सोमवार, 30 अगस्त 2010

एड्स पीड़ित महिलाओं से भेदभाव पर मिले कड़ा दंड

सबसे खतरनाक संक्रामक बीमारी एड्स ने अब पूरे देश में पांव पसार लिए हैं। इसकी चपेट में आने वाली महिलाओं व बच्चों की स्थिति इस बीमारी से पीडि़त पुरुषों से ज्यादा खराब है। उन्हें न सिर्फ सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है, बल्कि उनके लिए किए जाने वाले सरकारी सुधार कार्यक्रम भी नाकाफी हैं। एचआईवी/एड्स पीडि़त महिलाओं की स्थिति का अध्ययन करने वाली संसदीय समिति ने इस बारे में जल्द से जल्द विधेयक संसद में पेश करने और उसमें एचआईवी/एड्स पीडि़तों के साथ भेदभाव करने वालों के खिलाफ कड़े दंड का प्रावधान करने को कहा है। संसद की महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी समिति ने एचआईवी/एड्स पीडि़त महिलाओं को सामाजिक भेदभाव से बचाने के लिए कुछ कड़ी सिफारिशें की हैं। अपनी सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश में कहा है कि एचआईवी एड्स से पीडि़त महिलाओं के साथ यदि कोई व्यक्ति या संस्था भेदभाव करता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए। समिति ने इस बारे में सरकार द्वारा लाए जाने वाले विधेयक में देरी करने पर भी गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि इसमें देरी नहीं करनी चाहिए। एचआईवी/एड्स पीडि़त महिलाओं को बदनामी व भेदभाव से बचाने के लिए यह कदम उठाना जरूरी है। इस विधेयक में विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण, विवाह से पहले एचआईवी से जुड़े आईडीयू, एचआईवी पीडि़त गर्भवती महिलाओं का कल्याण व महिलाओं का उत्पीड़न रोकने संबंधी प्रावधान है किए जाने हैं। गौरतलब है कि साल 2008-09 में इस बीमारी ने देश के उन दो केंद्र शासित प्रदेशों को भी अपने चपेट में ले लिया है जो इससे पहले तक इस बीमारी से बचे हुए थे। इनमें अंडमान द्वीप समूह व दादरा नगर हवेली शामिल हैं, जहां इस अवधि में क्रमश: 35 व 73 मामले सामने आए हैं। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है। समिति ने कहा है कि इस बीमारी से पीडि़त महिलाओं की स्थिति पीडि़त पुरुषों से ज्यादा खराब है। समिति ने इस बारे में उनके उपचार, बचाव व उनको सामाजिक रूप से पीडि़त होने से बचाने के लिए दर्जन भर से ज्यादा सिफारिशें की है। इनमें एचआईवी ग्रस्त सभी बच्चों को एआरटी (एंटी रेट्रोवायरल उपचार) उपलब्ध कराना और सामुदायिक देखभाल केंद्रों की संख्या बढ़ाना शामिल है। 2008 के अनुसार देश में एचआईवी ग्रस्त बच्चों की संख्या 94 हजार है, जिनमें एआरटी केवल 19 हजार 182 बच्चों को दिया जा रहा है।(रामनारायण श्रीवास्तव,दैनिक जागरण,दिल्ली,30.8.2010)।

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