मंगलवार, 24 अगस्त 2010

स्वास्थ्य विज्ञान और संस्कार

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़े रीति रिवाज, संस्कार और त्योहार इस तरह बनाए गए हैं, जिसका सीधा संबंध शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है। यह कहना है हार्ट केयर फाउंडेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष डा. केके अग्रवाल का। फिक्की में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान डा. अग्रवाल ने कहा कि वैदिक युग से ही संख्या का विशिष्ट महत्व रहा है। भगवद्गीता के 18 अध्याय की तरह आज के काउंसलिंग में भी कम से कम 18 सत्र की जरूरत होती है। डाक्टर अग्रवाल ने कहा कि ओsम् से ऐसा वैज्ञानिक उच्चारण होता है, जिससे शरीर में इंसूलिन उत्पन्न होता है। हमारे यहां किसी की मौत के बाद संस्कार के लिए 13 दिन निश्चित किए गए हैं। ठीक इसी प्रकार पोस्ट-ट्रोमैटिक स्ट्रेस डिसआर्डर के इलाज में तेरह दिन लगते हैं। नवरात्र के नौ दिन की तरह शारीरिक और मानसिक डीटॉक्स में भी 9 दिन का समय लगता है। डाक्टर अग्रवाल ने कहा कि प्राचीन युग में हार्ट अटैक न के बराबर होता था, क्योंकि रीति रिवाज के पालन में लोग इससे बच जाते थे। लेकिन वर्तमान में लाइफ स्टाइल के कारण कुछ मेटाबॉलिक असामान्य हो जाता है। इससे आर्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि हमारे रीति रिवाज में मौसम का भी उसी तरह ख्याल रखा गया है, जितना मेडिकल की दृष्टि से यह जरूरी होता है। हमारे यहां परंपरा है कि सावन में शादी नहीं होगी और पत्ते वाली सब्जी नहीं खाई जाएगी, क्योंकि सावन में हमारा दिमाग अस्थिर होता है। ऐसे में इसका सेवन असंतुलन पैदा कर सकता है। साथ ही इन दिनों लोगों की पाचन क्षमता भी कमजोर होती है। वहीं, संक्रमण का भी भय रहता है। इसलिए ऐसे मौसम में शादी जैसे समारोह नहीं होते हैं(दैनिक जागरण,दिल्ली,24.8.2010)।

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