राइटर्स क्रैम्प रोग केवल उंगलियों या हाथ के मोड़ को प्रभावित करने वाला ही रोग नहीं है, बल्कि इसका असर कुहनी, कंधों और गर्दन तक जा पहुंचता है। इसका सीधा संबंध तंत्रिका तंत्र से है। जब हम लिखने का कार्य करते समय उंगलियों से पकड़ लेते हुए हाथ चलाते हैं तो लगातार पड़ता दबाव न केवल हाथ और उंगलियों को प्रभावित करता है बल्कि देर तक ऐसा करने से इसका दबाव मस्तिष्क तक भी जा पहुंचता है और तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है।
मस्तिष्क में उत्पन्न कोई भी तनाव सीधा तंत्रिका तंत्र पर असर डालता है जो लौटकर विभिन्न अंगों को प्रभावित करता है। हाथ का पूरा क्षेत्र, पीठ यहां तक कि आंखें भी इससे प्रभावित होती हैं। कुछ दशाओं में रीढ़ की हड्डी का रोग, पार्किसंस, गर्दन की हड्डी रोग के कारण भी हाथ में कंपन और उंगलियों में जकड़न हो जाती है।
क्या करें जब भी इस प्रकार की स्थिति हो तो तत्काल काम बंद कर दीजिए। ध्यान रखिए शरीर के किसी भी अंग पर ज्यादा जोर डालना, उसका ज्यादा प्रयोग करना अंग विशेष के लिए ही नहीं बल्कि आपके मस्तिष्क के लिए सबसे ज्यादा घातक है। गंभीर स्थिति में यही मानसिक विकृतियां पैदा करता है और हाथ-पांव में कंपन और फालिज मार जाने की स्थिति पैदा कर देता है।
राइटर्स क्रैम्प की प्रारंभिक अवस्था में ही सचेत हो जाइए। हाथ का व्यायाम इस स्थिति के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है। इसके लिए अपनी उंगलियों को बार-बार फैलाइए। लगभग बीस बार मुट्ठी बंद कीजिए और खोलिए। इसके बाद मुट्ठी बंद कर कलाई को दाहिनी ओर घुमाइए, फिर बाईं ओर घुमाइए। इस प्रक्रिया को दस बार दोहराएं, लेकिन अपनी क्षमता से ज्यादा न करें वरना फिर नए तनाव की स्थिति पैदा हो जाएगी।
ज्यादा ड्राइविंग सेहत का कबाड़ा युवाओं का शौक है तेज रफ्तार ड्राइविंग। आज ज्यादातर युवाओं में ड्राइविंग की वजह से कंधे, कलाई और कमर दर्द की समस्या आम है। ऐसा उन लोगों में देखा गया है जो लगातार 2-3 घंटे बाइक चलाते हैं। आमतौर पर देखने में आता है कि प्रत्येक आठ में से एक व्यक्ति के साथ यह दिक्कत उठती है।
शोध बताते हैं कि 16 से 24 वर्ष के युवाओं में तीन में से एक को ड्राइविंग के दौरान पीठ दर्द की शिकायत होती है। ये भी देखा गया है कि आजकल कई युवा स्कूल और कॉलेज भी बाइक से ही जाने लगे हैं। बाइक चलाने से होने वाली दिक्कतों की वजह से उन्हें आये दिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई में भी बाधा आती है।
बाइक चलाने वाले युवाओं में आमतौर पर पीठ दर्द की समस्या जल्दी देखने को मिलती है, जबकि बड़ी उम्र के लोगों में दीर्घकालिक तौर पर यह दिक्कत देखने में आती है। बाइक चलाते समय लंबे समय तक लगातार कंपन झेलते रहने की वजह से रीढ़ की हड्डी लगातार दबाव पड़ता है।
दरअसल, रीढ़ की हड्डी हमारे शरीर का आधार होती है। यदि इसमें दर्द हो तो इसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है। दर्द बढ़ जाने पर धीरे-धीरे इसकी हड्डियां झुकने लग जाती है। ऐसे में लोगों का चलना-फिरना, उठना-बैठना मुश्किल होता है।
सही पॉस्चर का न होना आज का युग कम्प्यूटर का युग है। युवाओं में मोबाइल फोन, कम्प्यूटर गेम्ज आदि के प्रति आकर्षण बेहद बढ़ चुका है। एक ही मुद्रा में घंटों बैठे रहना, शारीरिक बीमारियों का रूप ले रहा है। पिछले कुछ वर्षो से कार्यशैली में भी अनेक परिवर्तन आए हैं।
कार्यस्थल पर झुककर बैठना, तन कर न खड़े होना, अनुकूल स्थितियों का अभाव अनेक दुविधाएं खड़ी कर रहा है। कुछेक स्थलों पर कुर्सी-मेज आदि फर्नीचर अनुकूल न होने से पीठ, गर्दन, बांहों आदि में दर्द का कारण बनता है। लगातार एक ही स्थिति में बैठे रहना ही इस दर्द को जन्म देता है।
सही ढंग से तनकर बैठना रीढ़ की हड्डी को सीधा रखता है। और ऐसी मुद्रा में अधिक देर तक न रहना भी अनेक बीमारियों को दूर कर देता है।
उठने-बैठने के तरीकों पर अनेक तथ्य व भ्रांतियां हैं। फिर भी गलत पॉस्चर के कारण अन्य समस्याओं के साथ-साथ सर्वाइकल की समस्या सबसे अधिक देखने में आती है। ऑक्युपेशनल स्ट्रेस यानी काम अधिक होने पर तनाव की स्थिति उपजती है। ऐसे में शरीर के कई हिस्सों में दर्द उठता है। इनमें..
