केंद्र सरकार गांवों के बाद अब शहरों के गरीबों की सेहत के लिए भी खजाने का दरवाजा खोलने जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सात साल के लिए 33 हजार करोड़ की राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) योजना को अंतिम रूप दे दिया है। हालांकि इसका वास्तविक फायदा लोगों तक वर्ष 2012 तक ही पहुंच सकेगा। लेकिन उससे पहले की आधारभूत तैयारी जल्दी ही शुरू कर दी जाएगी। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुजाता के. राव ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि शहरी स्वास्थ्य मिशन के तहत दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले गरीबों से लेकर कानपुर और मुजफ्फरपुर तक 640 शहरों के गरीब लोगों को शामिल किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय का आकलन है कि 2011 तक इन शहरों की आबादी 35.7 करोड़ हो जाएगी, लेकिन योजना का लक्ष्य यहां झुग्गी-झोपडि़यों में रहने वाले लोग हैं। राव के मुताबिक इस योजना के सारे ब्योरे तैयार हो चुके हैं। हालांकि इसका आधारभूत काम करने के बाद इसका फायदा लोगों तक पहुंचाने में दो साल तक का समय लग सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए 17 अध्यायों में 115 पृष्ठ के इसके विस्तृत ब्योरे में शुरुआत के सात साल के लिए 33 हजार करोड़ रुपये का खर्च तय किया गया है। इसके मुताबिक योजना का आधारभूत काम इसी वित्त वर्ष में शुरू हो जाना है। शुरुआती दो वर्ष केंद्र सरकार इसके तहत खर्च होने वाली रकम का 85 फीसदी देगी, जबकि उसके बाद के पांच साल के दौरान यह घट कर 75 फीसदी हो जाएगा। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं की तरह एक से ढाई हजार की आबादी पर एक उषा (शहरी सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) रखने की योजना है। औसतन हर दस हजार की आबादी पर एक स्वास्थ्य चौकी गठित की जाएगी। इसमें एक एएनएम (सहायक नर्स-दाई) और एक पुरुष सामुदायिक कार्यकर्ता शामिल किया जाएगा। इसी तरह 50 हजार की आबादी पर एक प्राथमिक शहरी स्वास्थ्य केंद्र (पीयूएचसी) बनाए जाएंगे। जिन बीमारियों का इलाज इन स्वास्थ्य केंद्रों पर नहीं हो सकेगा, उनके लिए बड़े शहरी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों से भी तालमेल किया जाएगा, जहां गरीब मरीजों के इलाज का खर्च सरकार उठाएगी। उषा कार्यकर्ता गरीब महिलाओं को महिला आरोग्य समिति गठित करने में मदद करेंगी। 20 घरों की महिलाएं अगर एक साथ जुट कर ऐसी समिति गठित करने के लिए तैयार होती हैं तो उन्हें ढाई हजार की रकम मदद के तौर पर मंत्रालय की ओर से दी जाएगी। आपसी सहयोग और सरकारी धन को मिला कर बनाए फंड का इस्तेमाल गरीब महिलाएं अपने परिवार में किसी तरह की स्वास्थ्य समस्या आने पर कर सकेंगी। योजना की शुरुआत जीआईएस (भौगोलिक सूचना तंत्र) मैपिंग से की जाएगी। इसके तहत हर शहर की हर बस्ती में मौजूद गरीबों आबादी और मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं की पहचान कर आंकड़े तैयार किए जाएंगे। योजना में कहीं कोई गड़बड़ी न कर सके इसके लिए सिर्फ प्लानिंग और मैपिंग के लिए 118 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है(मुकेश केजरीवाल,दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,27.7.2010)।
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