रविवार, 1 अगस्त 2010

सुश्रुत के 'बच्चों' को मिला सर्जरी का यह कैसा हक!

देश के एक कोर्ट ने कहा है कि आयुर्वेदिक, यूनानी और सिद्धा के डॉक्टरों को सर्जरी का हक है लेकिन सवाल है कि वे इस काम में आने वाली बेहोशी की दवा, घाव सुखाने के लिए एंटी बायटिक्स और आईवी फ्लूइड कहां से लाएंगे ? गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले पर पूरे देश में रोचक बहस शुरू हो गई है । वैसे यह फैसला इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी खिलाफ है, इसलिए हाईकोर्ट का यह फैसला बेमानी भी है । प्राचीन आयुर्वेद डॉक्टर सुश्रुत अपनी सर्जरी के लिए ही विख्यात थे । उन्हें दुनिया का पहला प्लास्टिक सर्जन होने का गौरव प्राप्त है लेकिन सुश्रुत के "बच्चों" यानी आज के आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सर्जरी का हक नहीं है । यह अधिकार केवल उन एलोपैथी डॉक्टरों को ही है जिन्हें दो दिन पहले स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने आयुर्वेद के सामने "बच्चा" कहा है । इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना करार दिया है । नकली डॉक्टरों के खिलाफ अपने अभियान को लेकर पूरे देश में चर्चित दिल्ली मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ. अनिल बंसल ने कहा कि हाईकोर्ट ने गफलत में यह फैसला दे दिया है । १९९८ में सुप्रीम कोर्ट ने १२ साल की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है कि केवल स्टेट मेडिकल रजिस्टर में पंजीकृत डॉक्टर ही सर्जरी कर सकते हैं । चूंकि स्टेट मेडिकल रजिस्टर में केवल एलोपैथ डॉक्टरों का ही पंजीकरण होता है, इसलिए वही सर्जरी कर सकते हैं । सुप्रीम कोर्ट के सामने आयुर्वेदिक व अन्य भारतीय पद्धति के डॉक्टरों का तर्क था कि चूंकि वे एलोपैथी की पढ़ाई पढ़ते हैं, इसलिए उन्हें भी सर्जरी का हक होना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कहा था कि आप चाहें पढ़ें कुछ भी, आप सर्जरी नहीं कर सकते । हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि आयुर्वेद सहित अन्य भारतीय पद्धति के डॉक्टरों को बेशक सर्जरी करने का हक है लेकिन वे सर्जरी में काम आने वाली बेहोशी की दवा, एंटी बायटिक एवं आईवी फ्लूइड कहां से लाएंगे ? वे बेहोश करने व सर्जरी का घाव सुखाने की आयुर्वेदिक दवा का इजाद करने के बाद ही सर्जरी कर सकेंगे। बहरहाल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने तमिननाडु के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है(धनंजय,नई दुनिया,दिल्ली,1.8.2010)।

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