सदाबहार व नयनतारा नाम से लोकप्रिय यह फूल न केवल सुन्दर और आकर्षक है,बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर माना गया है। इसे कई देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पूरे भारत और संभवत: एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका महाद्वीपों में पाया जाने वाला यह अत्यंत दृढ़ प्रकृति व क्षमता वाला पौधा है, जो खूब मजे से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में खिलता व लोकप्रिय है। वैसे इसका वानस्पतिक नाम पेरी-विकल व विकां है। उत्तरी भारत में इसे एक अत्यंत सही नाम मिला है सदाबहार व नयनतारा।
विकां का वर्णन ब्रिटेन औषधीय शास्त्र में सातवीं शताब्दी में मिलता है। कल्पचर नामक ब्रिटिश औषधी विशेषज्ञ ने मुंह व नाक से रक्तस्नव होने पर इसके प्रयोग की सलाह दी है। लॉर्ड बेकन ने भी अंगों की जकड़न में इसका प्रयोग बताया। वैसे स्कर्वी, अतिसार, गले में दर्द, टांसिल्स में सूजन, रक्तस्नव आदि
रोगों में इसके प्रयोग के विषय में लिखा है। भारत में प्राकृतिक चिकित्सक मधुमेह रोगियों को इसके श्वेत फूल का प्रयोग सुबह खाली पेट करने की सलाह देते हैं। फूल अपनी विशेषता व सुंदरता के लिए लोकप्रिय है तो औषधीय महत्त्व को लेकर इस पर शोध होना चाहिए अन्यथा सदाबहार सदाबहार ही। कठिन शीत के कुछ दिनों को छोड़कर यह पूरे वर्ष खूब खिलता है। यूरोपीय साहित्य में इसका वर्णन चॉसर ही नहीं, सातवीं सदी की औषधीय पुस्तकों में भी मिलता है। फ्रांस में इसे वजिर्न फ्लावर व इटली में फ्लावर ऑफ डेथ कहा जाता है। इटली में मृत बच्चों के कफन पर इसकी मालाएं रखी जाती थीं। इसका एक नाम सार्कर्स वायलेट भी कहा गया, क्योंकि जादू-टोने में विश्वास रखनेवाले इससे तरह-तरह के विष व रसायन बनाते थे। अमेरिका में इसे रनिंग मर्टिल व कॉमन पेरीविन्कल भी कहते हैं। ब्रिटेन के प्रसिद्ध हॉर्टीकल्चरिस्ट ई.ए. बाउल्स ने ला ग्रेव नामक स्थान पर रेलवे स्टेशन के पास एक अत्यंत आकर्षक पुष्प देखा तो छाते के हैंडिल से तोड़ लिया व ब्रिटेन में लाकर लगा दिया। उनके द्वारा लाई यही आकर्षक किस्म ला-ग्रेव व बाउल्स नाम से प्रसिद्ध हुई।
यह पौधा अपोनसाईनसियाई परिवार का है और कनेर, प्लूमेरिया फ्रैंगीपानी, सप्तपर्णीय करौंदा, ट्रेक्लोस्पमर्म, ब्यूमेन्शया ग्रैन्डीफ्लोरा, एलामंडाकथार्टिका जैसे अत्यंत भव्य लोकप्रिय झाड़ियां, वृक्ष व लताएं इसी परिवार से संबंधित हैं। इस परिवार के पौधों की विशेषता इसे तोड़ने पर उसमें से बहने वाला श्वेत चिपचिपा गाढ़ा लेसदार तरल पदार्थ है। द्वितीय महायुद्ध में रबड़ के जंगल जब शत्रु देशों के हाथ में पहुंच गए तो इनसे ही नकली रबड़ मित्रों ने बनायी थी।
सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा जमने पर उसके आसपास अन्य पौधे अपने आप उगते जाते हैं। पांच पंखुड़ियों वाला पुष्प श्वेत, गुलाबी, फालसाई, जामुनी आदि रंगों में खिलता है। पत्ते व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फैलता है। इसके इन्हीं गुण के कारण पुष्प प्रेमियों ने इसका नाम नयन तारा या सदाबहार रखा। फूल तोड़कर रख देने पर भी पूरा दिन ताजा रहता है। मंदिरों में पूजा पर चढ़ाए जाने में इसका उपयोग खूब होता है(प्रतिभा आर्य, हिंदुस्तान,दिल्ली,28.6.2010)।
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