बुधवार, 11 अगस्त 2010

पालन-पोषण की कलाःश्री श्री रविशंकर

माता-पिता को बच्चों को बहुमुखी प्रवृत्तियों से परिचित कराना आवश्यक है। जैसे विज्ञान और कला। सबसे महत्वपूर्ण यह कि बच्चों की दृष्टि विशाल हो, साथ ही उनकी जे गहरी हों। प्रत्येक बालक इस धरती पर कुछ निश्चित प्रकृति और मूलभूत सोच के साथ आया है लेकिन झूठी आशा जगाना ठीक नहीं है। यह सुनिश्चित कर ले कि आपके बालक की दाये और बाये मस्तिष्क की गतिविधियां ठीक हैं। विद्या की देवी सरस्वती की अवधारणा विश्व में अनूठी है। उनके एक हाथ मे संगीत का यंत्र वीणा और दूसरे मे ज्ञान का चिह्न पुस्तक है। पुस्तक बायें मस्तिष्क और संगीत दाये मस्तिष्क की प्रवृत्तियां दर्शाता है। जप माला भी है जो कि ध्यान मग्नता के पहलू पर प्रकाश डालती है। इस प्रकार गान, ज्ञान और ध्यान मिलकर सभी पहलुओं से शिक्षा को पूर्ण करते है। एक अभिभावक के रूप मे विभिन्न आयु वर्ग के अनुसार बच्चे के व्यवहार का सूक्ष्म अध्ययन कर आपको महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। जो बच्चे हीन भावना से ग्रस्त होते है वे अपने से छोटों से ज्यादा और अपने से बों से कम बातचीत करते है। जो अहंभावी होते है, वे बों के साथ ज्यादा रहते है। आपको कुछ इस प्रकार के खेल सृजित करने होंगे और उनके साथ इस प्रकार व्यवहार करना होगा कि वे तीनों आयु वर्ग के लोगों के साथ थोी बहुत बातचीत करने लगे और आप उनका व्यक्तित्व केंद्रित गुणवान सरल और सभी ग्रंथियों से मुक्त हो। बच्चा आकर आपसे शिकायत करता है तो आप क्या करके हैं? उसकी नकारात्मकता को बढ़ावा देते है या उसे सकारात्मकता मे ढाल देते है? यदि वे किसी के बारे मे नकारात्मक बात करता है तो आपको सकारात्मकता दर्पण बनना होगा। स्वस्थ बालक मे तीन प्रकार के विश्वास होते हैज् पहला दिव्यता मे, दूसरा लोगों मे और तीसरा लोगों की अच्छाई मे। ये तीन प्रकार के विश्वास ही एक बालक को गुणवान और प्रतिभाशाली बनाने के लिए आवश्यक तत्व है। यदि आप उनसे यही कहते रहेगे कि यहां सभी झूठे या धोखेबाज है तो उनका लोगों और समाज से विश्वास उठजाता है। और इसका असर हर रोज की उनकी बातचीत पर पड़ता है यदि उनका लोगों से, समाज से और लोगों की अच्छाई से विश्वास हट जाता है तो वे चाहे कितने भी योग्य हों, उनकी सारी योग्यता किसी काम नहीं आती और वे असफल ही रहते है। विश्वास के वातावरण से बच्चे बुद्धिमान होते है। लेकिन यदि नकारात्मकता, परेशानी, उदासी और क्रोध का वातावरण बनता है तो वे बे होकर यही सब लौटाते है। हर रोज जब आप काम से लौटें तो उनके साथ खेले या हंसे। जहां तक हो सके, सभी एक साथ बैठकर खाना खाएं। एक रविवार उन्हे बाहर ले जाएं और उनको कुछ चीजें दें, उन्हे सबसे गरीब बच्चों मे बांटने को कहे या फिर साल मे एक-दो बार कच्ची बस्ती मे ले जाकर उनसे कोई सेवा कार्य करने के लिए कहे। थोड़ी-बहुत धार्मिकता, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य उन पर गहरा प्रभाव उत्पन्न करते है। संशोधन से पता चला है कि ध्यान और प्राणायाम उनकी योग्यता बाते है। वे शांत, सतर्क, सजग और समझने की योग्यता को बेहतर कर पाते हैं(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,11.8.2010)।

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