शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

बिहार में परंपरागत उपचार से मृत्यु दर में कमी लायेंगी दाइयां

भारत सरकार पारंपरिक प्रसव की बजाए सांस्थानिक प्रसव पर ज़ोर दे रही है। पारंपरिक प्रसव भी प्रशिक्षित दाइयों से ही कराने की सलाह दी जाती है मगर बिहार सरकार ने प्रशिक्षित महिलाकर्मी (दाई) को ले कर एक योजना को आकार देना शुरू कर दिया गया है। संस्थागत प्रसव में अपेक्षित कामयाबी नही मिलने से हो रही मौत को कम करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) ने भी प्रशिक्षित महिलाकर्मी (दाई) की संख्या कस्बों में बढ़ाये जाने की सलाह दी है। इससे मातृ मृत्यु दर में काफी कमी आने की संभावना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार प्रसव के दौरान 1980 में पांच लाख माताओं की मौत हुआ करती थी। यह संख्या घट कर 2008 में 3 लाख 50 हजार हुई और 2009- 10 में यह घट कर तीन लाख हो गई है। सेव चिल्ड्रेन नामक संस्था ने इसकी वकालत करते कहा भी कि विकासशील देशों में यह प्रयोग कर मातृ मृत्यु दर में कमी लाने में सफलता हासिल की है। एक रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश व पाकिस्तान में प्रशिक्षित महिला कर्मी के द्वारा प्रसव कराये जाने के बाद मातृ मृत्यु दर में कमी आने लगी है। इस प्रयोग के बाद बांग्ला देश में प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर में 64 प्रतिशत कमी आई है। पाकिस्तान में प्रशिक्षित दाई के सफल प्रयोग के बाद हर वर्ष 30 हजार माताओं के मृत्यु दर में कमी आई है। श्री लंका में भी मातृ मृत्यु दर में 42 प्रतिशत कमी आई है। इंडोनेशिया में हर गांव में एक दाई को प्रशिक्षित करने के बाद 42 प्रतिशत मातृ मृत्यु दर में कमी आई है। हालांकि बिहार में भी स्थिति यह है कि चार में से तीन प्रसव लगभग घर में हो रहे है। राज्य सरकार का दावा भी है कि राज्य में संस्थागत प्रसव का दर 28 प्रतिशत ही है। यह हाल तब है जब जननी सुरक्षा योजना के तहत महिलाओं को सं स्थागत प्रसव कराने के लिए प्रोत्साहन राशि का प्रावधान है। इस संदर्भ में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेयर की रिपोर्ट यह है कि अस्पताल दूर होने के कारण जननी को अपेक्षित सफलता नही मिली। इस सिद्धान्त पर स्वास्थ्य विभाग ने भी अमल करते मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रशिक्षित महिलाकर्मी का उपयोग किया और सफलता भी पाया। इसी संदर्भ में दो हजार ममता कार्यकर्ता जो अधिकतर एक विशेष जाति से आती है को प्रशिक्षण दिया गया। आगे इस संख्या को बढ़ाना भी है। आज इन सब का प्रभाव है कि संस्थागत प्रसव में बढ़ोतरी तो हुई ही मातृ मृत्यु दर में भी कमी आई। यही वजह भी है कि 2005 में जहां 45 हजार प्रसव होते थे वही 2010 में यह संख्या बढ़ कर 14 लाख हो गई है। स्वास्थ्य विभाग ने मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए हर अस्पताल में चार विशेषज्ञों की नियुक्ति को अनिवार्य कर दिया। इनमें एक महिला रोग, शिशु रोग,व मुर्छक विशेष के साथ एक सर्जन को शामिल किया गया(राष्ट्रीय सहारा,पटना,30.7.2010 में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)।

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