सोमवार, 23 अगस्त 2010

बाल मृत्युदर के सबसे ज्यादा मामले भारत में

विकास के पथ पर अग्रसर दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के करीब 20 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। तथ्य यह है कि इस मामले में दुर्भाग्यवश हम विश्र्व में प्रथम स्थान पर हैं। चिंता में डालने वाली बात यह भी है कि देश की 80 प्रतिशत आबादी बढ़ती बाल मृत्युदर से अनजान है। बाल अधिकार संगठनों के समूह ग्लोबल मूवमेंट फॉर चिल्ड्रन (जीएमसी) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में यह सच्चाई सामने आई है। सर्वे कहता है कि भारत में 10 में से आठ लोगों ने बाल मृत्युदर को गंभीरता से नहीं लिया। यह सर्वे पांच महानगरों के मध्यमवर्गीय लोगों के बीच कराया गया। यूनीसेफ के अनुसार, भारत में पांच साल से कम उम्र में मरने वाले बच्चों के 90 प्रतिशत मामले निमोनिया और डायरिया जैसी आसान रोकथाम वाली बीमरियों के होते हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था ने यह भी कहा कि भारत में दुनिया के कुपोषित बच्चों की एक तिहाई संख्या बसती है और तीन साल से कम उम्र के 46 प्रतिशत बच्चों का वजन औसत से कम है। न्यूयार्क में अगले महीने होने वाले संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन से पहले जागरूकता लाने के लिए जीएमसी ने यह सर्वेक्षण कराया है। गैर सरकारी संगठन चाहते हैं कि शिखर वार्ता में बाल इस मसले पर सरकार महत्वपूर्ण कदम उठाए(दैनिक जागरण,दिल्ली,23.8.2010)।

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