शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

स्वाइन फ्लू टीके से अमीर होने के मंसूबे पर पानी

भारत के विशाल बाजार में स्वाइन फ्लू (एच१एन१) के टीके बेच कर मालामाल होने के दवा कंपनियों के मंसूबे पर अचानक पानी फिर गया है । स्वाइन फ्लू के दूसरे दौर के खतरनाक रूप लेने की आशंका जताने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ही मंगलवार को यह कह कर हाथ खींच लिया है कि स्वाइन फ्लू की महामारी की मियाद अब खत्म हो गई है । उसने इस फ्लू के हाई अलर्ट भी वापस ले लिए हैं । अब दवा कंपनियों के टीके का स्टाक बेकार हो जाने के आसार हैं । संगठन के उच्च सूत्रों की मानें तो संगठन ने बदनामी के डर से अफरातफरी में यह फैसला किया है । स्वाइन फ्लू के टीके बनाने वाली कंपनियों की नजर भारत के विशाल बाजार पर टिकी थी । उन्हें यहां बिक्री से मालामाल होने का भरोसा था । इसके लिए कंपनियों ने बहुत हाथ पांव मारे । स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की । स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने खुद टीका लगवा कर उसे सुर्खियां दी । सभी महानगरों में तामझाम के साथ टीके लांच किए गए लेकिन माहौल नहीं बन पाया । यहां तक कि सुरक्षा का सवाल उठा कर महाराष्ट्र के डॉक्टरों ने मुफ्त के टीके लेने से भी इनकार कर दिया । यह कहा जा रहा था कि मॉनसून में स्वाइन फ्लू के मामले तेजी से बढ़ेंगे लेकिन वायरस ने भी अब तक साथ नहीं दिया है । केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि दरअसल बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों की योजना स्वाइन फ्लू का हौवा खड़ा कर भारत सहित कई विकासशील देशों को कंगाल करने की थी जो पूरी नहीं हो पाई । फिर भी स्वाइन फ्लू रोकने के नाम पर सरकार का सौ करोड़ से अधिक का खर्च हो ही गया । उनके अनुसार भारत ने देश को स्वाइन फ्लू से सुरक्षित बनाने में कुछ ज्यादा ही "चुस्ती" दिखाई । ऐसी चुस्ती अमेरिका, इंगलैंड आदि देशों में नहीं थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मंगलवार के ऐलान के पहले ही कई देशों ने टीके के अपने आर्डर रद्द कर दिए थे । साथ ही संगठन से उन्होंने अपने हॉट लाइन भी हटा लिए हैं । समझा जा रहा है कि अब भारत में टीके के खरीदार मुश्किल से मिलेंगे । कंपनियां झटपट अपने स्टॉक निपटाने की फिराक में थीं क्योंकि टीके की मियाद बहुत दिनों की नहीं होती (धनंजय,नई दुनिया,दिल्ली,12.8.2010)।

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