गुरुवार, 8 जुलाई 2010

ब्रूसीलोसिस प्रजनन क्षमता भी कर देती है क्षीण

दुधारू पशुओं को होने वाली ब्रूसीलोसिस नामक बीमारी इतनी गंभीर है, जो देखभाल करने वालों को ही अपनी चपेट में लेकर उनकी प्रजनन क्षमता को क्षीण करने के साथ-साथ अन्य कई तरह की बीमारियां लगा देती है। ब्रूसीलोसिस नामक बीमारी दूध देने वाले लगभग सभी पशुओं यानि गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि को होती है। यही नहीं यह बीमारी पशुओं से मनुष्यों में भी फैलती है। हालांकि यह बीमारी फिलहाल काफी कम है, लेकिन यह बीमारी बहुत घातक है। इस बीमारी में पशु का बार-बार गर्भपात हो जाता है। यह गर्भपात तीन माह के गर्भ से लेकर गर्भ का समय पूरा होने तक किसी भी समय हो सकती है। जब भी दुधारू पशु खासकर गाय और भैंस बच्चों को जन्म देते हैं तो यह इसके कीटाणु भी उसमें चले जाते हैं। ऐसे पशु अक्सर मरे हुए बच्चों को जन्म देते हैं। यदि कोई बच्चा जीवित पैदा हो भी जाए तो वह कुछ ही समय बाद मर जाता है। कई बार तो बच्चा मां के गर्भ में ही मरकर गल-सड़ जाता है। इस बीमारी में पशु को बार-बार बुखार चढ़ता-उतरता रहता है। इसे अंडूलेटिंग फीवर के नाम से भी जाना जाता है। इससे पीडि़त पशु कमजोर रहते हैं उनकी दूध पैदा करने की क्षमता भी बहुत कम हो जाती है। इसके कारण पशुपालक को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इस बीमारी का इलाज भी काफी महंगा है। यही कारण है कि कोई भी वैटनरी डाक्टर न तो पशु का इलाज कराने के लिए रिकमेंड करता है और न ही पशुपालक इलाज कराते हैं। यही नहीं यह बीमारी पशुपालक को भी घेर लेती है। कई राज्यों में लोग ऐसे पशुओं को स्लाटर हाउस में दे देते हैं। वरिष्ठ वैटनरी आफिसर डॉ. आरपी सिंह के अनुसार वैसे तो मनुष्य की चमड़ी अनेक तरह के कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकने के लिए अवरोधक का कार्य करती है, लेकिन इस बीमारी के कीटाणु इतने खतरनाक हैं कि वे मनुष्य की चमड़ी को भेदकर भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इसके अलावा पीडि़त पशु का दूध निकालते हुए यदि दूध के छींटे मुंह अथवा आंखों में पड़ जाएं तो भी मनुष्य को यह बीमारी घेर लेती है। इसके अलावा पशुओं की देखभाल के समय उनकी सांस से, उनकी प्रसूति कराते समय होने वाले डिस्चार्जिग से यह बीमारी फैलती है। इस बीमारी के प्रति जागरूकता न होने के कारण पशुपालक, पीडि़त पशुओं को दूध बेचते हैं जो दूधिए दूध क्रीम निकलवाते हैं वहां काम करने वाले कर्मचारी तथा बेकरियों में बिना स्ट्रलाइज किए क्रीम का उपयोग करने वाले कर्मचारी विवाह-शादियां अथवा अन्य समारोहों खाद्य पदार्थाें में इस क्रीम तथा दूध का उपयोग करने वाले लोग भी इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। डॉ. सिंह ने बताया कि जिन पशुपालकों को यह बीमारी लग जाती है उनमें प्रजनन शक्ति क्षीण हो जाती है। डॉ. आरपी सिंह ने बताया कि इस बीमारी से बचाव के लिए यदि पशु के नॉर्मल बच्चों का सही समय पर टीकाकरण कर दिया जाए तो वह पशु जीवनभर के लिए सुरक्षित हो जाता है। भले ही वह ब्रूसीलोसिस बीमारी से संक्रमित पशु की चपेट में आता रहे। इस संदर्भ में डा राज कुमार अरोड़ा डिप्टी डायरेक्टर एनिमल हसबेंडरी विभाग मोहाली ने कहा कि विभाग द्वारा समय-समय पर इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए पशुपालकों को विशेष शिविरों में जागरूक करने का प्रयास किया जाता है(दैनिक जागरण,चंडीगढ़ संस्करण,8.7.2010 में मोहाली संवाददाता की रिपोर्ट)।

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