अब लोग गर्भ में पल रहे अपने शिशु की तस्वीर भी फोटो एलबम में सजाने लगे हैं हालांकि इस मुद्दे पर नीतिशास्त्र के विद्वानों को आपत्ति है। गर्भस्थ शिशु का फोटो उसी अल्ट्रासाउंड मशीन से उतारा जाता है, जो बच्चे के आकार और उसके अंगों के स्वास्थ्य का पूरा खाका उतारकर डॉक्टर के सामने रख देती है। डॉक्टरों की मानें तो अब बड़ी संख्या में ऐसे लोग अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर आते हैं, जो 500 या इससे अधिक रुपये खर्च कर गर्भस्थ शिशु की तस्वीर खिंचाना चाहते हैं। इस तस्वीर में बच्चे के चेहरे की पूरी आकृति स्पष्ट दिखाई देती है, जिससे कुछ हद तक शिशु के सौंदर्य का आभास हो जाता है। अधिकतर रेडियोलॉजिस्ट गर्भस्थ शिशु का फोटो खींचने को गलत नहीं मानते। गर्भस्थ शिशु की तस्वीर लेने पर कोई कानून प्रतिबंध भी नहीं है। समाजशास्त्री स्वर्ण सहगल का कहना है कि इस तरह की तस्वीरों से अगर माता-पिता को पता चल जाए कि बच्चा सुंदर नहीं है, तो बच्चे को लेकर पूर्वाग्रह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आम तौर पर अल्ट्रासांउड से ली जाने वाली गर्भस्थ शिशु की तस्वीर रंगीन और श्वेत श्याम होती है। रंगीन तस्वीर में शक्ल सूरत अधिक बेहतर आती है जिसके लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस बारे में यह देखने की जरूरत है कि कहीं यह लिंग परीक्षण का रूप तो नहीं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष कौशिक ने कहा कि कोख में पलने वाले बच्चे की फोटो खींचना एक तरह से लिंग परीक्षण का ही रूप है और इस पर रोक लगनी चाहिए(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,26.7.2010)।
अल्ट्रासाउंड और कलर डोपलर सामन्य परिक्षण है.. ये कोई फोटो ग्राफी नहीं.. भ्रूण में शिशु की तस्वीर से लिंग का पता नहीं लगा सकते जब तक डॉ आपको न बताए.. खुद का अनुभब है..
जवाब देंहटाएंअरे भाई पूरी ज़िंदगी पड़ी है...फोटो के लिए.
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