महाराष्ट्र सरकार ने सुझाव दिया है कि अविवाहित माताओं द्वारा बच्चों के परित्याग को अपराध न माना जाए। इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोद लेने के मामलों में संभावित कदाचार को रोकने में मदद मिलेगी। बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को साफ-सुधरा बनाने के लिए इस सप्ताह राज्य सरकार ने एक कार्ययोजना का मसौदा तैयार कर बांबे उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया है। सरकार ने भारतीय दंड संहिता में संशोधन का सुझाव दिया है। इस मसौदे में बच्चा परित्याग को अपराध न घोषित करने का सुझाव दिया गया है। राज्य सरकार ने अदालत से कहा है कि यह प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया गया है। बांबे उच्च न्यायालय, पुणे स्थित अदावत फाउंडेशन द्वारा गोद लेने वाली एजेंसी प्रीति मंदिर के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई कर रही है। प्रीति मंदिर के खिलाफ कथित रूप से बच्चों के बेचने का आरोप है। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी। मसौदे में कहा गया है, वर्तमान में अविवाहित माताओं द्वारा बच्चों का परित्याग एक अपराध है। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से इसे अपराध की श्रेणी से हटाने का निवेदन किया है। इससे उन माताओं को भी अपने बच्चे वापस लेने में सुविधा होगी जो किन्हीं कार्यक्रमों और स्कीमों के माध्यम से अपने बच्चों को क्रच या डे-केयर सेंटर में छोड़ देती हैं। चूंकि यह वर्तमान में एक अपराध है इसलिए कुछ मौकों पर महिलाएं अपने बच्चे को सुनसान स्थानों पर छोड़ जाती हैं, जहां वे पैसे के लिए गोद लेने वाले रैकेट के हत्थे चढ़ जाते हैं। आईपीसी की धारा 317 के तहत माता-पिता अथवा संरक्षकों द्वारा 12 वर्ष के बच्चों का परित्याग एक अपराध है और इसमें दोषी पाए जाने वाले को सात वर्षो की कैद हो सकती है। गोद लेने की प्रक्रिया को और सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार ने गोद लेने वाले बच्चों का विवरण सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध कराने का भी सुझाव दिया है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,29.8.2010)।
बहुत सम्बेदनसील मुद्दा है... दुनिया भर में केतना दम्पति ऐसा हैं जो मेडिकली फिट हैं लेकिन संतान सुख से वंचित हैं, दुसरे तरफ केतना ऐसा बिन ब्याही माँ लोग है जो अपना बच्चा को कूड़ा में फेंककर गायब हो जाती हैं. देखिए ई कानून केतना सहायक हो सकता है!! राधारमण जी धन्यवाद, ई बिसयके चुनाव के लिए!!
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