कामनवेल्थ गेम्स के दौरान अपनी खासियत दुनिया के सामने पेश करने में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाजी मार ली है। केंद्र सरकार पारंपरिक चिकित्सा का गुणगान करने के लिए बस स्टॉप का सहारा ले रही है। खेल के दौरान विदेशी मेहमानों का ध्यान आकर्षित करने के लिए न सिर्फ चमकदार बोर्डों का इस्तेमाल किया गया है बल्कि गंभीर बीमारियों के इलाज में काम आने वाली जड़ी बूटियों के बारे में बताया गया है।
उत्तराखंड के कुमाउं के 4000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाली कुटकी की अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर कलेक्शन मात्र 320 टन है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कुटकी डेढ़ लाख रुपये प्रति टन के हिसाब से बेची जाती है। इसी तरह जटामानसी, सर्पगंधा, रक्त चंदन, थूअर, बहराकंद उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर के दुर्गम क्षेत्रों में पाए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन औषधियों की भारी मांग होने के कारण तस्करों की नजर लगी रहती है। यही कारण है कि कई देशों में भारतीय जड़ी बूटियों का चुपके से पेटेंट कराने का सिलसिला जारी है। इसलिए केंद्र सरकार आयुर्वेदिक, युनानी, सिद्धा और होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार पर विशेष ध्यान दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार राजधानी के सौ से ज्यादा बस स्टॉप पर यूनानी को आजमाएं और स्वाइन फ्लू का इलाज होम्योपैथिक से संभव के चमकदार पोस्टर लगाए गए हैं। इतना ही इन पोस्टरों के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि आयुर्वेदिक, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथिक में गंभीर से गंभीर बीमारियों का इलाज संभव है। इतना ही नहीं प्रमाण के तौर पर इलाज से पहले व इलाज के बाद की स्थिति की तस्वीर भी प्रमुखता से छापी गई है। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इससे न सिर्फ विदेशी प्रभावित होंगे बल्कि देश के कोने कोने से आने वाले लोग इससे रूबरू हो सकेंगे(अमर उजाला,दिल्ली,12.8.2010)।
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