इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि डॉक्टर अपने आवास पर परामर्श क्लीनिक चला सकते हैं किन्तु वे रिहायशी कालोनी में स्थित अपने आवास में अस्पताल या नर्सिग होम नहीं चला सकते। क्योंकि यह आवंटन शर्तो के विपरीत है। न्यायालय ने कहा है कि ऐसा करने से न केवल पड़ोसियों वरन पूरी कालोनी के लोगों के हितों को नुकसान पहंुचता है। यह जरूरी है कि रिहायशी कालोनी का इस्तेमाल आवासीय रूप में ही किया जाए। न्यायालय ने वकीलों, कंसल्टेंट, आर्कीटेक्ट, चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रापर्टी डीलर व सरकारी गाइडों को भी इसी श्रेणी में माना है। न्यायालय ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के अंतर्गत सभी को अपनी मर्जी से व्यवसाय करने का मूल अधिकार प्राप्त है किन्तु इस अधिकार पर सरकार अनुच्छेद 19 (6) के तहत शर्ते थोप सकती है। आवास विकास परिषद इटावा व मुख्य चिकित्साधिकारीने याची डॉक्टरों को आवासों को अस्पताल के रूप में बदलने पर रोक लगाते हुए व्यवसाय कालोनी के बाहर शिफ्ट करने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि ऐसा न करने पर उनके पंजीकरण निरस्त कर दिए जाएंगे। न्यायालय ने इस नोटिस को सही व विधि सम्मत माना और कहा कि यह याचियों के व्यवसाय करने के अधिकारों पर रोक नहीं लगाता। इसलिए हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी तथा न्यायमूर्ति काशीनाथ पांडेय की खंडपीठ ने इटावा के डॉ. शिव मिलन यादव, डॉ. सुमन सिंह, डॉ. ओम हरि अग्निहोत्री, डॉ. संजय कुमार दोहरे व डॉ. वीके वर्मा की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है। न्यायालय ने कहा है कि सभी नर्सिग होमों या अस्पतालों के संचालकों को अल्ट्रासाउंड मशीन, एक्स-रे प्लांट व कचरा निस्तारण के लिए संबंधित प्राधिकारियों से अनुमति व लाइसेंस प्राप्त करना चाहिए। याचियों ने ऐसा किए बगैर छोटे-छोटे कमरों में अस्पताल चलाना शुरू कर दिया(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,20.7.2010)।
उत्साहवर्द्धक जानकारी।
जवाब देंहटाएंआभार।
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अथातो सर्प जिज्ञासा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?