दोस्तों के साथ बाहर घूमना और देर रात तक उनके घर रुकना बच्चों के लिए कोई नई बात नहीं है। मगर नए शोध में कहा गया है कि बच्चों द्वारा इस्तेमाल की जा रही तकनीक उनसे उनकी नींद छीन रही है। दिन ब दिन उनके जरूरत भर आराम का समय कम होता जा रहा है। पिछले साल लंदन में पीडिएट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया था कि बच्चे अपने मनोरंजन के लिए दिन के बजाए रात का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। सर्वे में पाया गया कि हाई स्कूल में पढ़ने वाले 82 फीसदी बच्चे नौ बजे के बाद टीवी देखते हैं, 55 फीसदी कंप्यूटर पर ऑनलाइन होते हैं, 44 फीसदी फोन पर बातें करना शुरू करते हैं जबकि अन्य 34 फीसदी सेलफोन पर मैसेज भेजते हैं। सिर्फ 21 फीसदी बच्चे ही आठ से 10 घंटे की पर्याप्त नींद लेते हैं। 2007 में बेल्जियम के बच्चों पर किए गए अध्ययन में बताया गया था कि 16 साल के 40 फीसदी बच्चे महीने में कम से कम एक बार सेलफोन मैसेज के जरिए उठते हैं। इसका परस्पर संबंध दिन में आने वाली नींद के उच्च स्तर से है। कम नींद के कारण होने वाले खतरों (कूल में खराब प्रदर्शन, मोटापा, अवसाद) की चेतावनियों के बावजूद किशोरों और उनके अभिभावकों का कहना है कि किशोरों में थकावट जीवन की सच्चाई बन चुकी है। बेहतर अभिभावक वही हैं जो बच्चों की नींद की जरूरत और उनके लिए तकनीक की जरूरत के बीच तालमेल बैठा सकते हैं। इस संबंध में 18 वर्षीय किशोर रॉस निकिडेस का कहना है, बच्चों को नींद की कीमत इसलिए नहीं मालूम है क्योंकि उनके चारों ओर कई ऐसी चीजें मौजूद हैं जो उनका ध्यान भंग करती हैं। नेशनल स्लीप फाउंडेशन की निदेशक और स्लीप रिसर्चर एमी वोल्फसन का कहना है कि वैज्ञानिक बच्चों की नींद को लेकर तमाम थ्योरियां बता चुके हैं कि क्यों तकनीक के कारण उनकी नींद कम हो रही है। इस पर कई शोध अभी भी जारी हैं। कुछ का कहना है कि मीडिया ने नींद और व्यायाम की जगह ले ली है। अन्य बढ़ते टीवी कार्यक्रमों, वीडिया गेम्स और संगीत को नींद में आने वाली बड़ी बाधा मानते हैं। कैफीन का बढ़ता इस्तेमाल भी एक कारक हो सकता है। वोल्फसन ने कहा कि सबसे विवादित अवधारणा यह है कि टीवी स्क्रीन की चमकदार रोशनियां किशोरों के शरीर में मेलाटोनिन (वह हार्मोन जो रात को नींद आने के लिए जिम्मेदार होता है) के स्राव को धीमा करती हैं(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,28.7.2010)।
बिल्कुल सही कहा!
जवाब देंहटाएंइस टीवी और मिडिया में भ्रष्टाचार ने और भी कई बिमारियों को जन्म दिया है ,इसके फायदे एक है तो नुकसान बेहिसाब ,आने वाले दिनों में इसका और भी भयानक रूप होगा ...मोबाईल कंपनियों को भी सिर्फ पैसों से मतलब है ...
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