रविवार, 1 अगस्त 2010

पूर्वाचल: फिर इंसेफेलाइटिस का कहर

पूर्वाचल फिर जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) यानी दिमागी बुखार से खौफजदा है। सरकार मान रही है कि इस साल अब सौ से ज्यादा बच्चे दिमागी बुखार से मर चुके हैं। दहशत इस हद तक है कि बच्चे का बदन गर्म होते ही मां-बाप अनहोनी के डर से सहम जाते हैं। गत तीन दशकों में दिमागी बुखार से दस हजार से ज्यादा बच्चे काल का ग्रास बन चुके हैं। इससे कहीं ज्यादा संख्या उनकी है जो अस्पताल नहीं पहुंच सके। बीमारी से मौत के मुंह में जाने से बचने वाले बच्चे शारीरिक और मानसिक विकलांगता का शिकार हो रहे हैं। तीन दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी जेई को रोका नहीं जा पा रहा है। हैरानी तो यह कि इतने बच्चों की मौत के बाद भी यह अब तक मुद्दा नहीं बन सकी। सरकारी तंत्र जितना उदासीन, उससे कहीं ज्यादा लापरवाह जन प्रतिनिधि। विधानसभा से लेकर संसद तक जिस शिद्दत के साथ यह मुद्दा उठना चाहिए, वह आज तक नहीं उठा। सिर्फ रस्म अदायगी हो रही है। मुख्य सवाल यह कि आखिर कब तक मौत के मुंह में असमय बच्चों का जाना जारी रहेगा? 34 जिलों में फैल चुका है जेई : जेई अब तक 34 जिलों में पांव पसार चुका है। मच्छरों के जरिये फैलने वाली इस बीमारी की शुरूआत 1978 में हुई थी। उस साल सरकारी रिकार्ड में मृतक संख्या एक हजार दर्ज हुई थी। 2005 में तो जेई ने महामारी का रूप ले लिया था। 6061 पीडि़त अस्पतालों तक पहुंचे जिसमें से 1593 को काल का ग्रास बन गए। स्वास्थ्य विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष जनवरी से अब तक बीमारी से पीडि़त 585 अस्पताल में भर्ती हुए जिसमें से 100 काल का ग्रास बन गए। इस तरह फैलता है जेई : जापानी इंसेफेलाइटिस या दिमागी बुखार धान के खेतों में पनपने वाले मच्छरों से (खासतौर से क्युलेक्स ट्रायटेनियरहिंचस समूह) होता है। यह मच्छर जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस से संक्रमित हो जाते हैं। इनके सुअर या जंगली पक्षियों के संपर्क में आने पर जेई फैलता है क्योंकि जेई वायरस पालतू सुअर व जंगली पक्षियों के रक्त प्रणाली में परिवर्धित होते हैं। ऐसे मच्छरों के काटने से मनुष्य जेई वायरस के चपेट में आकर बीमार हो जाते हैं। जेई के अलावा एक्यूट इंसेफेलाइटस सिंड्रोम से पीडि़त होने का कारण इंट्रोवायरस बताया जा रहा है लेकिन विशेषज्ञ अभी एकमत नहीं है। पीडि़त के लक्षण : जेई से पीडि़त होने पर मरीज को सिरदर्द के साथ बुखार आता है। बीमारी पर ध्यान न देने पर गर्दन में अकड़न, घबराहट, कोमा में चले जाना, कपकपी, ऐठन, मस्तिष्क निष्कि्रय होने के अलावा पक्षाघात होता है। जेई से पीडि़त के मामलों में 60 फीसदी तक मृत्युदर है। जेई में अव्वल है यूपी : वैसे तो देश के 14 राज्यों में जेई या एईएस ने पैर पसार रखे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश उनमें अव्वल है। बीते वर्ष देश में जेई से कुल 4482 पीडि़त हुए जिसमें से 774 की जान गई। इनमें 69 फीसदी मरीज यूपी के ही थे। दस फीसदी असम के, सात फीसदी बिहार, पांच फीसदी कर्नाटक, छह फीसदी तमिलनाडु तथा एक फीसदी या उससे कम गोवा, हरियाणा व महाराष्ट्र में भी जेई के मामले मिले हैं। गत वर्ष जेई से जान गंवाने वालों में 72 फीसदी यूपी के थे। इस साल जून तक देश में मिले जेई के कुल मामलों में 78 फीसदी यूपी के ही रहे। जून तक देश में जेई से हुई मौतों में 97 फीसदी यूपी की थी। इन जिलों में फैल चुका है जेई : प्रदेश के गोरखपुर, महाराजगंज, खीरी, देवरिया, कुशीनगर, संत कबीर नगर, सिद्धार्थनगर, अंबेडकरनगर, गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, मऊ, बाराबंकी, बस्ती, रायबरेली, सहारनपुर, सीतापुर, आजमगढ़, बलिया, फैजाबाद, सुल्तानपुर, लखनऊ, हरदोई, उन्नाव, बरेली, मुजफ्फरनगर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, फतेहपुर, कानपुर नगर, गाजीपुर, जौनपुर व शाहजहांपुर में जेई फैल चुका है(अजय जायसवाल,दैनिक जागरण,लखनऊ,1.8.2010)।

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