नए कानून के मुख्य बिंदु
*मां को अब बच्चे का अभिभावक नियुक्त किया जा सकेगा। अब तक केवल पिता को ही यह अधिकार था।
*पति से अलग रह रही महिला भी बच्चा गोद ले सकेगी
*बच्चा गोद देने के मामले में महिलाओं के लिए पति की स्वीकृति जरूरी होगी।
*तलाक का मुकदमा लड़ रही महिलाएं भी ले सकेंगी बच्चा गोद
बच्चों को गोद लेने के मामले में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिल गया है । संसद ने शनिवार को इस संबंध में व्यक्तिगत कानून (संशोधन) बिल, 2010 सर्वसम्मति से पारित कर दिया। इस कानून के बाद महिलाओं के लिए बच्चा गोद लेना आसान हो जाएगा। पहला संशोधन अभिभावक एवं बाल अधिनियम, 1860 में किया गया जो ईसाई , मुस्लिम, पारसी तथा यहूदियों पर लागू होता है । राज्यसभा ने यह संशोधन पहले ही पारित कर दिया था। नए प्रावधानों के अनुसार, यदि दंपती बच्चा गोद लेता है तो मां को उसका अभिभावक बनाया जा सकता है । अब तक सिर्फ पिता को ही गोद लिए गए बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक माना जाता था। लेकिन अब कोर्ट मां को भी बच्चे का अभिभावक नियुक्त कर सके गा। दूसरा संशोधन हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण कानून, 1956 में किया गया है । यह हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध पर लागू होगा। इसके संशोधन से विवाहित महिला को बच्चा गोद लेने या गोद देने की अड़चन समाप्त हो जाएगी। अब तक अविवाहित, तलाकशुदा तथा विधवा महिलाओं को बच्चा गोद लेने का अधिकार था। लेकिन यदि महिला पति से अलग रह रही है और उसका पति के साथ तलाक का लंबा मुकदमा चल रहा है तो उसे बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन अब ऐसी महिलाएं भी बच्चा गोद ले सकेंगी। इसके लिए उन्हें पति से पूर्व स्वीकृति लेनी होगी। हालांकि यदि पति मानसिक रूप से विक्षिप्त है या उसने या धर्म परिवर्तन कर लिया है, तो इस स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है । विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद संशोधित कानून लागू होने से मां को भी पिता के समान कानून अधिकार मिल जाएंगे। यदि गोद लिया हुआ बच्चा नाबालिग है तो मां उसकी संपत्ति और ट्रस्ट की मालिक भी होगी। कांग्रेस नेता गिरिजा व्यास ने इन कानूनों को ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे(हिंदुस्तान,दिल्ली,22.8.2010)।
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