचास तरह की होती हैं;स्वास्थ्य एक ही प्रकार का होता है"- ओशो
सोमवार, 16 अगस्त 2010
सेहत दुरुस्त रखने में कारगर टीके
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कोई ऐसा टिका है जो शरद पवार जैसे रोग से इस देश और समाज को बचा सके ...? अरे यार लोग यहाँ इनके वजह से भूखे मर रहें हैं ऐसे में बिमारियों का टिका वो भी 8000 रुपया में ...? इस देश और समाज को इस वक्त ऐसे भ्रष्ट मंत्रियों से बचाने वाले टीके की सख्त जरूरत है ...
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