हेपेटइटिस-सी वायरस संक्रमण से निपटने का तरीका पूरे विश्व के लिए वर्ल्ड गैस्ट्रोइंट्रोलाजी एसोसिएशन ने तय कर दिया है। संगठन ने कहा है कि वायरस संक्रमण से प्रभावित व्यक्ति में कितना प्रभाव पड़ा यह जानने के लिए हेपेटाइटिस-सी वायरस आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) लेवल परीक्षण करने के बाद इलाज शुरू करना चाहिए। वायरस के किस प्रकार के जीनोम से व्यक्ति संक्रमित है,इसका भी परीक्षण करना चाहिए। जीनोम के आधार पर ही इलाज की दिशा तय की जानी चाहिए। संगठन के मुताबिक, हेपेटाइटिस-सी वायरस के 6 रूप हैं। इन्हें जीनोम के रूप में जाना जाता है। सबसे अधिक खतरनारक जीनोम-वन प्रकार का वायरस होता है। हेपेटाइटिस-सी वायरस से ग्रसित 70 प्रतिशत भारतीयों में जीनोम-2 व 3 प्रकार का वायरस होता है। इस जीनोम वाले वायरस से ग्रसित मरीज जल्दी ठीक हो जाते हैं। संगठन ने कहा है कि इस बीमारी से संक्रमित मरीजों को इलाज के इंटरफेरान एवं रिवावैरीन दवा देनी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि जिन मरीजो में जिन मरीजों में आरएनए वायरल लोड जितना अधिक होगा उसमें दवा से उतना ही कम रिस्पांस मिलेगा,हालांकि लीवर सिरोरिस व लीवर फाइब्रोसिस का वायरल लोड से कोई मतलब नहीं है। दवा मरीज में कितना फायदा कर रह है यह जानने के लिए समय-समय पर वायरल लोड परीक्षण कराते रहन चाहिए। भारत में हर साल दस हजार लोग इस वायरस से संक्रमित होते हैं(कुमार संजय,हिंदुस्तान,लखनऊ,22.8.2010)।
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