आज के दैनिक जागरण के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित एक सर्वे रिपोर्ट कहती है कि देशभर के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले 11.6 प्रतिशत छात्र धूम्रपान करते हैं। इसका खुलासा इंडिया ग्लोबल हेल्थ प्रोफेशनल द्वारा देशभर के साढ़े तीन हजार मेडिकल छात्रों के बीच अध्ययन के बाद किया गया है। धूम्रपान के बढ़ते चलन को देखते हुए वॉलंट्री हेल्थ आर्गेनाइजेशन (वीएचओ) ने टोबैको कंट्रोल को स्कूल और मेडिकल एजुकेशन का हिस्सा बनाने का सुझाव दिया है। शुक्रवार को आयोजित प्रेस वार्ता में संस्था के एक्सपर्ट डॉ. एलएम. नाथ ने बताया कि मेडिकल के तीसरे वर्ष के साढ़े तीन हजार छात्रोंके बीच किए इंडिया ग्लोबल हेल्थ प्रोफेशनल स्टडी सर्वे के मुताबिक 11.6 प्रतिशत छात्र धूम्रपान करते हैं,जबकि 5.4 प्रतिशत दूसरे तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें 91 पर्सेट यह मानते हैं कि हेल्थ प्रोफेशनल्स को टबैको कंट्रोल की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए। एक अन्य स्टडी में यह पाया गया है कि हेल्थ प्रोफेशनल मरीजों को इस बारे में जागरूक करना चाहते हैं, मगर उन्हें खुद इसकी सही जानकारी नहीं होती है। ऐसे में इसे नॉन कम्युनिकेबल डिजीज का हिस्सा मानकर मेडिकल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
इसी अखबार के भोपाल संस्करण में छपी खबर के मुताबिक़, जल्दी ही मेडिकल छात्रों को डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान तंबाकू की लत छुड़ाने के गुर भी सिखाए जा सकते हैं ताकि वे अपने पास आने वाले मरीजों का इलाज करने के साथ ही उनकी बीड़ी-सिगरेट-गुटखा की आदत भी छुड़ा सकें। इस संबंध में सामने आए एक अध्ययन के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने कहा है कि वह जल्दी ही इस पर विचार करेगा। एमसीआई की कमान संभाल रहे डॉक्टरों के पैनल में शामिल डॉ. रंजीत रायचौधरी ने शुक्रवार को इस बारे में कहा, निश्चय ही यह बेहद अच्छा प्रस्ताव है। मेडिकल पाठ्यक्रम में इसे शामिल किए जाने से छात्र न सिर्फ बेहतर डॉक्टर साबित हो सकेंगे, बल्कि इसका फायदा खुद उन्हें भी हो सकेगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पाठ्यक्रम में इसे शामिल किए जाने का फैसला एमसीआई के पूरे बोर्ड को करना है। रायचौधरी ने यह बात मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में तंबाकू उत्पादों के खतरे के बारे में जागरुकता के स्तर पर किए गए एक अध्ययन पर चर्चा के दौरान कही। प्रो. ललित एम नाथ और डॉ. जेनिफर लोबो ने इस विषय पर किए अपने अध्ययन के आधार पर सिफारिश की है कि मेडिकल के सभी स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में तंबाकू लत छुड़ाने की तकनीक को शामिल किया जाए। इससे पहले मेडिकल कॉलेजों के अध्यापकों को इस बारे में प्रशिक्षित किया जाए और व्यवहारिक अध्ययन के लिए सभी कॉलेजों में तंबाकू छुड़ाने की क्लीनिक भी शुरू किए जाएं। वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वीएचएआई) की ओर से करवाए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि सिर्फ एलोपैथी के ही नहीं बल्कि आयुर्वेद, होम्योपैथ, यूनानी और सिद्ध जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के पाठ्यक्रमों में भी विस्तार से पढ़ाया जाना जरूरी है कि तंबाकू उत्पाद के सेवन का क्या नुकसान है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति इसे छोड़ना चाहता है तो उसे क्या करना होगा। इतना ही नहीं इसे स्कूली पाठ्यक्रम में भी प्राथमिक स्तर से ही शामिल किया जाना चाहिए।
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