
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो प्रकृति ने मानव शरीर की रचना ही इस प्रकार की है कि हम और आप दिन भर काम करें और रात भर आराम करें ताकि रात भर अपनी खोयी ऊर्जा पुन: अर्जित कर अगले दिन तरोताजा होकर फिर से दैनिक कामों में जुट सकें। परंतु मिलों या फैक्टि्रयों में जबसे कार्य करने की रात्रि की शिफ्ट प्रणाली आरंभ हुई है तभी से यह देखा गया है कि कामगार हमेशा थका हुआ, चिड़चिड़ा और निढाल रहता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन दर्शाते हैं कि रात की शिफ्ट में काम करते रहने से व्यक्ति की चिड़चिड़ाहट, थकान व मानसिक परेशानियों के साथ ही उसकी न केवल पाचन शक्ति प्रभावित होती है,अपितु वह सुरक्षा की दृष्टि से भी लापरवाह हो जाता है और उसकी कार्यक्षमता भी कम हो जाती है।
हमारे शरीर की सभी प्रक्रियाएं हमारी जैवीय घड़ी की सुईयों के साथ चलती हैं। यह जैवीय घड़ी धरती के अपनी धुरी पर घूमने वाले चक्र के साथ-साथ चलती है और हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप सोता-जागता है। प्राकृतिक समय-चक्र के अनुसार चलने वाली हमारी जैवीय घड़ी ही हमारे शरीर का तापमान बढ़ाने-घटाने, हार्मोन उत्पन्न करने और दिन या रात के हिसाब से शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने का काम करती है। एक बार हमारे शरीर की जैवीय-घड़ी यदि रात्रि-शिफ्ट जैसे अप्राकृतिक कार्यो से बिगड़ गई तो शरीर की गाड़ी कभी भी पटरी से नीचे उतर सकती है। इसका सबसे बुरा असर पड़ता है हमारी नींद पर, क्योंकि रात में जब आपके चारों तरफ गतिविधियों का शोर मच रहा हो तो न तो आप देर तक सो पाते हैं, न ही गहरी नींद ले पाते हैं। इसीलिए रात्रि-शिफ्ट का कामगार कभी भी खुद को तरोताजा नहीं महसूस करता और हमेशा थका-थका रहता है। इससे वह अपने काम के दौरान हैरान-परेशान व चिड़चिड़ा रहता है। रात्रि के समय मानसिक रूप से चुस्त न रह पाने का असर उसकी कार्य-क्षमता पर भी दिखाई पड़ता है। त्रासदी यह है कि इस प्रकार कार्य करने से होने वाली थकान के कारण दुर्घटना से बचने की शारीरिक व मानसिक क्षमता भी क्षीण होती चली जाती है। इसी कारण रात में दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है। रात में होने वाली दुर्घटनाओं के नतीजे भी दिन की दुर्घटना की अपेक्षा कहीं अधिक गंभीर व घातक होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि रात्रि में कार्य करने वाले श्रमिक दिन में काम करने वालों की तुलना में 12.5 प्रतिशत अधिक पाचनतंत्र या पेट की बीमारियों के शिकार होते हैं। पेट के फोड़ों यानी अल्सर, कब्ज आदि के साथ ही रात्रि-शिफ्ट स्नायु-तंत्र को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। देर रात में कार्य करने वाले श्रमिक का पाचनतंत्र इसीलिए गड़बड़ा जाता है, क्योंकि वह उस समय भोजन ग्रहण करता है जबकि उसका पचनतंत्र लगभग सो रहा होता है। यह शरीर की जैवीय घड़ी की सरकाडियन रिदम यानी जैवीय लय द्वारा निर्देशित होता है। जहां इस जैवीय लय का सामंजस्य बिगड़ा, वहीं पाचनतंत्र भी बिगड़ जाता है।
हमारे शरीर की जैवीय लयों या तरंगों के माध्यम से ही हमारा मस्तिष्क हमें न केवल खाने, अपितु सोने व अन्य शारीरिक गतिविधियों के संचालन का आदेश देता है। उदाहरण के लिए,इन्हीं शारीरिक तरंगों के कारण हमारे पेट की नसें हर 90 मिनट में सिकुड़ने लगती हैं। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि हमारी आंतरिक शारीरिक तरंगें मस्तिष्क के एक विशेष भाग से निर्देशित होती हैं। इन्हीं तरंगों के कारण शरीर का तापमान सुबह के 4 से 6 बजे के बीच सबसे कम होता है। यह हमारी मानसिक चुस्ती तथा कार्यक्षमता को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। इस समय के दौरान हमारी शारीरिक-मानसिक क्षमता सबसे कम होती है। रात्रि-शिफ्ट जैसी अप्राकृतिक व असामान्य प्रक्रिया के लगातार जारी रहने से हमारी शारीरिक घड़ी का लय-ताल बिगड़ जाता है और उसके द्वारा दिये गये निर्देश अस्त-व्यस्त हो जाते हैं, क्योंकि मस्तिष्क के उस हिस्से का सामंजस्य डगमगा जाता है, जो शारीरिक तरंगों का प्रबंधन करता है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है जेट विमानों द्वारा देशों के सफर के बाद की थकान, क्योंकि जिस देश से आप चलते हैं वहां दिन था और जहां आप पहुंचे हैं वहां भी दिन है। इस कारण आपने रात देखी ही नहीं और इसी नींद को पूरा करने में आपको दो-तीन दिन लग जाते हैं, क्योंकि दिन और रात का पूरा चक्र ही बदल जाता है।
लाख बातों की एक बात यह है कि दिन की जगह रात भर काम करने का असर काम करने वाले के तन, मन और पारिवारिक जीवन पर भी पड़ता है, क्योंकि वह रात के समय परिवार के साथ रहता ही नहीं, जिस कारण कामगार रात में जगे रहने के लिए विभिन्न दवाइयों का सेवन करता है और कुछ समय बाद ये दवाइयां भी असर करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। अंततोगत्वा इसका समाधान यही है कि हम सबको एकजुट होकर नाइट शिफ्ट की इस कुप्रथा को रोकना होगा, जो न केवल आदमी को मशीन बनाने पर तुली है, बल्कि पूर्णरूपेण अमानवीय व असंवेदनशील है(राजीव गुप्ता,दैनिक जागरण,30.8.2010)।
रात दिन एक समान वाली उक्ति भूलानी पड़ेगी भाया....
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