इस पर यकीन करना कठिन है कि गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार प्रति वर्ष दस हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है और फिर भी ग्रामीण इलाकों में डाक्टरों का अभाव दूर होने का नाम नहीं ले रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन चार वर्षो के अथक प्रयास के बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए जिस तरह महज साढ़े तीन हजार डाक्टर ही जुटा सका उससे इस निष्कर्ष पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि या तो यह मिशन सही ढंग से नहीं चलाया जा रहा है या फिर डाक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के लिए तैयार नहीं। यदि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को सफल बनाना है तो केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे उपाय प्राथमिकता के आधार पर करने होंगे जिससे डाक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए प्रेरित हों। नि:संदेह युवा डाक्टरों को केवल उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों का अहसास कराकर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता। इसी तरह उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में जबरन भेजने की कोई कोशिश सफल नहीं होने वाली। ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में डाक्टरों की तैनाती बढ़ाने के लिए बीच का कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए। ऐसे डाक्टरों को अतिरिक्त प्रोत्साहन देना चाहिए जो ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हों। चूंकि डाक्टरों के साथ-साथ अन्य पेशों के लोग भी ग्रामीण इलाकों में काम करने के लिए तैयार नहीं इसलिए नीति निर्धारकों को उन कारणों की तह तक जाना चाहिए जिनके चलते गांवों में नौकरी को एक सजा की तरह समझा जाता है। हमारे नीति निर्धारकों को इस सामान्य तथ्य से अच्छी तरह परिचित होना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव वह मुख्य कारण है जिसके चलते शहरी और साथ ही ग्रामीण इलाकों के युवा वहां काम करने से इनकार करते हैं। हमारे शासकों को यह अहसास भी होना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की बदहाली दूर किए बगैर डाक्टर तो क्या अन्य पेशे के लोग भी गांवों की ओर रुख नहीं करने वाले। जिस तरह विकास के हर कार्य बड़े शहरों तक केंद्रित होकर रह गए हैं और गांव-कस्बे बदहाली तथा पिछड़ेपन का पर्याय बना दिए गए हैं उसमें ऐसी स्थिति आनी ही थी कि पढ़ा-लिखा तबका ग्रामीण इलाकों में नौकरी करने के नाम से ही बिदके। ध्यान रहे कि ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टरों के साथ-साथ अन्य मेडिकल स्टॉफ की भी कमी है। चूंकि केंद्र और राज्य सरकारें डाक्टरों और अन्य मेडिकल कर्मियों के लिए ग्रामीण इलाकों में उपयुक्त स्थितियों का निर्माण नहीं कर पा रही हैं इसलिए वहां उन तत्वों का बोलबाला है जिन्हें झोलाछाप डाक्टर के रूप में परिभाषित किया जाता है। झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ चाहे जितने अभियान क्यों न छेड़े जाएं उन्हें सफलता तब मिलेगी जब गांवों और कस्बों में सरकारी स्वास्थ्य ढांचा मजबूत किया जाएगा। यह सही समय है जब सरकारों को ऐसी भी कोई नीति बनानी चाहिए जिससे निजी क्षेत्र ग्रामीण इलाकों में अस्पताल खोलने के लिए प्रेरित हो। इसके अतिरिक्त यह भी आवश्यक है कि मेडिकल शिक्षा जिन समस्याओं से दो-चार है उनका समाधान किया जाए। आखिर इसका क्या औचित्य कि एक ओर तो ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ डाक्टरों का एक तरह से अकाल है और दूसरी ओर मेडिकल के पीजी कोर्स की सीटें बढ़ाने से इनकार किया जा रहा है?(संपादकीय,दैनिक जागरण,24.7.2010)
सारी योजनायें कागजों में चलाकर कुछ मंत्रियों,जनप्रतिनिधियों,अधिकारीयों और दलालों के स्वास्थ्य को हरा-भरा बना रही हो तो देश के गांवों में रहने वाले ग्रामवासियों का स्वास्थ्य तो खराब होगा |
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