डॉक्टर और विशेषज्ञ हमेशा ही इस बात की ताकीद करते हैं कि टीवी पर दिखाए जाने वाले या कहीं और पढ़े-सुने गए सेहत के नुस्खों का प्रयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञों से कंसल्ट करें, लेकिन हम भारतीय खुद ही आधे डॉक्टर होते हैं। तिस पर महिलाएँ तो जैसे सोने पर सुहागा हैं। पहले तो वे कोई भी परेशानी छुपाती हैं, फिर खुद पर पैसा खर्च करने से भी बचती हैं।
मुहाँसों के कारण परेशान २३ वर्षीय रीमा को उसकी सहेलियों ने सुझाया कि उसे एक सब्जी विशेष का कच्चा सेवन या उसके ज्यूस का सेवन खाली पेट करना चाहिए। इससे रातों-रात चमत्कार की तरह उसके मुहाँसे गायब हो जाएँगे। सुंदरता पाने के इस साधारण और सरल तरीके को जानकर रीमा बेहद खुश थी। उसने अगले ही दिन से सुबह खाली पेट उक्त ज्यूस पीना शुरू कर दिया। दो-तीन दिन बाद अचानक उसके शरीर में खुजली के साथ छोटे-छोटे दाने होने शुरू हो गए। इस पर भी सखियों ने समझा डाला कि पेट में पहले से जमा गंदगी और मुँहासों के संक्रमण के कारण यह रिएक्शन हो रही है। कुछ दिनों में तकलीफ खत्म हो जाएगी। रीमा ने ज्यूस का सेवन जारी रखा। एक हफ्ते में ही उसके चेहरे के साथ-साथ उसके पूरे शरीर पर भी खुजली तथा दाने फैल चुके थे। घबराए माता-पिता जब उसे डॉक्टर के पास ले गए तो पता चला कि उस सुंदरता की रेसिपी से रीमा को एलर्जी हो गई है और उस पर जो ज्यूस वो पी रही थी, उसमें कुछ अंश पहले से ही खराब हो चुकी सब्जी के भी आ चुके थे। अब, पिछले एक साल से रीमा का इलाज चल रहा हैं।
पचपन वर्षीय श्रीमती वर्मा पिछले कुछ दिनों से जोड़ों के दर्द से पीड़ित थीं। जाहिर है एक आम भारतवासी की तरह ही उन्हें भी मुफ्त मिलने वाली सलाहों की कमी नहीं थी। किसी ने कहा- फलाँ चीज़ का रस, अलाँ चीज में मिलाकर पीने से यह रोग शर्तिया दूर हो जाएगा। बस फिर क्या था... श्रीमती वर्मा को यह सलाह आसान तथा किफायती (!) भी लगी। उन्होंने अगले ही दिन से उक्त रस पीना शुरू कर दिया। थोड़े ही दिनों में वे जोड़ों के दर्द को भूल चुकी थीं... न... न... न... जोड़ों का दर्द ठीक नहीं हुआ था, लेकिन उससे भी तिगुने वेग से उन्हें पेट का दर्द शुरू हो गया था। आनन-फानन डॉक्टर के पास ले जाने पर पता चला कि उक्त रस ने पेट में जाकर करामात दिखाई है, जिसकी वजह से श्रीमती वर्मा को सीवियर एसिडिटी की दिक्कत हो गई है। एक हफ्ता अस्पताल और पाँच महीने घर पर आराम करने के बाद बड़ी मुश्किल से बीमारी पर कुछ काबू पाया जा सका। आज भी श्रीमती वर्मा को ढेर सारी पाबंदियों और दवाइयों के साथ जिंदगी बिताना पड़ रही है और इस सबका कुल शुरुआती खर्च कोई ४५ हजार रुपए था। यह खर्च आगे भी जारी रहेगा।
फल-सब्जियाँ सेहत के लिए जरूरी हैं यह हम सुनते आ रहे हैं, लेकिन बिना सोचे-समझे किसी भी चीज़ का प्रयोग कितना हानिकारक हो सकता है, यह बात अब और भी तेजी से सामने आ रही है। ६० वर्षीय वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार सक्सेना की कुछ दिनों पहले कड़वी लौकी और करेले का ज्यूस पीने से हुई मौत और इसी वजह से उनकी पत्नी नीरजा के गंभीर रूप से बीमार हो जाने वाली घटना ने कई सवाल इस संबंध में खड़े कर दिए हैं। यूँ डॉक्टर और विशेषज्ञ हमेशा ही इस बात की ताकीद करते हैं कि टीवी पर दिखाए जाने वाले, अखबारों या पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाले या कहीं और पढ़े-सुने गए सेहत के नुस्खों का प्रयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञों से कंसल्ट करें, लेकिन हम भारतीय खुद ही आधे डॉक्टर होते हैं। तिस पर महिलाएँ तो जैसे सोने पर सुहागा हैं। पहले तो वे कोई भी परेशानी या बीमारी छुपाती रहती हैं, फिर इलाज करवाने की नौबत आने पर भी खुद पर पैसा खर्च करने से बचती हैं। इसके कारण उन्हें और भी नुकसान उठाना पड़ता है। घरभर की चिंता पालने वाली महिलाएँ खुद के स्वास्थ्य के प्रति न केवल लापरवाह रहती हैं, बल्कि आमतौर पर सुझाए गए देशी-विदेशी नुस्खों को भी गिनी पिग की तरह खुद पर आजमाने से नहीं हिचकतीं।
