नई दवा नीति लागू होने के बाद स्वास्थ्य विभाग को लगातार एक्सपायर हो रही दवाओं से मुक्ति मिल जाएगी। इस नीति में कुछ इस तरह के प्रावधान किए गए हैं कि जरूरत के मुताबिक ही दवाएं खरीदी जा सकेंगी। पहले चरण में करीब दौ सौ अति जरूरी दवाएं ही शामिल की गई हैं। इन दवाओं का अस्तपालों में काफी उपयोग है। और सबसे बड़ी बात यह की दवाओं की खरीदी विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के आधार पर की जाएगी। अधिकांश दवाएं सिविल सर्जन व सीएमएचओ द्वारा खरीदी जाएंगी। सभी सिविल सर्जन व सीएमएचओ अपनी पूर्व खपत व मौसमी बीमारियों में लगने वाली दवाओं का अनुमान लगाकर दवा कंपनी को मांग पत्र भेजेंगे। अव्वल तो यह कि जिला अस्पताल व अन्य अस्पतालों के लिए एक बार में तीन महीने के लिए ही दवा खरीदी जा सकेगी। रोजाना इस्तेमाल में आने वाली इसेंसियल ड्रग सूची में दी गई दवाओं की अस्सी फीसदी खरीदी जिलों में सिविल सर्जन व सीएमएचओ करेंगे। जरूरी होने पर बीस फीसदी दवाएं संचालनालय स्तर पर खरीदी जा सकेंगी। संचालनालय द्वारा खरीदी जा रही दवाओं में उन दवाओं को शामिल किया गया जिनकी पूरे प्रदेश में उपयोगिता है। मसलन रैबीज के इंजेक्शन का इस्तेमाल सभी अस्पतालों में किया जाता है। उपकरणों की खरीद में भी सीएमएचओ व सिविल सर्जन के अधिकार बढ़ा दिए गए हैं। अब उन्हें पांच लाख तक के उपकरण खरीदने के लिए किसी बड़े अधिकारी की अनुमति नहीं लेना पड़ेगी। नई दवा नीति में इस बात का प्रावधान हैं कि सभी रोगों का उपचार मानक उपचार मार्गदर्शिका के अनुसार किया जाएगा और हर दो साल में इसके लिए बनी तकनीकी समिति द्वारा इसे संशोधित किया जाएगा।
समय से दवा नहीं भेजी तो सप्लायर का पैसा कटेगा- सप्लायर को दवा सप्लाई का आदेश मिलने के डेढ़ महीने के भीतर दवाओं व उपकरणों की सप्लाई करना होगी। इससे का बड़ा फायदा यह होगा कि अस्पताल में दवाओं को टोटा नहीं होगा। अगर सप्लायर तय समय में दवाएं नहीं भेजता तो दवा की राशि का दशमलव पांच फीसदी रोजाना के मान से काटा जाएगा। यदि दो महीने बाद भी दवा नहीं भेजी जाती तो शेष बची दवाओं की राशि पर बीस फीसदी के मान से कटौती की जाएगी(दैनिक जागरण,भोपाल,2.7.2010)।
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