मध्यप्रदेश के लिए गंभीर समस्या बन चुकी टीबी से निबटना अब आसान होगा। स्वास्थ्य विभाग ने टीबी को काबू करने के लिए नई योजना तैयार की है। डाट के बाद अब डाट प्लस तकनीक के जरिए टीबी पर पूरी तरह से नियंत्रण किया जा सकेगा। पहले चरण में प्रदेश के तीन महानगरों इंदौर, भोपाल व जबलपुर में डाट प्लस शुरू की जाएगी और 2012 तक प्रदेश के सभी जिलों में इस तकनीक से टीबी का इलाज शुरू हो जाएगा। स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी इसके जल्द शुरू कराने के प्रयास में जुटे हैं, लेकिन मामला प्रदेश की प्रयोगशालाओं की मान्यता को लेकर अटका हुआ है। मान्यता मिलने के बाद ही प्रदेश में डाट प्लस की शुरुआत हो पाएगी। प्रदेश में अभी तक टीबी रोगियों के इलाज की सबसे नवीनतम तकनीक डायरेक्टली आब्जर्वड थेरेपी (डाट) है। यह तकनीक टीबी को काबू करने में काफी कारगर हुई है, लेकिन इसमें कई बार मरीजों की लापरवाही भारी पड़ जाती है। डाट में टीबी मरीजों को दवा खिलाने का जिम्मा स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर होता है, लेकिन कभी इन कर्मचारियों की लापरवाही तो कभी मरीज के दवा नहीं खाने से टीबी नियंत्रण की मुहिम कमजोर पड़ जाती है। इसके अलावा जागरूकता की कमी भी एक मुसीबत बन जाती है। कई मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचने के बाद अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। डाट प्लस के आने के बाद जांच से लेकर इलाज तक में बदलाव किया गया है। इससे टीबी को रोकने में काफी मदद मिलेगी। डाट प्लस सबसे पहले इंदौर में शुरू किया जाएगा। यहां टीबी अस्पताल में में मरीजों को भर्ती किया जाएगा और चोइथराम अस्पताल को रिसर्च सेंटर बनाया जाएगा। इसके बाद भोपाल में डाट प्लस चालू होगा। यहां पर बीएमएचआरसी को जांच केन्द्र बनाया जाएगा। बाद में जबलपुर में यह योजना शुरू होगी और मेडिकल कालेज में टीबी मरीजों की जांच की जाएगी। डाट प्लस में सबसे ज्यादा जोर लैब पर है। इन तीनों लैब में डाट प्लस की जांच के लिए आईसीएमआर दिल्ली, नेशनल टीबी इंस्टीट्यूट बंगलौर एवं आरएमआरसीटी जबलपुर से मान्यता ली जानी है। इनकी मान्यता के फेर मे ही डाट प्लस में देरी हो रही है। क्यों पड़ी जरूरत : डाट में कुछ मरीजों पर दवाओं का असर होना बंद हो जाता है। इस कारण टीबी ठीक नहीं हो पाती है। अब डाट प्लस में सबसे अधिक जोर कल्चर टेस्ट पर दिया जाएगा, ताकि यह देखा जा सका किस मरीज पर कौन सी दवा सबसे असरकारी रहेगी। कल्चर टेस्ट के लिए उन्नत लेब सबसे बड़ी जरूरत है, इसलिए इसमें लेब की क्षमता पर सर्वाधिक जोर दिया जाएगा(शशिकान्त तिवारी,दैनिक जागरण,भोपाल,16.7.2010)।
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