चढ़ते पारे ने पानी का संकट बढ़ा दिया है और पानी के संकट ने पानी के कारोबार को काफी मजबूत कर दिया है। जब सरकारी स्तर पर यह बात आने लगी कि पीने का साफ पानी नहीं मिल सकता है तो पानी के कारोबारियों के मन के हिसाब से माहौल बन गया। इसका नतीजा यह हुआ कि पानी से संबंधित कारोबारों में उफान आने लगा। इनमें सबसे ज्यादा कारोबार बढ़ा बोतलबंद पानी का। इसका कारोबार आज अरबों में पहुंच गया है और दिनोदिन इसमें बढ़ोतरी हो रही है। पर कई वैज्ञानिक अध्ययनों में यह बात साबित हो गई है कि जिन दावों के आधार पर इस कारोबार को खड़ा किया गया है, वे काफी हद तक खोखले हैं। अध्ययनों में यह बात प्रमाणित हुई है कि पानी शुद्ध करने का दावा करने वाली मशीनें काफी हद तक असरहीन हैं। बोतलबंद पानी के मामले में तो और भी भयावह बातें सामने आ रही हैं। कई मामलों में यहां तक कहा गया है कि बोतलबंद पानी सामान्य पानी की तुलना में कहीं ज्यादा खतरनाक है। दरअसल, भारत में इन दोनों कारोबारों के तेजी से बढ़ने की मूल वजह बाजारवाद को माना जा सकता है। भूमंडलीकरण की आंधी भारत में 1991 से नई आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद काफी तेजी से चली और इसने कई स्थापित धारणाओं को धराशायी किया और नई बाजारवादी धारणाएं विकसित कीं। इस बात में तो किसी को कोई संदेह नहीं है कि जल प्रदूषण काफी तेजी से फैल रहा है। सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि शहरी घरों से जितना कचरा निकल रहा है, उसके 80 फीसदी से ज्यादा की निस्तारण की क्षमता भारत के पास नहीं है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक कचरे और भी चिंता बढ़ा रहे हैं। इसमें से ज्यादातर कचरा किसी न किसी तरह से पानी में ही मिल रहा है और जल प्रदूषण काफी तेजी से फैल रहा है। कचरे का निस्तारण नहीं होने की वजह से जमीन के अंदर का पानी भी दूषित हो रहा है। तेजी से बढ़ते जल प्रदूषण को पानी के कारोबारियों ने हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इसी हथियार के बूते लोगों के मन में यह भय बैठाया गया कि जो पानी नल से आ रहा है, वह पीने लायक नहीं है। इसलिए अगर स्वस्थ्य रहना हो तो बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करो। सरकार ने मान लिया कि वह देश के सभी नागरिक को पीने का साफ पानी मुहैया नहीं करा सकती है। खुद सरकार पानी के धंधे में उतर गई। भारतीय रेल ने रेल नीर के नाम से खुद का बोतलबंद पानी बाजार में उतार दिया। जिस भारतीय रेल को सभी स्टेशनों और रेलगाडि़यों में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना चाहिए था, वह भारतीय रेल पीने का पानी बोतल में बंद करके बेचना लगा। जब भारतीय रेल ने बोतलबंद पानी बेचना शुरू कर दिया, उसी वक्त इस बात पर मुहर लग गई कि सरकार की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। यह बात साफ हो गई कि सरकार भारतीय रेल को एक कंपनी मानती है और रेल नीर उसका एक उत्पाद है, जिसके जरिए सरकार ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाती है। जब पैसा कमाना ही मकसद हो जाए तो फिर ग्राहक तैयार करने की कवायद भी कंपनियां करती हैं। ऐसे में जेहन में इस सवाल का उभरना स्वाभाविक है कि क्या भारतीय रेल ने जानबूझ कर पेयजल ढांचा ध्वस्त किया? वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो बोतलबंद पानी का कारोबार खरबों में पहुंच गया है। शुद्धता और स्वच्छता के