नई तकनीक कस्टम मेड जिग्स ने नी रिप्लेसमेंट (घुटना प्रत्यारोपण) सर्जरी में आनेवाली कई दिक्कतों को आसान बना दिया है। इससे न केवल सर्जरी के दौरान समय का बचाव होगा, बल्कि मरीज भी जल्द सामान्य हो जाता है और आसपास की हड्डियों में होने वाले खतरे भी कम हो जाएगी। करेंट कंसेप्ट इन ऑर्थोप्लास्टी विषय पर एम्स में चल रहे दो-दिवसीय सेमिनार में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन डा. राजेश मल्होत्रा ने बताया कि अब तक घुटने रिप्लेसमेंट करने के लिए फुल साइज का ज्वाइंट मंगाया जाता है और ऑपरेशन थिएटर में ही सर्जरी के वक्त उसे काट -छांट कर मरीज के साइज का बनाकर लगाया जाता है। ऐसे में ऑपरेशन में कई घंटे लग जाते हैं और ज्वाइंट का साइज परफेक्ट नहीं होने से आसपास की हड्डियों को भी नुकसान पहुंचाता है। इससे दोबारा रिप्लेसमेंट की नौबत आने तक आसपास की हड्डियां काफी ज्यादा घिस चुकी होती हैं और ऑपरेशन के लिए डोनेटेड बोन की ज्यादा जरूरत होती है। मगर नई तकनीक ने ये सारी दिक्कतें दूर कर दी हैं। डाक्टर का कहना है कि कस्टम मेड जिग्स घुटने के लिए उम्मीद की नई किरण है। इसमें मरीज के घुटने का एमआरआई स्कैन करके अमेरिका भेजा जाता है और उसके आधार पर नायलॉन की कटिंग करके ब्लॉक तैयार किया जाता है। यह इस्तेमाल के लिए पूरी तरह से तैयार होता है और सीधा इसे अलाइनमेंट के साथ फिट कर दिया जाता है। इसमें सर्जरी का खर्च 20-25 हजार रुपये बढ़ जाने की उम्मीद है। इस मौके पर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के महानिदेशक डा. वीएम कटोच ने बताया कि हड्डियों की बीमारियों के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से जल्द ही नेशनल बोन डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया जाएगा। इसके लिए आईसीएमआर ने प्रपोजल तैयार कर लिया है। हड्डियों की बीमारियों के बारे में ज्यादा रिसर्च करने और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की नई-नई तकनीक वाले मैटीरियल बनाने के लिए भारतीय कंपनियों को प्रमोट करने की भी जरूरत है। मगर ज्यादातर डाक्टरों की यह मानसिकता बन चुकी है कि यहां के प्रोडक्ट की गुणवत्ता अच्छी नहीं है(दैनिक जागरण,दिल्ली,23.8.2010)।
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