देश के विभिन्न इलाकों में छह एम्स जैसे अस्पतालों पर काम अगले हफ्ते से शुरू हो रहा है। इन अस्पतालों के लिए मंजूर बजट के मुकाबले निर्माण कंपनियों की ओर से डेढ़ गुना रकम मांगने के कारण चार महीने से इनका काम अधर में अटका पड़ा था, लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने नए सिरे से दिए ठेकों में सात सौ करोड़ की बचत की है। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पिछले हफ्ते गुरुवार को नए सिरे से पूरी की गई इस प्रक्रिया के बाद अब यह दावा किया जा सकता है कि दो साल के अंदर छह जगहों पर ये बड़े अस्पताल बन कर खड़े हो जाएंगे। इनका निर्माण 1557.32 करोड़ रुपये की स्वीकृत रकम से भी कम में पूरा किया जा सकेगा। मार्च की निविदा प्रक्रिया में यह रकम डेढ़ गुनी बढ़ कर 2231.28 करोड़ पहुंच रही थी। जबकि नई रकम इसके मुकाबले सात सौ करोड़ कम है। अब अगले हफ्ते के मंगलवार तक इनके लेटर ऑफ अवार्ड जारी होने के साथ ही यहां निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। इन एम्स का काम लटक जाने के पीछे स्वास्थ्य मंत्रालय की मजबूरी यह थी कि इसने मार्च में ही इनका बजट दुगना करने की कैबिनेट से मंजूरी ली थी। ऐसे में इसे फिर से डेढ़ गुना बढ़ाना मुमकिन नहीं था। नई प्रक्रिया में यह काम तीन बड़ी कंपनियों एल एंड टी, बीएल. कश्यप और जेएमसी को मिला है। इन्हें ये अस्पताल हर हाल में दो साल के अंदर बना लेने हैं। सरकार की ओर से रखी गई शर्तो के मुताबिक देरी होने पर इन्हें डेढ़ फीसदी प्रति माह के हिसाब से दस फीसदी तक का जुर्माना किया जाएगा। जबकि काम पहले होने पर प्रति माह एक फीसदी तक का बोनस दिया जाएगा। इन सभी जगहों पर डॉक्टरों और छात्रों के होस्टल का निर्माण पहले शुरू हो गया था। इनमें से जोधपुर और रायपुर में यह काम पूरा भी हो चुका है। जबकि मेडिकल कॉलेज परिसर का काम इसी साल मई और जून के महीने में शुरू हुआ है(मुकेश केजरीवाल,दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,29.7.2010)।
सार्थक व सराहनीय प्रयास लेकिन इन संस्थानों की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए डॉक्टरों को भी इंसानी सम्बेद्नाओं से भरने का भी प्रयास करना होगा क्योकि डॉक्टर अगर इंसान नहीं हुआ तो ये सभी संस्थान एक कसाई खाना भर बनकर रह जायेगा ..?
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