नाम पर बोतलों में भरकर बेचा जा रहा पानी भी सेहत के लिए खतरनाक है। यह बात कई अध्ययनों में उभरकर सामने आई है। इसके अलावा बोतलबंद पानी के इस्तेमाल के बाद बड़ी संख्या में बोतल कचरे में तब्दील हो रहे हैं और ये पर्यावरण के लिए गंभीर संकट खड़ा कर रहे हैं। अमेरिका की एक संस्था है नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल। इस संस्था ने अपने अध्ययन के आधार पर यह नतीजा निकाला है कि बोतलबंद पानी और साधारण पानी में कोई खास फर्क नहीं है। मिनरल वाटर के नाम पर बेचे जाने वाले बोतलबंद पानी के बोतलों को बनाने के दौरान एक खास रसायन पैथलेट्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल बोतलों को मुलायम बनाने के लिए किया जाता है। इस रसायन का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों, इत्र, खिलौनों आदि के निर्माण में किया जाता है। इसकी वजह से व्यक्ति की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। बोतलबंद पानी के जरिए यह रसायन लोगों के शरीर के अंदर पहुंच रहा है। यह रसायन उस वक्त बोतल के पानी में घुलने लगता है, जब बोतल सामान्य से थोड़ा अधिक तापमान पर रखा जाता है। ऐसी स्थिति में बोतल में से खतरनाक रसायन पानी में मिलते हैं और उसे खतरनाक बनाने का काम करते हैं। अध्ययनों में यह भी बताया गया है कि चलती कार में बोतलबंद पानी नहीं पीना चाहिए। क्योंकि कार में बोतल खोलने पर रासायनिक प्रतिक्ति्रयाएं काफी तेजी से होती हैं और पानी अधिक खतरनाक हो जाता है। बोतल बनाने में एंटीमनी नाम के रसायन का भी इस्तेमाल किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बोतलबंद पानी जितना पुराना होता जाता है, उसमें एंटीमनी की मात्रा उतनी ही बढ़ती जाती है। अगर यह रसायन किसी व्यक्ति की शरीर में जाता है तो उसे जी मचलना, उल्टी और डायरिया जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इससे साफ है कि बोतलबंद पानी शुद्धता और स्वच्छता का दावा चाहे जितना करें, लेकिन वे भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं। बोतलबंद पानी के खतरनाक होने की पुष्टि कैलिफोर्निया के पैसिफिक इंस्टीटयूट के एक अध्ययन से भी होती है। इस संस्थान ने अध्ययन करके यह बताया है कि 1990 से लेकर 2007 के बीच कम से कम एक सौ मौके ऐसे आए, जब बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनियों ने ही अपने उत्पाद को बाजार से हटा लिया। वह भी बगैर उपभोक्ताओं को सूचना दिए। कंपनियों ने ऐसा इसलिए किया कि इन मौकों पर बोतलबंद पानी प्रदूषित था। इसके अलावा बोतलबंद पानी तैयार करने में भारी मात्रा में जल की बर्बादी हो रही है। एक लीटर बोतलबंद पानी तैयार करने में दो लीटर सामान्य पानी खर्च होता है । यानी, एक तरफ तो जल संरक्षण की बात चल रही है और दूसरी तरफ शुद्ध पेयजल तैयार करने के नाम पर पानी की बर्बादी की जा रही है। पानी की बर्बादी शुद्ध पेयजल देने वाली मशीनें भी भारी मात्रा में कर रही हैं। बोतलबंद पानी तैयार करने के नाम पर भूजल का दोहन जमकर किया जा रहा है। इसके बावजूद, जो पानी तैयार हो रहा है, वह स्वच्छ नहीं है(शेखर,दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,2 जून,2010)।
जनसंख्या नियंत्रण का गुप्त अजेंडा . आज हर गरीब आदमी एक प्लास्टिक की न जाने कितनी पुरानी बोतल लिए घूम रहा है उसे क्या पता वह एक धीमा जहर पी रहा है . गरीबी हटाओ, कैसे, गरीब को हटा दो .
जवाब देंहटाएं