क्लास 9 में पढ़ने वाले मुदित ने स्कूल खुलने के बाद से अब तक एक पूरे दिन भी क्लासेस अटैंड नहीं की। वजह स्कूल जाते ही बैचेनी होना, उल्टी होना, एंजाइटी होना है लेकिन घर आते ही वह नेट पर बैठता है और ठीक हो जाता है। तकरीबन १0 से १२ घंटे कम्प्यूटर पर बिताने वाला मुदित एक दिन भी बिना चैटिंग के नहीं रह पाता।
क्लास 7 की सुहाना ने भी बीमारी के बहाने करके स्कूल जाना अवाइड किया। पैरेंट्स कामकाजी थे इसलिए उन्होने समय की कमी के कारण ध्यान नहीं दिया। सुहाना के एग्जाम्स के समय जब उसकी मम्मी ने छुट्टी ली तो पता चला कि उसे 1 घंटे के लिए भी कम्प्यूटर से दूर करना कितना मुश्किल है।
दिनोंदिन सुहाना में बढ़ते सोशल फोबिया, नेट पर चिपके रहने और उसमें बढ़ते चिढ़चिढ़ेपन के चलते मनोवैज्ञानिक से मिलीं तो पता चला वह डिप्रेशन की शिकार है।
इंटरनेट की लत के शिकार किशोरों में डिप्रेशन का खतरा दोगुने से ज्यादा होता है। सिडनी के स्कूल ऑफ मेडिसिन, चीन के शिक्षा मंत्रालय और गुआंगजोउ यूनिवर्सिटी की किशोरों पर हुई रिसर्च में यह बात सामने आई है। रिसर्च में निकले इस नतीजे को जब सिटी भास्कर ने राजधानी के किशोरों पर जांचना चाहा तो यहां यह बात सच साबित हुई।
ये ऐसे मामले हैं जिनमें किशोर इंटरनेट पर चैटिंग या किसी भी तरह से कम्प्यूटर उपयोग करने की लत के कारण एंजाइटी या डिप्रशेन के शिकार हो गए। राजधानी में ऐसे मामलों में पिछले २ सालों में दो से तीन गुना इजाफा हुआ है।
मनोचिकित्सक डॉ.रूमा भट्टाचार्य कहती हैं कि करीब 2 पहले तक 2 से 3 महीने में ऐसा एकाध केस आता था जबकि अब हफ्ते में कम से कम एक मामला तो ऐसा आ ही जाता है। हालत यह है कि नेट की लत के कारण बच्चे डिप्रेशन में आकर अपनी सोशल लाइफ खोते जा रहे हैं। इससे उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ रहा है।
क्यों होता है डिप्रेशन
लगातार कम्प्यूटर पर बैठने से बच्च उसमें डूबा रहता है, जैसे ही वह उससे बाहर आता है सोशलफोबिया के कारण उसमें बेचैनी बढ़ जाती है। इसके अलावा घंटों कम्प्यूटर पर बिताने से उसकी पढ़ाई और दूसरी गतिविधियां प्रभावित होती हैं।
समय पर होमवर्क या दूसरे काम पूरे न कर पाने से घबराहट या चिढ़चिढ़ाहट उपजती है। ऐसे में वह डिप्रेशन में चला जाता है। मनोचिकित्सक डॉ. आरएन साहू कहते हैं कि वैसे भी कम्प्यूटर पर लंबे समय तक काम करने से दिमाग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है
डिप्रेस्ड बच्चें के लिए ज्यादा है खतरा
डिप्रेशन के शिकार बच्चों में तो नेट की यह लत और भी भारी पड़ती है। ये बच्चे पहले से ही खुद को दुनिया से अलग कर लेते हैं ऐसे में नेट उनके इस अकेलेपन को और बढ़ा देता है। इसके बाद तो ये बच्चे घर में भी अपने कमरे से तक बाहर निकलना पसंद नहीं करते। डॉ.भट्टाचार्य के मुताबिक ऐसे ही बच्चे बाद में कई बार आत्महत्या की कोशिश जैसे कदम भी उठा लेते हैं।
पैरेंट्स जिम्मेदार
कामकाजी पैरेंट्स बच्चों को असुरक्षा के चलते कोचिंग-स्कूल के अलावा घर से न निकलने को प्रेरित करते हैं। ऐसे में नेट कनेक्शन की बच्चों की जिद आसानी से मान लेते हैं और देख-रेख के अभाव में बच्चे लगातार इससे जुड़ते ही जाते हैं। पैरेंन्ट्स को चाहिए कि बच्चे डेढ़ से दो घंटे बाहर खेलते हुए सोशल लाइफ में जरूर निकालें(श्रद्धा जैन,दैनिक भास्कर,भोपाल,11.8.2010)।
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