रविवार, 15 अगस्त 2010

उत्तरप्रदेश में अंग प्रत्यारोपण में अब न हो सकेगी गड़बड़ी

मानव अंग प्रत्यारोपण में अब कानून की अनदेखी न हो सकेगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने एसजीपीजीआई में अंग प्रत्यारोपण के मामलों पर नजर रखने के लिए एक कमेटी गठित की है। गौरतलब है कि लखनऊ के एसजीपीजीआई में किडनी से लेकर लीवर प्रत्यारोपण की सुविधा है। मानव अंग प्रत्यारोपण कानून के तहत परिवारिक सदस्य के अलावा कोई भी व्यक्ति अपना अंग किसी दूसरे को यूं ही नहीं दे सकता है। किसी दूसरे के अंग के प्रत्यारोपण के मामलों के लिए मंडलायुक्तों की अध्यक्षता में कमेटी है। ऐसे में इस तरह के मामले प्रकाश में आते रहते हैं किलोग, किसी दूसरे को भी परिवार का सदस्य बताकर अंग प्रत्यारोपित करा रहे है। ऐसे मामले पीजीआई में भी सामने आने पर काफी हो-हल्ला मचा तो सरकार ने पीजीआई में अंग प्रत्यारोपण के मामलों के लिए एक कमेटी गठित कर दी है। पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक डा. एके भट्ट की अध्यक्षता में पहली बार गठित की गई हास्पिटल बेस्ड अथईजेशन कमेटी में राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सचिव या उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि, कार्डियोलोजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. सतेन्द्र कुमार तिवारी, इन्डो-सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. अमित अग्रवाल, सेवानिवृत प्रशासनिक सेवा के वीडी सिंह, न्यायिक सेवा के सेवानिवृत एसएमए आब्दी, निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य या उनके नामित प्रतिनिधि सदस्य बनाए गए हैं। समिति के संयोजक पीजीआई के हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डा. हेमचंद्र होंगे। उक्त के संबंध में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा कुमार अरविन्द सिंह देव द्वारा जारी आदेश के मुताबिक कमेटी का गठन मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) नियम के तहत किया गया है। डा. भट्ट ने बताया एसजीपीजीआई, देश का एक ऐसा मेडिकल संस्थान है जहां सर्वाधिक किडनी प्रत्यारोपित की होती हैं। सालाना 150 से ज्यादा किडनी प्रत्यारोपण के मामले निपटाए जाते हैं(दैनिक जागरण,लखनऊ,15.8.2010)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. जानकारी का आभार.


    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

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  2. उत्तरप्रदेश में कुछ भी तब तक कामयाब नहीं हो सकता जब तक यहां के हर क्षेत्र में राजनैतिक हस्तक्षेप बना रहेगा. बिहार से सीख लेनी होगी इसे अगर यह राज्य सफल होना चाहता है. यहां के किसी DM या SP से बात करें, पता चलता है कि इस राज्य में किसी का भी कार्यकाल कुछ ही महीनों का होता है उस पर भी नेतागिरी की धांस फंसी रहती है चारों तरफ. कमेटिओं व बोर्डों की किसने देखी है वे तो यूं ही पंगु रहते हैं.

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