रसोईघर में अधिकतर रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले पदार्थ से वर्ष 1992 में ही एक गर्भ निरोधक तैयार कर चुका शिवशंकर पेटेंट मिल जाने के बावजूद धक्के खा रहा है। दरअसल उसे जानवरों पर इस दवा के परीक्षण की अनुमति नहीं मिल रही है। अनुमति पाने के लिए पिछले आठ सालों से स्वास्थ्य मंत्नालय से लेकर सांसदों तक के दरवाजे खटखटा रहा है पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
शिवशंकर का दावा है कि उसके द्वारा बनाए गए गर्भनिरोधक में 80 से 90 प्रतिशत तक विभिन्न तेल हैं । 10 से 14 प्रतिशत आयोडाइज्ड सोडियम क्लोराइड और 0.4 से 0.8 प्रतिशत कपूर है। उसने बताया कि गर्भनिरोधक दवा तैयार करने के बाद उसने 12 जुलाई 2002 को कंट्रोलर जनरल आफ पेटेंट डिजाइन एन्ड ट्रेंड से इसका पेटेंट लेने के लिए आवेदन किया था जो कि उसे 20 सालों के लिए पेटेंट मिला।
इन 20 सालों में से आठ साल इसी तरह स्वास्थ्य मंत्नालय और भारतीय आयुविज्ञान परिषद , आईसीएमआर, से मिन्नतें करते हुए गुजर चुके हैं लेकिन इस दवा के जानवरों तक पर परीक्षण की अनुमति नहीं मिल पाई है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,19.8.2010)।
अफसोस होता है ऐसी हालत देखकर.
जवाब देंहटाएंमेरा भारत ...........
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