अब तक ये माना जाता रहा है कि बचपन के दांत गिरने के बाद जिंदगी में सिर्फ एक बार ही दांत आते हैं। यदि ये गिर या टूट गए तो ताउम्र नकली दांतों से काम चलाना पड़ेगा। अब बीते दिनों की बात होने जा रही है। रोहतक के डेंटल कालेज के प्राचार्य डॉ. संजय तिवारी ने ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिससे दोबारा दांत विकसित करना संभव होगा। स्टेम सेल की मदद से खराब दांत की जगह नया दांत विकसित किया जा सकता है। डॉ. तिवारी लंदन में टूथ डेंटल पल्म स्टेम सेल एंड टूथ टिश्यू इंजीनियरिंग पर काम करके लौटे हैं। लंदन में उन्होंने स्टेम सेल कल्चर की विभिन्न विधियां सीखीं। उन्होंने चूहों पर अपनी तकनीक का प्रयोग किया, जहां उन्हें सफलता मिली। उनका मानना है कि चूहों पर स्टेम सेल तकनीक के लिए दांतों व नसों को फिर उगाने में सफलता मिलने के बाद मनुष्य में भी फिर से दांत व नसें विकसित करना संभव हो गया है। उल्लेखनीय है कि वह पिछले दिनों फेलोशिप पर लंदन गए थे। पांच महीने के लंदन प्रवास के बाद लौटे डॉ. तिवारी ने अपनी नई तकनीक के बारे में बताया। उनका दावा है कि इससे दोबारा दांत व नस उगाना संभव है। इसके लिए दांत से ही सेल लेकर दांत या नस में डालने होंगे। कुछ समय बाद फिर से दांत या नस विकसित हो जाएगी। अब तक या तो दंत चिकित्सक खराब दांत को निकालकर उसकी जगह कृत्रिम दांत लगाते या फिर नस निकालकर उसकी फिलिंग करते हैं। लेकन अब ऐसा नहीं करना होगा। उनका शोध स्टेम सेल तकनीक से रोगियों को राहत देगा, खासकर बच्चों को। बच्चों में अक्सर दांत खराब होने के मामले ज्यादा होते हैं। इसके अलावा बच्चों के दूध के दांत स्टेम सेल तकनीक में महत्वपूर्ण हैं। दूध के दांत से सेल लेकर दांत विकसित करना सरल और प्रभावी है। बड़ों में जबड़े का आखिरी दांत (अक्कल जाड़) से सेल ले कर दांत विकसित किया जा सकता है। हालांकि यह तकनीक काफी महंगी है और कालेज में अभी इस उपचार के लिए उपकरण भी नहीं हैं। लेकिन तकनीक आ गई है, उपकरण भी खरीदे जाएंगे। इसके बाद दंत रोगियों का उपचार रोहतक में ही किया जा सकेगा। डॉ. तिवारी ने बताया कि उन्हें लंदन के किंग्स कालेज की ओर से राष्ट्रमंडल फेलोशिप मिली थी। यहां उन्होंने 1 फरवरी से 30 जुलाई तक गाइज हास्पिटल किंग्स कालेज लंदन के क्रेनियो फेशियल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के अध्यक्ष व प्रोफेसर पाल शार्प डेकिन्सन की देखरेख में काम किया। यहां उनका विषय टूथ डेंटल पल्म स्टेम सेल एंड टूथ टिश्यू इंजीनियरिंग था। उनकी इस क्लिनिकल ट्रेनिंग के पूरा होने के बाद रॉयल कालेज आफ सर्जन्स इंग्लैंड की ओर से मान्यता भी दी गई है(विकास सैनी,दैनिक जागरण,रोहतक,17.8.2010)।
Utsahvardhak jankari.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी खोज लगती है ।
जवाब देंहटाएंडॉ तिवारी बधाई के पात्र हैं ।
हम सबके लिये खुशी की बात है। डॉ तिवारी को बधाई।
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी पढ़ने को मिली