बुधवार, 25 अगस्त 2010

पंचगव्य चिकित्सा

छत्तीसगढ़ के बालोद में, "स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ परिवार एवं समृद्ध राष्ट्र" को अपना मिशन बनाकर श्री महावीर गौशाला एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा कल कबीर दर्शन मंदिर शिकारीपारा में स्वयं के डाक्टर कैसे बनें? विषय पर पंचगव्य चिकित्सा प्रशिक्षण व परिचर्चा आयोजित की गई। प्रशिक्षक के रूप में मुंबई से,शिक्षाविद् शोधकर्ता एवं गौ-भक्त उत्तम भाई माहेश्वरी उपस्थित थे। उन्होंने गाय थेरेपी के माध्यम से प्रथम सत्र में बताया कि देशी गाय के दूध, दही, घी, गौ मूत्र एवं गोबर में वो सारी चमत्कारिक शक्तियां मौजूद हैं। जिससे हर तरह के रोगों का सफल इलाज संभव है। मात्र दो बूंद देशी घी नाक में डालते रहने से 90 से अधिक रोग ठीक हो जाते हैं जिसमें सइनस, एलर्जी, अस्थमा, सिर दर्द, माइग्रेन, आंखों की कमजोरी, बहरापन, कान बहना आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को कभी भी खड़े होकर पानी नहीं पीना चाहिए। इससे घुटने में दर्द होता है। गर्म दूध में शुद्ध घी डालकर पीने से कई रोग ठीक हो जाते हैं। रक्त चाप को सामान्य रखने के लिए देशी गाय की पीठ पर नियमित हाथ फेरने से आश्चर्यजनक लाभ होता है। गौमूत्र भी चमत्कारिक औषधि है। गोबर की धूपबत्ती एवं उसकी राख में कई गुण है। देशी शुद्ध घी दूध की मलाई से नहीं बल्कि दही की मलाई से बनाना चाहिए, वो भी मिक्सी से मथकर नहीं बल्कि मथनी या रई से मथना चाहिए, क्योंकि मथनी में कर्षण विधि द्वारा मक्खन बनता है जो बहुत लाभकारी है तथा मिक्सी में घर्षण पद्धति लागू होती है जिससे गुण कम हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि गाय हमारे प्राणों का रक्षण एवं पोषण करती है, इसलिए उसे हम मां कहते हैं। द्वितीय दिवस में चिकित्सा सत्र आयोजित था जिसमें लोगों ने श्री महेश्वरी से चिकित्सा परामर्श लिया। निकट भविष्य में श्री महेश्वरी की पुस्तक अपने डाक्टर कैसे बने? छपकर पाठकों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। आयोजन स्थल पर स्टाल लगाकर दवाइयां साहित्य एवं सीडी कैसेट भी उपलब्ध करवाए गए। भोजन के तुरंत बाद पीएं गर्म पानी द्वितीय सत्र में श्री महेश्वरी ने बताया कि आकाश और वायु से वात, अग्नि और जल से पित्त तथा जल और पृथ्वी से कफ का निर्माण होता है। शरीर में वात पित्त एवं कफ में संतुलन जरूरी है। 70 प्रतिशत रोग वात से, 20 प्रतिशत पित्त से एवं 10 प्रतिशत रोग कफ से होते हैं। गौ स्थल या गाय के पास शयन करने से क्षय रोग ठीक होता है। दो चम्मच गोबर भस्म एवं एक चम्मच हल्दी चूर्ण मिलाकर पानी में थोड़ा-थोड़ा डालें पानी शुद्ध रहेगा। व्यक्ति को पंखे की तेज हवा, कूलर एवं एसी के प्रयोग से बचना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद हमेशा गर्म पानी ही पीये। भोजन में शुद्ध घी का प्रयोग निरंतर करें यह वात का नाश करता है। वात मन से, पित्त बुद्धि से एवं कफ अनुशरण से संबंधित है। वृद्धों को वात से, युवाओं को पित्त से एवं बच्चों को कफ से बचना चाहिए। सुबह कफ, दोपहर में पित्त एवं रात्रि में वात की प्रधानता होती है। आमाशय में कफ, छोटी आंत में पित्त एवं बड़ी आंत में वात की प्रधानता रहती है। स्वस्थ्य शरीर का लक्षण है, पैर गरम, पेट नरम और सिर ठंडा होना चाहिए(दैनिक भास्कर,बालोद,25.8.2010)।

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