-उठने-बैठने आदि की गलत मुद्राओं के कारण -जोड़ों की संरचना -मांसपेशियों व कोशिकाओं की स्थिति -निराशा की स्थिति -थकावट आदि।
जिम का पैशन जानलेवा यह आमफहम गलतफहमी है कि जिम में व्यायाम करना हमेशा फायदेमंद रहता है। यह आपके शारीरिक ढांचे पर निर्भर करता है कि आपको कौन सा व्यायाम करना चाहिए। जिम में कड़ी मेहनत कर पसीना बहाने का तब तक कोई फायदा नहीं जबकि आपकी यह आदत पुरानी न हो। कामकाजी व्यक्ति के पास इसका समय अक्सर नहीं होता। इसलिए अपनी शारीरिक क्षमताओं को पहचानें और हल्के-फुल्के व्यायाम पर ही ज्यादा जोर दें।
फिजियोथेरेपिस्ट की राय कमर, जोड़ों और घुटनों आदि दर्द के लिए जितना जरूरी उपचार है, उससे कहीं अधिक सावधानियां बरतना भी जरूरी हैं। रोगी चिकित्सक द्वारा बताई गई सावधानियां बरतकर रोज-रोज की समस्याओं से मुक्ति पा सकता है और सामान्य जीवन जी सकता है।
गर्दन दर्द -अधिक समय तक सिर झुका कर काम नहीं करना चाहिए। -ठीक पॉस्चर में बैठना और सोना चाहिए। -सोते समय तकिये का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि आदत हो तो पतला से तकिया इस्तेमाल कर सकते हैं। -सिर के नीचे बहुत से तकिये रखकर लेट हुए समाचार पत्र न पढ़े और न ही टीवी देखें। -कम्प्यूटर से काम करने वाले लोग मेज की ऊंचाई सही रखें, जिससे उन्हें सिर झुकाकर काम न करने पड़े। -कम्प्यूटर पर काम करते समय हर घंटे में थोड़ी देर आराम करें व गर्दन दाएं, बाएं व पीछे मोड़ें। -सावधानी न बरतने पर दर्द बढ़ जाएगा, मांसपेशियों में तनाव रहेगा। कभी-कभी चक्कर भी आ सकते हैं। यदि कारण डिस्क का प्रोलेप्स है तो नस पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे बाजुओं में कमजोरी आ सकती है।
कमर दर्द - सोते समय सख्त बिस्तर और पतले तकिए का प्रयोग करें। - बैठते समय अपनी कमर सीधी रखें और सहारा लेकर बैठें। - उठते समय पहले करवट पर आएं फिर कूल्हा व घुटने मोड़ते हुए अपनी ऊपरी हाथ का सहारा लें। - भारी सामान उठाते के लिए अपने घुटने मोड़े और कमर सीधी रखें। - लम्बे समय तक एक ही अवस्था में न खड़े हों और न ही बैठें। - अचानक और झटकेदार शारीरिक क्रियाएं न करें। - स्त्रियां ऊंचे वॉश बेसिन का इस्तेमाल करें। - प्रेस करने वाली मेज उचित ऊंचाई वाली होनी चाहिए, जिससे कमर सीधी रहे। - बच्चे को ऊपर उठाने के लिए अपने घुटने मोड़कर बच्चे को अपनी सीने से लगाएं और कमर तथा पीठ सीधी करके उसे उठाएं। - यदि सावधानी न बरती गयीं तो कमर दर्द और बढ़ जाएगा। यदि कमर दर्द का कारण डिस्क प्रोलेप्स है तो नस पर दबाव बढ़ सकता है जिससे टांगों में कमजोरी आ सकती है।
घुटनों का दर्द -वजन पर नियंत्रण रखें। इसके लिए हल्का व्यायाम कारगर रहता है। -चौकड़ी लगाकर न बैठें। -बैठते समय घुटने मोड़कर (उकड़) न बैठें। -सीढ़ी चढ़ते समय झटकेदार गतिविधियां न करें। -लम्बे समय तक एक जगह पर न खड़े हों। -बाजू वाली कुर्सी पर बैठने को कोशिश करें और उठते समय कुर्सी की बाजुओं पर जोर देकर उठें। -सावधानी न बरतने पर टांगें कमान की तरह टेढ़ी हो जाती हैं और व्यक्ति आढ़ा तिरछा झूल-झूलकर चलने लगता है(डॉ. सुजाता मलिक,हिंदुस्तान,दिल्ली,22.6.2010)।
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