अगर आपने मेडीक्लेम पॉलिसी ले रखी है तो पुराने दिनों में मिलने वाले फायदों को भूल ही जाइए। सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियां भले ही सरकार और हॉस्पिटल सेक्टर के दबाव में फिर से मेडीक्लेम पॉलिसी को बहाल करने के लिए राजी हो जाएं, लेकिन वे अब एक जुलाई, 2010 से पहले की शर्तो को मानने के लिए एकदम तैयार नहीं हैं। इन बीमा कंपनियों ने बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) को भी साफ तौर पर बता दिया है कि उनके लिए पुराने स्वरूप में मेडीक्लम पॉलिसी को जारी रखना नामुमकिन है। इन पॉलिसियों से बीमा कंपनियों को हो रही हानि को देखकर ही इरडा भी इस मामले में खुलकर सामने नहीं आ रही है। देश की प्रमुख सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि मेडीक्लेम पॉलिसियों पर पिछले तीन वर्षो से हमें लगातार सालाना 30 फीसदी का नुकसान हो रहा है यानी जो प्रीमियम मिलता है उससे 30 फीसदी ज्यादा राशि का दावों (क्लेम) के विरुद्ध भुगतान करना पड़ रहा है। अभी तक साधारण बीमा कंपनियां मोटर प्रीमियम बीमा से परेशान थीं, अब उन पर हेल्थ बीमा का भी बोझ पड़ने लगा है। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि अगर इस स्थिति को यूं ही जारी रखा गया तो फिर स्वास्थ्य बीमा से संबंधित अन्य सेवाओं को जारी रखना भी घाटे का सौदा हो जाएगा। वह ज्यादा खतरनाक स्थिति होगी। वर्ष 2009-10 में सरकारी व निजी बीमा कंपनियों ने मेडीक्लेम प्रीमियम के तौर पर 6 हजार करोड़ रुपये प्राप्त किए थे, जबकि उन्होंने 7 हजार 500 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया था। बताते चलें कि बीमा कंपनियों ने 1 जुलाई, 2010 से कैशलेस मेडीक्लेम की सामान्य सेवा से इनकार कर दिया है। अभी कुछ बेहद इमरजेंसी मामलों में ही इसे लागू किया जा रहा है। विवाद को सुलझाने के लिए शुक्रवार को अस्पताल चलाने वाली बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ देश की चारों सरकारी साधारण बीमा कंपनियों के अध्यक्षों की बैठक हुई थी। बैठक में कैशलेस मेडीक्लेम को लेकर सहमति नहीं बन सकी और इस संबंध में कोई नया फैसला नहीं हुआ। हां, दोनों पक्ष पूरे विवाद के निपटारे के लिए अगले 10 से 30 दिनों के भीतर रोडमैप बनाने को तैयार हो गए हैं। इसके लिए दोनों पक्षों की तरफ से एक-एक दल का गठन किया गया है जो अगले सोमवार से रोजाना बैठक करेंगे। बीमा कंपनियों के सूत्रों का कहना है कि वे कुछ बेहद महत्वपूर्ण शर्तो को शामिल करने के बाद ही कैशलेस मेडीक्लेम की सुविधा देने को तैयार होंगी। मसलन, अभी इस सुविधा के लिए न्यूनतम 24 घंटे तक अस्पताल में भर्ती रहने की शर्त है। बीमा कंपनियां इसे बढ़ाने के पक्ष में है। बीमा कंपनियों ने शुक्रवार की बैठक में यह भी साफ कर दिया कि सभी अस्पतालों को संयुक्त तौर पर इलाज के खर्च में एकरूपता लानी होगी। अब यह नहीं चलेगा कि दिल्ली में ही एक अस्पताल हार्ट ऑपरेशन के लिए दो लाख रुपये ले और दूसरा अस्पताल एक लाख रुपये। सूत्रों का कहना है कि अस्पताल चलाने वाली कंपनियां बिलिंग प्रक्रिया में एकरूपता लाने के लिए तैयार हैं। दोनों पक्षों में क्या सहमति बनती है यह तो एक महीने में तय हो जाएगा, लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि कैशलेस मेडीक्लेम के जरिए चिकित्सा सुविधा पुरानी सुविधाओं के साथ लागू हो पाएगी(जयप्रकाश रंजन,दैनिक जागरण,दैनिक जागरण,दिल्ली,1.8.2010)।
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