सोमवार, 16 अगस्त 2010

टेढ़े-मेढ़े दांत

दोस्तो, अगर दांत सीधे न होकर टेढ़े-मेढ़े हों तो इसका नकारात्मक असर तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व पर पड़ता है। ऐसे में कई बच्चे संकोची बन जाते हैं। कई बार ऐसे बच्चे दोस्तों के बीच में हंसी के पात्र भी बन जाते हैं, जिसका नकारात्मक प्रभाव बच्चों के दिमाग पर पड़ता है।

डॉ. अमूल्य चड्ढा के अनुसार बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत जमने की कई वजहें हैं। कई बच्चों को बचपन से ही अंगूठा चूसने की आदत होती है, अगर यह आदत छह साल की उम्र के बाद भी लगातार रहती है तो बच्चों के दांत टेढ़े मेढ़े जम जाते हैं। जो बच्चे छोटी उम्र से अपने माता-पिता से दूर रहते हैं, उनको भी ज्यादा समय तक असुरक्षा की भावना होने से, अंगूठा चूसने की आदत हो जाती है। दूसरा, दूध के दांत यदि समय से पूर्व या देर से गिरते हैं तो भी सेकेंडरी अर्थात स्थायी दांत टेढ़े-मेढ़े जमते हैं। इसके अलावा अगर माता-पिता के दांत टेढ़े-मेढ़े जमे हों तो भी बच्चों के दांत टेढ़े-मेढ़े जमने की संभावना रहती है। टेढ़े-मेढ़े दांतों की सफाई अच्छी तरह से नहीं हो पाती है। इसकी वजह से जिंजिवाइटिस पेरियोडोंटाइटिस अर्थात् आम भाषा में दांतों का पायरिया रोग हो जाता है। इसमें दांतों की हड्डी गल जाने से दांत ढीले होकर गिर जाते हैं। ऐसे में ऑथरेडोंटिक ट्रीटमेंट के द्वारा दांतों में फिक्स्ड ब्रेसिज या स्पेशल तार लगाकर उन्हें सीधा किया जाता है। यह पूरी तरह से दर्दरहित प्रक्रिया है। इन ब्रेसिज को दस से बारह महीनों के लिए फिक्स कर दिया जाता है।

डॉ. चड्ढा हिदायत देते हुए बताते हैं कि टेढ़े-मेढ़े दांतों की समस्या को हल्के से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि आगे जाकर ऐसे बच्चों को एंकरिंग, एयर होस्टेस तथा मॉडलिंग जैसे प्रोफेशन में जाने में बड़ी दिक्कत होती है। ऐसे बच्चों में हीन भावना उत्पन्न होने की संभावना भी अधिक रहती है। इलाज के दौरान ब्रेसिज लगने के बाद बच्चों को चिपचिपी चीजें, जैसे बर्गर, पित्जा, चॉकलेट, टॉफी तथा पास्ता आदि खाने से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए। जितना जल्दी हो सके इस समस्या से निजात पाने के लिए अपने दांतों के डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए।

(इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली के डेंटल सलाहकार एवं मैक्सिलोफेशियल सर्जन प्रोफेसर डॉ. अमूल्य चड्ढा से अनिल कुमार की बातचीत पर आधारित,हिंदुस्तान,दिल्ली,12.8.2010))

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