फिटनेस को लेकर अब भारत में भी आम आदमी काफी जागरुक होने लगा है, लेकिन अब भी चिकित्सकीय तथा वैज्ञानिक क्षेत्र से संबंधित जानकारियाँ लेने, जुटाने और जानने में वह काफी पीछे है। हम सुबह उठकर दौड़ने से लेकर जिम जाने, एरोबिक्स करने, योग की क्लास ज्वॉइन करने जैसी चीजें आमतौर पर देखा-देखी या फिर सुना-सुनी कर लेते हैं। फिर इसके पीछे का आम मनोविज्ञान यह है कि बिना पैसा दिए मुफ्त की सलाह मिल रही है और प्राकृतिक तथा हर्बल चीजें तो हमेशा निष्पाप ही होती हैं। फिर सबसे बड़ी भ्रांति यह कि जब फलाँ को उस चीज से फायदा हुआ है तो मुझे भी होगा।
खैर..., अब डॉ. सक्सेना की मौत को थोड़े अलग एंगल से विश्लेषित किया जा रहा है, फिर भी इस बात पर सबसे ज्यादा जोर है कि स्वास्थ्य को लेकर सुझाए जाने वाले नुस्खों का उपयोग करने से पहले सलाह जरूर लें। सालों से लौकी के ज्यूस को स्वास्थ्यप्रद माना जाता रहा है, फिर भी इससे यह दुर्घटना हुई तो डॉक्टर और डायटिशियन कहते हैं कि इस तरह की राय पर बिना सोचे-समझे अमल नहीं करना चाहिए, क्योंकि हरेक की शारीरिक संरचना और जरूरतें अलग-अलग होती हैं और हम किसी चीज़ को जितना सुरक्षित समझते हैं, हो सकता है हमारे लिए वह उतना सुरक्षित साबित न हो। लौकी जैसी सामान्य चीज में भी कभी-कभी "टेट्रासाइक्लिक ट्रायटरपेनॉइड क्यूकरबिटेसिन्स" जैसा विषैला तत्व हो सकता है। यह एक खतरनाक जहर है। केवल लौकी ही नहीं, ककड़ी सहित क्यूकम्बर फैमिली के सभी फलों-सब्जियों में ऐसे जहरीले पदार्थ हो सकते हैं, जिनके कारण इन फलों-सब्जियों में कड़वापन आ जाता है। इस कड़वेपन या कहें जहरीले पदार्थों की शक्ति को कम करने के लिए ही सब्जियों को पकाकर खाया जाता है, लेकिन फलों के साथ ऐसा नहीं होता। अतः आवश्यक है कि किसी भी फल को खाने से पहले उसे थोड़ा-सा चख लें और कड़वा लगते ही उतना हिस्सा निकालकर फेंक दें। इसी तरह किन्हीं दो या ज्यादा सब्जियों-फलों के रस को मिलाकर पीना भी हमेशा और सबके लिए लाभदायक नहीं हो सकता। आजकल फलों-सब्जियों को उगाने तथा बे-मौसम बाजार में लाने के लिए भी जो तकनीक अपनाई जा रही है... उस पर भी विचार करना जरूरी है। सोचना जरूरी है कि-
*कहीं आपको उक्त चीज से किसी प्रकार की एलर्जी तो नहीं?
*कहीं आपका डायबटीज या उच्च रक्तचाप इसमें बाधा तो नहीं बनेगा?
* क्या आप किसी भी उम्र में किसी भी चीज का सेवन कर सकते हैं?
*आपके जिस परिचित ने किसी चीज का सेवन करने के बाद परेशानी से निजात पाई, उसकी और आपकी शारीरिक परिस्थितियों में कितना फर्क है?
यह बिलकुल सही बात है कि फल और सब्जियाँ सबसे पोषक तथा लाभ पहुँचाने वाले खाद्य हैं और हमेशा, हर एक को इनसे नुकसान हो, यह कतई जरूरी नहीं, लेकिन सतर्क रहना बहुत जरूरी है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि इस तरह के ज्यूस लेने से पहले ठीक तरह से पढ़ें और किसी एक्सपर्ट के मार्गदर्शन में ही इसे शुरू करें। फलों या सब्जियों के रस को मिलाकर नहीं लिया जाना चाहिए। इसमें होता यह है कि हम यह नहीं जान पाते हैं कि किसके रस का क्या फायदा है और क्या नुकसान है। इसलिए जो कुछ भी कहा, सुना, पढ़ा या देखा गया है, उसे तुरंत ही आजमाने की बजाय डॉक्टरों से राय लें और उसके बाद सब्जियों और फलों के स्वाद और गुणवत्ता को लेकर सतर्क रहें। आखिरकार ये आपके स्वास्थ्य और जिंदगी का मामला है(रौनक गुप्ते,नायिका,नई दुनिया,21 जुलाई,2010)।
अनमोल सलाह है...हमलोग का ध्यान नहीं जाता है...
जवाब देंहटाएंनीम हकीम हम खुद हैं तो फिर दूसरों की क्या जरुरत। कुमार फिजियोथेरेपिस्ट से जूडा कोई लेख हो तो प्रकाशित करना। आवश्यकता है पिताजी के लिए।
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