सोमवार, 9 अगस्त 2010

एएफपी और फिजियोथैरेपी

एएफपी (एक्यूट फ्लेसिड पैरालिसिस) एक ऐसी बीमारी है, जिसके लक्षण पोलियो की तरह है, लेकिन पोलियो नही है। डॉक्टरों के अनुसार पोलियो का केस एएफपी हो सकता है। लेकिन एएफपी पोलियो नही। अक्सर लोग इन दोनों बीमारियों के अंतर को नही समझ पाते है। एएफपी बीमारी भी 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों को होती है। हालांकि यह बीमारी फिजियोथेरेपी से ठीक हो सकती है। एएफपी का वायरस बच्चों के नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है। इसके शुरुआती लक्षण बच्चों में बुखार आना, शरीर के किसी अंग में कमजोरी महसूस होना और कमजोरी कई दिनों तक महसूस होना आदि है। इस बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) काफी सतर्क है। डब्ल्यूएचओ के सर्वे के मुताबिक जिले में जनवरी ’08 से अप्रैल ’10 तक कुल 420 मामले एएफपी के सामने आ चुके है, जिसमें 2008 में 170 मामले, 2009 में 209 मामले व 2010 में अप्रैल तक 41 मामले शामिल है। डब्ल्यूएचओ की जिला पोलियो प्रभारी डा. आभा सिंह ने बताया कि एएफपी एक गं भीर बीमारी है, जिससे लड़ना उनकी प्राथमिकता है। जिला पोलियो प्रभारी डा. पीके सिं ह ने बताया कि एएफपी के वायरस सामान्य तौर पर झुग्गी-झोपड़ी व गंदगी में पनपते है और मल-मूत्र के माध्यम से ये वायरस बच्चों में पहुंचते है। हालांकि इस बीमारी से बच्चे की मौत नही होती है। उन्हों ने बताया कि अगर एएफपी का मामला सामने आता है तो 48 घं टे के अंदर संबं धित बच्चे के मलमूत्र सैम्पल लेना जरूरी होता है। इसके बाद 24 घंटे के अं दर इसकी जांच हो जानी चाहिए। क्योंकि 24 घंटे बाद मल-मूत्र में मौजूद वायरस का असर खत्म हो जाता है

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