शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

न्यूरोस्थेनिया

नियमित दिनचर्या को पूरा करते-करते व्यक्ति की थकान आम बात है। परंतु अनायास ही व्यवहार में सुस्ती आने लगे और मन उदास रहने लगे तो संभव है आप न्यूरोस्थेनिया बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इस मर्ज में रोगी असाधारण थकावट महसूस करता है। शरीर में किसी प्रकार का कोई कमी नहीं रहती फिर भी इंसान थकावट महसूस करने लगता है। अमूमन इस बीमारी से 40-50 साल उम्र की महिलाएं व पुरुष जूझते हैं। आजकल यह समस्या बच्चों में खासकर किशोरों में भी देखी जानी लग है। यानी,वयस्कों में चिड़चिड़ापन बना रहना आम बात है। न्यूरोस्थेनिया के रोगी भरपूर नींद लेने के बावजूद थकावट का अनुभव करते हैं। लक्षण इस रोग से पीड़ित मरीजों की पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है। भोजन पचता नहीं। भूख का न लगना आम बात हो जाती है। तमाम मेडिसीन लेने के बावजूद वह इस बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। खाना खाने से पहले उल्टी होना अथवा फूड लेने पर उल्टी हो जाना इसके प्रमुख लक्षण है। कई रोगी सिर्फ डकार लेते हैं और उनकी शिकायत पेट बोलने की रहने लगती है। इस बीमारी से जूझते मरीज दो घंटे से ज्यादा नहीं सो पाते। इस बीमारी का एक महत्वपूर्ण लक्षण होता है। सिर में दर्द का बने रहना। रोगी को गर्दन, पीठ व जोड़ों के दर्द से जूझना पड़ता है। इसमें पेनफुल लिम्फ नोड्स होते हैं और रोगी पढ़ते समय शब्दों की फाइनडिंग नहीं कर पाता। कारण इस बीमारी का मुख्य कारण मस्तिष्क की केन्द्रीय स्नायुतंत्र में कमजोरी होना है। ब्रेन के इस भाग के उत्तक निर्बल हो जाते हैं। नतीजा यह होता है कि मानसिक क्रियाएं अव्यवस्थित हो जाती है। जिससे रोगी थकावट, अनिंद्रा व कमजोरी महसूस करता है। कई बार ये बीमारियां अनुवांशिक तौर पर रोगी को दबोचती है। नतीजतन ,उनमें न्यूरोस्थेनिया के लक्षण पनपने लगते हैं। उपचार ऐसे मरीजों को कार्य के आधार पर मूल्यांकन कर टीट्रमेंट किया जाता है। इनकी कंग्नेटिव इन्हें निजात दिलाती है। मसलन ऐसे मरीजों में ज्यादा से ज्यादा बर्दाश्त करने की क्षमता डेवलपमेंट करायी जाती है। उनके क्रियाकलापों को बढ़ाया जाता है। सीबीटी एक बेहतर विकल्प है। ऐसे मरीजों के लिए जहां तक मेडिसीन की बात है तो एंटीडिप्रेशेन्ट दिये जा सकते हैं। लेकिन अधिकतर मामलों में सफलता नहीं मिल पाती। क्योंकि इसके मरीज डॉक्टर का सहयोग करने से कतराते हैं। दवा से बीमारी के लक्षण दूर हो सकती हैं। इसलिए शुरुआती लक्षणों में ही चिकित्सकीय मदद लेनी चाहिए(प्रस्तुतिःमनोज कुमार,हिंदुस्तान,पटना,30.7.2010)।

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