कैशलेस मेडीक्लेम के पॉलिसीधारकों को फिलहाल राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। कैशलेस मेडीक्लेम पॉलिसी देने वाली बीमा कंपनियों और अस्पताल चलाने वाली कंपनियों के बीच कोई सहमति नहीं बन रही है। सरकारी क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच शुक्रवार को इस मसले पर हुई बैठक बेनतीजा रही। हालांकि दोनों पक्ष दावा कर रहे हैं कि एक महीने के भीतर इस समस्या का समाधान निकल आएगा। वैसे लाखों स्वास्थ्य बीमाधारकों को निराश करते हुए बीमा नियामक इरडा ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है। कैशलेस मेडीक्लेम यानी चिकित्सा बीमा की वह सुविधा जिसमें पॉलिसीधारकों को अस्पतालों में इलाज कराने पर नकद भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि अस्पतालों को इलाज की राशि सीधे बीमा कंपनी की तरफ से अदा की जाती है। बीमा कंपनियों की तरफ से अस्पतालों को किए जा रहे इस तरह के भुगतान में लगातार बढ़ोत्तरी होने के कारण 1 जुलाई, 2010 से कैशलेस मेडीक्लेम पर रोक लगा दी गई है। इससे लाखों पॉलिसीधारकों के लिए दिक्कत पैदा हो गई है। ऐसी स्थिति में ग्राहकों को पहले अस्पताल में इलाज पर आए खर्च का भुगतान करना होगा जिसका वे बीमा कंपनी से बाद में रिफंड ले सकते हैं। पॉलिसीधारकों के हितों को अनदेखा करते हुए बीमा नियामक इरडा ने भी इस मामले से अपने हाथ खींच लिए हैं। इरडा अध्यक्ष जे हरिनारायण ने मामले में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। उद्योग चैंबर फिक्की की तरफ से स्वास्थ्य बीमा विषय पर आयोजित सेमिनार में भाग लेने के बाद हरिनारायण ने यह मानने से ही इनकार कर दिया कि इस विवाद में नियामक की कोई भूमिका है। उन्होंने कहा कि यह विवाद मुख्य तौर पर बीमा कंपनियों, अस्पतालों और थर्ड पार्टी एसोसिएट्स (टीपीए) के बीच कमीशन को लेकर है। इरडा तभी कार्रवाई कर सकती है जब बीमा कंपनियां पॉलिसीधारकों के साथ हुए समझौते को तोड़ती हैं। हालांकि उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि बीमा कंपनियां अपने ग्राहकों को झूठ बोल कर कैशलेस चिकित्सा सुविधा बेचती रही हैं तो आईआरडीए क्यों नहीं कार्रवाई कर सकता। उधर, मामले के समाधान के लिए सीआईआई की अगुवाई में सरकारी साधारण बीमा कंपनियों और अस्पताल नेटवर्क चलाने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के बीच शुक्रवार को बातचीत हुई। दोनों पक्षों में यह सहमति बनी कि वे दो अलग-अलग समितियां बनाएंगे जो रोजाना आधार पर मिलेंगी और एक महीने के भीतर समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करेंगी। बैठक के बाद प्रमुख हार्ट सर्जन और अस्पताल कंपनियों के प्रतिनिधि नरेश त्रेहन ने बताया कि इस बात की कोशिश होगी कि दस से तीस दिनों के भीतर पॉलिसीधारक, बीमा कंपनियों और अस्पताल कंपनियों के हितों को देखते हुए किसी नतीजे पर पहुंचा जाए।
कैशलेस मेडिक्लेम विवाद से भले ही बीमा नियामक इरडा ने पल्ला झाड़ लिया हो मगर उसने कहा है कि वह स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के नियमन के बारे में एक मसौदा जल्दी ही पेश करेगा। इससेबीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच विवाद की गुंजाइश कम होगी। नए नियमों में गंभीर बीमारियों और इलाज के खर्च आदि को परिभाषित किया जाएगा। इरडा के चेयरमैन जे हरिनारायण ने कहा कि मेरे पास इससे संबंधित मसौदा है और जल्द ही इन्हें जारी किया जाएगा। बीमा नियामक स्वास्थ्य बीमा के तहत गंभीर बीमारियों की मानक परिभाषा तय करेगा। इससे तीसरे पक्ष (टीपीए), बीमा कंपनियों और पॉलिसीधारकों के बीच भ्रम कम हो सकेगा। हरिनारायण ने कहा कि मैंने इस बारे में स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव को लिखा है। उनका ध्यान अब तक किए गए काम की ओर दिलाते हुए नियामक ने कहा है कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस पर विचार कर कुछ उचित मानक प्रक्रियाएं बताए। उद्योग संगठन फिक्की द्वारा गठित की गई एक समिति ने 11 गंभीर बीमारियों कैंसर, दौरे, गुर्दा फेल होने और प्रमुख अंग प्रत्यारोपण आदि की पहचान की है। स्वास्थ्य बीमा उद्योग में दावे की दर 100 प्रतिशत से ज्यादा है। इसका सीधा सा मतलब है कि बीमा कंपनियों को जितना प्रीमियम मिल रहा है उससे ज्यादा उन्हें दावों के निपटान के लिए देना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस उद्योग के स्थायित्व के लिए दावों की दर 70 प्रतिशत के आसपास होनी चाहिए। 2007-08 के दौरान स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम 2,757 करोड़ रुपये रहा था, जबकि 2,904 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया। इसी तरह 2008-09 में 3,975 करोड़ रुपये के प्रीमियम पर दावों का भुगतान 4,087 करोड़ रुपये रहा। जबकि वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान प्रीमियम 7,802 करोड़ रुपये और दावों का भुगतान 7,426 करोड़ रुपये रहा। जीआईसी के लिए आईपीओ दिशानिर्देश दो माह में साधारण बीमा कंपनियों (जीआईसी) के लिए आईपीओ संबंधी दिशानिर्देश दो माह में जारी कर दिए जाएंगे। जबकि जीवन बीमा कंपनियों के लिए दिशानिर्देश करीब करीब तैयार हैं और किसी भी समय जारी किए जा सकते हैं। जे हरिनारायण ने कहा कि गैर जीवन बीमा कंपनियों के मामले में मूल्यांकन को लेकर काफी काम किया गया है। जबकि जीवन बीमा कंपनियों के लिए प्रस्तावित आईपीओ दिशानिर्देशों का बाजार नियामक सेबी अध्यन कर रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र की जीवन बीमा निगम के अलावा देश में इस समय निजी क्षेत्र की 22 कंपनियां जीवन बीमा कारोबार में हैं। जबकि साधारण बीमा क्षेत्र की कंपनियों की संख्या 21 है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,31.7.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।