बुधवार, 30 जून 2010

गोत्र की नहीं, मेडिकल चेकअप की जरूरत

एक ही गोत्र में शादी पर प्रतिबंध लगाने से अदालत ने भले मना कर दिया हो लेकिन इससे उन इलाकों में बसी सामाजिक सोच में बदलाव आने की उम्मीदें कम ही हैं जहां समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं। शादी के पहले गोत्र मिलान को लेकर और भी सावधानी बरती जाएगी यह तय है। गोत्र में यकीन करना अंधविश्वास है। एक ही गोत्र में शादी करने पर अगर संतानों की सेहत पर बुरा असर होता है, यह माना भी जाए तो हिंदू समुदाय इतना विशाल है कि इसमें जीन की अदला-बदली की कोई आशंका नहीं। हिंदू विवाह कानून में माता-पिता की पांच से सात पीढ़ियों तक शादी पहले से ही वर्जित है। इसके बावजूद इसमें अगर संशोधन की बात की जा रही है तो इसे वाजिब नहीं कहा जा सकता। खैर इस बिंदु पर लंबी बात हो चुकी है। अगर नहीं हो रही है तो विवाह-पूर्व मेडिकल चेकअप की। खासकर इस बिंदु के आलोक में कि जोड़े में जीन की अदला-बदली की आशंका कितनी है। ऐसा करने से बच्चों में थैलीसीमिया, हीमोफीलिया, कोएलिक या हीमोग्लोबीनोपैथी की आशंका का पता चल सकेगा और इन रोगों को नियंत्रित किया जा सकेगा। जन्मकुंडली की जगह अगर रक्त कुंडली की जांच विवाह-पूर्व हो तो कई आनुवंशिक बीमारियों से बचा जा सकता है। फिर एड्स जैसी बीमारियों का प्रसार भी इससे काफी हद तक रुक सकता है। गौर करने वाली बात है कि एक सीमा के बाद आनुवंशिक बीमारियों का इलाज संभव नहीं हो पाता इसलिए ऐसे व्यक्तियों के बीच विवाह संबंध स्थापित होने को रोकना ही बेहतर होता है जिनमें दोनों में एक ही प्रकार का जीन मौजूद होता है। रक्त में मौजूद आरएच फैक्टर की जांच कर कई समस्याओं से निपटा जा सकता है। आरएच निगेटिव स्त्रियों के पति अगर आरएच पॉजिटिव हों तो ऐसे दंपति के बच्चे बड़ी परेशानियां पैदा करते हैं। थैलीसीमिया जैसे रोग की जिससे आज प्रतिवर्ष हजारों बच्चे मरते हैं, खत्म करने का एकमात्र उपाय विवाह-पूर्व मेडिकल चेकअप है। दरअसल, हमारे शरीर में २३ जोड़े यानी ४६ क्रोमोजोम रहते हैं। इनमे से अगर एक जीन दोषयुक्त हो तो जोड़े का सामान्य जीन यह त्रुटि सामने आने नहीं देता और न ही इससे कोई नुकसान होता है। ऐसे जीन को रिग्रेसिव और पीड़ित को साइलैंट कैरियर कहते हैं। अगर पति-पत्नी दोनों साइनेंट कैरियर हों तो इनके बच्चों को थैलीसीमिया होने की आशंका २५ फीसद तक होती है। साफ है कि विवाह-पूर्व चेकअप द्वारा ऐसी स्थिति आने से आसानी से बचा जा सकता है। आज डायबिटीज और कैंसर पीड़ितों की एक बड़ी आबादी आनुवंशिक कारणों से प्रभावित है। चिकित्सकों को कहना है कि अगर माता-पिता दोनों के वंशवृक्ष में ऐसी बीमारियों के जीन मौजूद रहे हैं तो अगली पीढ़ी को इन रोगों के होने की आशंका बढ़ जाती है(प्रवीण कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,30.6.2010)।

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