सोमवार, 5 जुलाई 2010

आधे मस्तिष्क से ज्यादा पीड़ादायक है मिर्गी

क्या आपने कभी कल्पना की है कि कोई व्यक्ति आधे मस्तिष्क के साथ जीवित रह सकता है। कई न्यूरोसर्जन के मुताबिक मिर्गी से पीडि़त मरीजों को जिस पीड़ा से गुजरना पड़ता है, उसकी तुलना में यह कम पीड़ादायी है। इस तरह के मरीजों को खास तरह की गंभीर अनियंत्रित मिर्गी के लक्षणों से उनके मस्तिष्क के दो हिस्सों के बीच संपर्क को तोड़कर पूरी तरह राहत दी जा सकती है। इसके बाद मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा अपना काम करने लगता है और सामान्य जीवन जीने में शरीर की मदद करने लगता है। 11 वर्षीय कीर्ति (नाम बदला हुआ) पांचवीं कक्षा में पढ़ती है और वह मेधावी और खुशमिजाज छात्रा है। वह अपने स्कूल में सभी तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेती है और वह अपनी कक्षा के शीर्ष 10 छात्रों में आती है। हालांकि, वह थोड़ी मुश्किल से चल पाती है और वह अपने शरीर के बाएं हिस्से में थोड़ा कमजोरी महसूस करती है। लेकिन उसे देखकर कोई भी कल्पना नहीं कर सकता कि उसका सिर्फ आधा मस्तिष्क काम कर रहा है। उसके मस्तिष्क के दाहिने सेरिब्रल हेमीस्फीयर को चार साल पहले एम्स में एक जटिल सर्जरी में मस्तिष्क के शेष हिस्से से अलग कर दिया गया है। इस सर्जरी को हेमीस्फीयरोटामी कहते हैं। कीर्ति जब दो साल की थी तो उसे मिर्गी के गंभीर दौरे पड़ने लगे। इलाज के बावजूद उसकी हालत बिगड़ती गई और वह पूरी तरह बीमार हो गई। एम्स की वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने बताया, अस्पताल में भर्ती किए जाने के समय उसे दिन में 100-100 दौरे पड़ते थे। उन्होंने कहा, जांच के बाद हमने पाया कि वह एक असामान्य तरह की स्थिति रासमूसन सिंड्रोम से पीडि़त है। इस बीमारी में मस्तिष्क का आधा हिस्सा रोगग्रस्त हो जाता है। इसके कारण मिरगी के दौरे पड़ने लगते हैं और यह दौरा दिन में 100 बार तक पड़ सकता है। डॉ. त्रिपाठी ने कहा, ऐसी स्थिति में मस्तिष्क के न्यूरॉन में बुरी तरह सूजन हो जाती है और रक्षात्मक इनसुलेशन खत्म हो जाते हैं और लगातार शार्ट सर्किट होता है। इससे मिरगी का दौरा पड़ता है। हालांकि, इलाज के लिए कुछ चिकित्सकीय तौर-तरीके उपलब्ध हैं लेकिन अंतिम चीज जो कारगर होती है, वह है सर्जरी(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,5.7.2010)।

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