मासूम बेटे को इलाज के लिए क्लीनिक लेकर पहुंचे एक पिता को डॉक्टर का रवैया इतना नागवार गुजरा कि उसने खुद की चिकित्सक बनने की ठान ली। 1946 में होम्योपैथी में डिप्लोमा करने के बाद मरीजों का मुफ्त उपचार शुरू किया। चौसठ वर्षो से अनवरत जारी सेवा में गरीबों का यह मसीहा कैंसर, किडनी जैसे असाध्य रोगियों को मिलाकर तीन लाख सत्तर हजार लोगों को मुफ्त चिकित्सकीय सेवा दे चुका हैं। इतना ही नहीं कई मरीजों को कई-कई दिन अपने घर पर रख उनका इलाज करते हैं। 87 वर्षीय इस शख्सियत का नाम है डॉ.वाईआर मोहन। देहरादून के पार्क रोड स्थित आवास में क्लीनिक चलाने वाले डॉ.मोहन की काया भले ही कमजोर हो गई है लेकिन सेवा भाव में कोई कमी नहीं है। उन्होंने बताया कि एक दिन पुत्र की तबियत बिगड़ी तो वह उसे अस्पताल लेकर गए। घंटों इंतजार के बावजूद उसका उपचार नहीं हुआ। डॉक्टर के रवैए ने उसे इतना दुखी किया कि उन्होंने तय कर लिया कि वह चिकित्सकीय शिक्षा हासिल करने के बाद मरीजों की मुफ्त उपचार करेंगे। इसी उद्देश्य से 1946 में होम्योपैथी में डिप्लोमा किया फिर दिल्ली में प्रैक्टिस शुरू कर दी। 1953 में परिवार के साथ देहरादून में बस गए और यहां भी क्लीनिक खोल कर लोगों का इलाज करने लगा। इस काम में पत्नी ओमकुमारी ने उनका पूरा साथ दिया। डा.मोहन की गैरमौजदूगी में वह ही मरीजों को देखती है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,2.7.2010)।
जिद हो तो ऐसी...जो जिंदगी बदल दे...मैं सलाम करता हूँ इनको!!!
जवाब देंहटाएंआश्चर्य आज भी डॉ वाइआर मोहन जैसे लोग हमारे देश में है! सर ! आप जैसे लोगों के कारण ही ये धरती इतनी खूबसूरत है और रहने लायक बनि हुई है.ईश्वर आपको दीर्घ आयु करे ,स्वस्थ रखे,जिससे कई निर्धन,जरुरतमंद लोगों को समय पर चिकित्सा सुविधा मिल सके.आपने धरती पर जन्म लेना सार्थक कर दिया .आप जैसे लोग मेरे रोल मोडल रहे हैं.
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए ब्लोगर महोदय का धन्यवाद