पंजाब में आयुर्वेदिक दवा निर्माताओं पर विभाग ने शिंकजा कसने की तैयारी कर ली है। उन दवा निर्माताओं पर विभाग की नजर टेढ़ी हो गई है, जिन्होंने सरकार से थोक में दवा के फामरूला तो पास करा लिया, लेकिन दवा बनाने की बजाय फामरूला दबाकर बैठ गए।
ऐसी फार्मेसियों को अब या तो दवा का निर्माण करना होगा या फार्मूला विभाग के पास सरेंडर करना पड़ेगा। विभाग ने इसके लिए लिस्ट तैयार करनी शुरू कर दी है। सरकार की इस कवायद के बीच फामरूले छिनने के डर से दवा निर्माताओं में हड़कंप मच गया है।
अहम बात यह है कि अभी तक किसी जिले के अफसरों के पास यह पुख्ता जानकारी ही नहीं थी कि उनके क्षेत्र में कितने फामरूले पास हो चुके हैं और कितनों में दवा का निर्माण हो रहा है। अब हाल ही विभगा का ध्यान इस ओर गया है। उसके बाद स्टेट हेडक्वार्टर ने सभी जिलों के आयुर्वेदिक अफसरों को लिस्टें तैयार करने को कहा है।
उन्हें पूरा ब्यौरा सीडी में दर्ज कर हेडक्वार्टर भेजने के निर्देश दिए गए हैं। आयुर्वेदिक दवा निर्माता को दवा बनाने से पहले विभाग से उसका फामरूला पास कराना होता है। इसके लिए वे फाइल तैयार कर विभाग के पास भेजते हैं। उन्हें एक फार्म में दवा का नाम, लेटिन नेम, दवा में इस्तेमाल कंपोनेंट, दवा के लिए रेफरेंस बुक का ब्यौरा, दवा बनाने की विधि व डोज के अलावा पूरी जानकारी दर्ज करनी होती है।
जिला आयुर्वेदिक अफसर के पास फाइल जमा होने के बाद केस तीन मेंबरी कमेटी के पास चला जाता है, जो फार्म में दिए गए ब्यौरों का वेरिफिकेशन करती है। कमेटी की संतुष्टि हो जाए तो फाइल को रेकमंड कर स्टेट फामरूलेशन कमेटी के पास भेज दिया जाता है। पिछले समय में विभाग ने धड़ाधड़ फामरूले पास कर दिए।
इनमें से कई आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियों ने फामरूले पास कराने के बाद दवा बनाई ही नहीं। जिला आयुर्वेदिक अफसर डा.नरिंदर ढंड ने इस कवायद की पुष्टि करते हुए कहा कि स्टेट से हिदायतें मिली हैं। जो फार्मेसियां दवा नहीं बनाएंगी, उन्हें फामरूले सरेंडर करने को लिखा जाएगा। उधर, विभाग के इस कदम पर विरोध में स्वर भी उठने लग गए हैं।
निर्माताओं ने आफ द रिकार्ड कहा कि कुछ दवाओं की घरेलू खपत बिल्कुल नहीं है और वह सिर्फ निर्यात होती हैं। इन दवाओं का निर्माण आर्डर बेस होता है। जब भी आर्डर मिलता है, दवा बनाकर भेज दी जाती है। ऐसे में विभाग यह कहकर उनका फामरूला वापस नहीं ले सकता कि उन्होंने लंबे समय से वह दवा नहीं बनाई( विपिन जंड,दैनिक भास्कर,लुधियाना,26.7.2010)।
लगता है, इन फ़ार्मूले रजिस्टर कराने वालों ने इंटनेट के squatters से यह हथकंडे सीख लिए है कि उत्पादन की क्या ज़रूरत है बस कापीराइट बेच कर ही धन्नासेठ बन लिया जाए.
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