सोमवार, 5 जुलाई 2010

विकास दर से चमकते माथे पर कुपोषण का दाग

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और सरकार के आर्थिक शिल्पकार मोंटेक सिंह अहलूवालिया विकास दर आठ फीसदी से ज्यादा बने रहने पर खुश हो सकते हैं लेकिन इस चमकते माथे पर ब़ढ़ते कुपोषण का काला दाग भी है। सरकार और दूसरी संस्थाओं के आँक़ड़े इस सच को बयान करते हैं कि ब़ढ़ती विकास दर, विदेशी मुद्रा के भंडार, खाद्यान्नों की उत्पादन वृद्धि और स़ड़कों, फ्लाईओवरों, शॉपिंग मॉल्स, मेट्रो रेल और चमचमाता विकास दूरदराज इलाकों में ही नहीं शहरों में भी ब़ढ़ते कुपोषण को ढक नहीं पा रहा। मध्य प्रदेश देश का सबसे ज्यादा कुपोषित राज्य है। वहां की ३० फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में बनी "राष्ट्रीय सलाहकार परिषद" इस असमानता पर चिंतित है। खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल आबादी का २२ फीसदी हिस्सा कुपोषण का शिकार है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंक़ड़े बताते हैं कि देश में पांच साल की उम्र के नीचे के ४८ फीसदी बच्चे कुपोषण की वजह से बौनेपन और ४२ फीसदी बच्चे औसत से कम वजन के शिकार हैं। पूरी दुनिया में एक अरब २० करो़ड़ लोग कुपोषित हैं, जिनमें सबसे ज्यादा २५.१५ करो़ड़ लोग भारत में हैं। इसके बाद चीन का नंबर हैं जहां कुपोषितों की संख्या १२.७४ करो़ड़ है। एशिया के पांच देशों में कुपोषण का आंक़ड़ा भारत में २२ फीसदी, चीन में दस फीसदी, पाक में २३ फीसदी, बांग्लादेश में २६ फीसदी और श्रीलंका में २१ फीसदी है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं नीति अनुसंधान संस्थान ने भारत के १७ राज्यों में सर्वेक्षण के बाद २००८ में जो आंक़ड़े दिए उनमें मप्र को कुपोषण प्रभावित राज्यों की बेहद खतरनाक श्रेणी में माना गया है। २०.२ से २९.९ फीसदी कुपोषित आबादी वाले राज्यों को खतरनाक माना जाता है। इनमें हरियाणा, तमिलनाडु, राजस्थान, प.बंगाल, उप्र, महाराष्ट्र, बिहार,झारखंड, कर्नाटक, उ़ड़ीसा, गुजरात व छत्तीसग़ढ़ हैं जबकि पंजाब, केरल, आंध्र और असम में १० से १९.९ फीसदी आबादी कुपोषित है, जिन्हें गंभीर श्रेणी में रखा गया है। पांच से ९.९ फीसदी कुपोषित आबादी वाले राज्य को कम सामान्य कुपोषित श्रेणी और ४.९ फीसदी से कम कुपोषित आबादी वाले राज्य को कम कुपोषित श्रेणी का माना जाता है। लेकिन भारत का कोई भी राज्य इन दोनों श्रेणियों में नहीं है। केंद्र सरकार में यह बहस तेज हो गई है कि क्या सिर्फ विकास दर ब़ढ़ने से कुपोषण और भूख की चुनौती से निपटा जा सकता है या कृषि उत्पादन वृद्धि दर ब़ढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। सरकारी आंक़ड़े कहते हैं कि सिर्फ विकास दर की वृद्धि काफी नहीं है। कृषि विकास दर उम्मीद से भी कम सिर्फ २.८ फीसदी है जबकि ११वीं योजना में इसका लक्ष्य चार फीसदी रखा गया था। परिषद के सदस्यों की राय है कि कृषि उत्पादन में वृद्धि, प्रति एक़ड़ उपज में वृद्धि और खाद्यान्न के बेहतर वितरण से कुपोषण मिटाया जा सकता है(विनोद अग्निहोत्री,नई दुनिया,दिल्ली,5.7.2010)।

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