सोमवार, 26 जुलाई 2010

उत्तराखंड में इलेक्ट्रो होम्योपैथ को मिली प्रैक्टिस की अनुमति

उत्तराखंड में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सक अब झोलाछाप नही कहलाएंगे। सरकार ने उन्हें शर्तों के साथ प्रैक्टिस करने की अनुमति दे है। प्रैक्टिस करने वालों को अपने नाम के आगे चिकित्सक लिखने का अधिकार नही होगा। नेचरो इलेक्ट्रो होम्यो मेडिकोज आफ इंडिया (एईएचएम) द्वारा पंजीकृत इलेक्ट्रोपैथी पद्धति के चिकित्सक लंबे समय से प्रदेश में प्रैक्टिस कर रहे है, जबकि इस पद्धति के चिकित्सकों को प्रदेश में प्रैक्टिस करने की अनुमति नही है। इसके कारण स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन की ओर से इस पद्धति से इलाज कर रहे चिकित्सकों को झोलाछाप की श्रेणी में रखकर गिरफ्तार किया जाता रहा। इलैक्ट्रोपैथी से उपचार के प्रति समाज में विश्वसनीयता को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी थी। इलेक्ट्रोपैथिक प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन व जिला प्रशासन हमेशा आमने-सामने रहे। प्रदेश में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सकों के पंजीकरण के लिए राज्य स्तर पर काउंसिल व बोर्ड का गठन करने के लिए लंबे समय से एसोसिएशन आंदोलन करती रही। केंद्र स्तर पर भी इस पद्धति को मान्यता दिलाने के लिए इन चिकित्सकों का आंदोलन चला। मगर पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर केंद्र की ओर से इन चिकित्सकों को राहत दी गई थी। इसके मद्देनजर प्रदेश सरकार ने इन चिकित्सकों को प्रतिबंधों के साथ प्रैक्टिस करने की अनुमति दे दी है। प्रमुख सचिव आयुष राजीव गुप्ता की ओर से जारी आदेश के अनुसार इलेक्ट्रोपैथी पद्धति से प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सक केंद्र से इस पद्धति को मान्यता मिलने तक प्रदेश में इलाज कर सकेंगे, लेकिन इन्हें अपने नाम के आगे डाक्टर लिखने का अधिकार नही होगा। यही नही, यह अपनी नेम प्लेट के आगे भी डाक्टर नही लिख सकें गे और इलेक्ट्रोपैथी पद्धति के अतिरिक्ति किसी अन्य पद्धति से इलाज नही करेंगे। अस्पताल के बोर्ड में स्पष्ट लिखना होगा कि यह मान्यता प्राप्त नही है। प्रमुख सचिव की ओर से सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए है कि वह इन प्रतिबंधों का पालन सुनिश्चित करायें। प्रदेश में इस पद्धति के हजारों चिकित्सक है। इन्हें अब अपनी काबिलियत को पूरी तरह से सामने लाने का अवसर मिला गया है। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डा. केपीएस चौहान ने कहा है कि उत्तराखंड इलेक्ट्रो होम्योपैथ बोर्ड की सूची में जिनके नाम नही है वह भी अप्लाई करके इसमें शामिल हो सकते है। इस पैथी के मान्यता प्राप्त न होने के कारण वर्ष 2003 में एक व्यक्तिगत याचिका पर पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने इस पैथी की प्रेक्टिस करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध डा. एनके अवस्थी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि यह पैथी आयुर्वेदिक बेस है, इसलिए इसकी प्रैक्टिस पर रोक नहीं होनी चाहिए। किसी मरीज की ओर से नुकसान की शिकायत भी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाए गए फैसले में स्पष्ट हो गया कि कानून में पैथी की प्रेक्टिस पर रोक लगाने का कोई प्रावधान नहीं है व इलेक्ट्रोपैथ निसंकोच प्रैक्टिस कर सकते हैं। (राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,24 व 26 जुलाई,2010 के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. Yah to nihayat khushkhabri hai... Swasthya sewaon kee sudur anchalon ke sakht jarurat hai....
    Asha hai doctory pesha se jude sabhi log apni jumedaaria ko bhalibhati samjhkar Jansewa ke apekshaon par khare utrenge...
    Saarthak post prastuti ke liye dhanyavaad..

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  2. यह इतनी अच्छी चिकित्सा पद्धति है जिसकी कितनी भी प्रसंशा की जाय वह कम है.मैंने अपने प्रैक्टिस के दरम्यान ऐसे miracle रिजल्ट पाए जो मेरे से संभव नहीं लगता पर महिलाओं के लिए तो इलेक्ट्रो पद्धति रामबाण की तरह है और यदि शाकाहारी व्यक्ति हो तो और उत्तम कम करती है अन्य के वनिस्पत.

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