दूध वह पौष्टिक पदार्थ है, जो मानव शरीर के लिए न सिर्फ जरूरी है, बल्कि उसे बीमारी से भी बचाए रखता है। रोजाना शुद्घ दूध पीकर शरीर को संतुलित रखा जा सकता है। दूध मानव शरीर की तेजस्विता, हड्डियों की शक्ति, दाँतों की सुरक्षा, रक्तचाप व वजन सामान्य बनाए रखता है। माँ के दूध का विकल्प अब तक दुनिया की किसी भी प्रयोगशाला में तैयार नहीं हो सका है।
बढ़ते बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं के आहार में यदि दूध शामिल है तो उनका संतुलित विकास संभव हो जाता है। दूध प्रकृति का एक ऐसा उपहार है, जो एक पौष्टिक उत्पाद है। इसमें कैल्शियम व प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। शाकाहारी आहार में दूध बेहद महत्वपूर्ण है। प्रोटीन का यह एक बेहतरीन स्रोत है।
माँ का दूध बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर माँ को ५ से ६ महीने की आयु तक बच्चे को सिर्फ अपने दूध पर पालना चाहिए। उसके बाद २-३ साल की आयु तक या जब तक हो सके बच्चे को अपना दूध पिलाते रहना चाहिए। आधुनिक माताएँ अपने फिगर मेंटेन करने के चक्कर में बच्चों को स्तनपान नहीं करातीं। यह न सिर्फ बच्चे में कुपोषण को बढ़ाता है, बल्कि भविष्य में ऐसी माताओं के लिए स्तन कैंसर का खतरा भी बरकरार रहता है।
बीमारियों से सुरक्षा
माँ के दूधबढ़ते बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं के आहार में यदि दूध शामिल है तो उनका संतुलित विकास संभव हो जाता है। दूध प्रकृति का एक ऐसा उपहार है, जो एक पौष्टिक उत्पाद है। इसमें कैल्शियम व प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। शाकाहारी आहार में दूध बेहद महत्वपूर्ण है। प्रोटीन का यह एक बेहतरीन स्रोत है।
बोतल से दूध न पिलाएँ
कामकाजी माताएं और फिगर मेन्टेन करने के चक्कर में रहने वाली माताएँ अपने बच्चों को बोतल के दूध पर छोड़ देती हैं। बोतल का दूध बच्चे का सबसे बड़ा दुश्मन है। यदि मां किसी कारणवश बच्चे को दूध नहीं पिला सकती, तो उसको चम्मच व कटोरी या सीपी का इस्तेमाल करना चाहिए न कि बोतल थमा देना चाहिए। माताएँ अक्सर अपनी सुविधा के लिए भी बच्चों के मुंह में बोतल लगा देती हैं। ऐसे बच्चों का संतुलित विकास नहीं होता।
इन बातों का रखें ख्याल
*माँ को कभी अपने बच्चों को ऊपर का दूध पिलाना पड़ जाए तो बिना पानी मिलाए गाय या भैंस का दूध उसे दें, क्योंकि दूध में अधिकांश हिस्सा पानी का होता है। इसलिए उसमें बाहरी पानी नहीं मिलाना चाहिए। दूध में थोड़ी-बहुत शकर डाली जा सकती है।
*कई माताओं को शिकायत होती है कि उसे पर्याप्त दूध नहीं होता। ऐसा माँ के अंदर हौसले की कमी, कम खुराक खाने और बच्चों को बोतल पर निर्भर करने की मानसिकता की वजह से होता है। आप अभी बोतल फेंक दें, हौसला रखें, अच्छी खुराक लें और बच्चे को प्यार से अपना दूध पिलाएँ।
*बच्चों को दूध दो-ढाई घंटे के बाद ही पिलाना चाहिए। यदि बार-बार बच्चे को दूध पिलाने पर उसका न तो पेट सही ढंग से भरेगा और न ही उसे संतुष्टि ही होगी। इसकी वजह से वह ठीक से सो भी नहीं सकेगा।
*छोटे बच्चे गैस निकालते रहते हैं। बच्चा जब दूध पीता है तो दूध के साथ गैस भी पेट में चली जाती है। कई माँ-बाप इसे बीमारी मानकर घबरा जाते हैं, लेकिन यह सामान्य बात है। डकार दिलवाकर भी गैस निकाली जा सकता है।
*छोटे बच्चे बार-बार जरा-जरा-सी टट्टी करते रहते हैं। माँ-बाप इसे दस्त समझ लेते हैं, लेकिन यह दस्त नहीं है। इसे चुरक-चुरक करना कहते हैं। बच्चे को जब बीमारी के दस्त लगेंगे तो बच्चा बीमार दिखाई देगा। उसका वजन कम हो जाएगा, सुस्त हो जाएगा और बुखार आदि हो सकता है।
*बच्चे अक्सर थोड़ा-थोड़ा दूध निकालते रहते हैं। इससे भी घबराने की जरूरत नहीं है। यदि बच्चे का वजन सामान्य है या बढ़ रहा है तो चिंता करने की कोई बात नहीं है।
*बच्चों को ६ महीने से पहले दूध कभी नहीं छुड़ाना चाहिए। ठोस आहार ६ महीने के बाद ही शुरू करना चाहिए। शुヒआत पीने की चीजों से करें। जैसे दाल का पानी, चावल का पानी, मोसंबी का जूस, संतरे का रस आदि। जैसे-जैसे बच्चे की आयु बढ़ती है, खाने की चीजें बढ़ा दें। उसके बाद उसे चावल, सूजी की खीर, आलू, दही, रोटी मैश कर के दें, ताकि पचने में आसानी हो। ६-७ महीने का बच्चा ३-४ घंटे के बाद ही खाता है। बच्चों को जबरदस्ती न खिलाएँ।
*नवजात बच्चे की माँ को भी पौष्टिक भोजन करना चाहिए। माँ के किसी भी खाने से बच्चे की पाचन शक्ति पर कोई असर नहीं होता है। हमारा शरीर कुदरत की देन है। माँ का दूध हमेशा साफ एवं शुद्घ होता है। माँ को खाने के बाद दाँतों पर ब्रश करना चाहिए। इससे उसके दाँत कमजोर होने का खतरा नहीं रहता है। (डॉ. राकेश महाजन,सेहत,नई दुनिया,जुलाई द्वितीय अंक,2010)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।