बुधवार, 7 जुलाई 2010

नई तकनीक से स्तन कैंसर पर वार

लंदन, एजेंसी :स्तन कैंसर पर वार करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक खोजने का दावा किया है। उनके अनुसार, नए उपचार के जरिए स्तन कैंसर के रोगियों में ट्यूमर के विकास को धीमा किया जा सकता है। लैंसेट जर्नल के मुताबिक एक अध्ययन में पाया गया है कि इस उपचार ने स्तन कैंसर के 85 फीसदी रोगियों में ट्यूमर के विकास को धीमा किया है। पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय की मुख्य अध्ययनकर्ता सुसान एम डोमचेक ने बताया कि यह पहला मौका है जब हम किसी व्यक्ति में इस रोग के आनुवंशिक कारण को समझने में सक्षम रहे हैं और इसका उपचार किया। जिन मरीजों का नए उपचार के तहत इलाज किया गया उसके बेहद शानदार परिणाम मिले। उन्होंने बताया, ज्यादातर समय हम यह देखने में लगे रहे कि ट्यूमर में खुद ब खुद क्या हो रहा है और तब यह पता लगाया कि इसे कैसे ठीक किया जाए। ऐसी परिस्थिति में सभी महिलाओं के बीआरसीए 1 या बीआरसीए 2 जीन में आनुवांशिक तब्दीली होती है और हम ट्यूमर की इस कमजोरी को उजागर कर सके। डोमचेक ने बताया, यह एक ऐसी रणनीति है जिसका रोगियों पर कम दुष्प्रभाव पड़ सकता है। दरअसल, पीएआरपी और बीआरसीए प्रोटीन डीएनए को दुरुस्त करने के कार्य में शामिल हैं। उन्होंने बताया, यह दवाएं ट्यूमर कोशिकाओं को दुरुस्त करने में बहुत असरदार हो सकती हैं और यह सामान्य कोशिकाओं में अपेक्षाकृत कम नुकसानदेह हैं। कैंसर उपचार के नजरिए से यह बात बेहद महत्वपूर्ण है। इस अध्ययन में 54 रोगियों को दो समूहों में रखा गया। 27 महिलाओं के प्रथम समूह को ओलापारीब की 400 मिलीग्राम की खुराक रोजाना दी गई, जबकि 27 रोगियों के दूसरे समूह को 100 मिलीग्राम ओलापारीब की खुराक रोजाना दो बार दी गई। दवा की अधिक मात्रा में खुराक का रोग पर अधिक असर दिखाई पड़ा। एक मरीज को अपने ट्यूमर से पूरी तरह निजात मिल गई जबकि 10 अन्य मरीजों में ट्यूमर पहले के मुकाबले सिकुड़ कर छोटा हो गया। अन्य 12 महिलओं में बीमारी स्थाई बनी रही या ट्यूमर में नाममात्र की सिकुड़न आई जो मानकों के हिसाब से पर्याप्त नहीं थी। कम खुराक लेने वाले समूह में छह मरीजों के ट्यूमर में सिकुड़न दिखाई दी जबकि अन्य 12 में सिकुड़न बेहद कम या बिल्कुल नहीं दिखाई दी। बहरहाल, डोमचेक ने बताया कि फिलहाल इसकेच्अच्छे नतीजे आए हैं। हालांकि ओलापारीब के नियमित इस्तेमाल में लाने के लिए अभी और अधिक क्लीनिकल परीक्षणों की जरूरत है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,7.7.2010)।

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