मंगलवार, 29 जून 2010

स्वास्थ्य की हालत बिगड़ रही है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालत दिनोदिन सुधर रही है

विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत कार्यरत एक संगठन है जिसका संविधान कहता है कि इसका लक्ष्य स्वास्थ्य के सर्वोच्च संभव स्तर पर लोगों को लाना है। खासतौर पर इसका काम संक्रामक रोगों से लड़ना है तथा विश्वभर के लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को बढ़ाने में अपना योगदान देना है। संयोग है कि इसका जब ७ अप्रैल, १९४८ को गठन हुआ था तो इसके सिर्फ २६ देश सदस्य थे, जिसमें भारत भी एक था। इतना ही नहीं भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सुझाव पर ही इस संगठन का गठन किया गया था। लेकिन नेहरूजी का सपना साकार नहीं हो सका और आज यह संगठन विश्व के धनीमानी देशों, उनके अमीर दानदाताओं और दवा कंपनियों के कब्जे में पूरी तरह जा चुका है। इसके माध्यम से ये देश तथा अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियां अपने हित साध रही हैं। यह संगठन किस तरह दुनिया के अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों के कब्जे में आ चुका है, इस बात का पता इस वर्ष के शुरू में ज्यादा चला, जब यह जानकारी सार्वजनिक हुई कि जिस स्वाइन फ्लू की महामारी का खतरा इस संगठन ने दिखाया था, वह इतना बड़ा नहीं था, जितना बड़ा करके उसे दिखाया गया। इसका असली उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों के लिए जल्दी से जल्दी मुनाफा बटोरने का अवसर देने के सिवाय कुछ न था। इस संस्था पर अमेरिका तथा विकसित देशों का पूरा कब्जा है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि एक देश के रूप में इसका सबसे बड़ा दानदाता अमेरिका है और प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में अमेरिका से भी बड़ा दानदाता सूचना तकनालाजी के शहंशाह समझे जाने वाले अमेरिका के बिल गेट्स हैं। उन्होंने अपने फाउंडेशन के माध्यम से तथा अन्य कई संगठनों के जरिए- जिन्हें वह मोटा चंदा देते हैं- विश्व स्वास्थ्य संगठन की नीतियों तथा कार्यक्रमों पर कब्जा कर रखा है। इस संगठन पर दवा कंपनियों का भी कब्जा है जिन्होंने १२ करोड़ डॉलर की राशि इस संगठन को दी है। जाहिर है कि जो मोटा चंदा देते हैं, वे किसी भी संगठन को अपने हितों की दिशा में ले जाने की क्षमता भी रखते हैं और आज इसके निर्णय "वर्ल्ड हैल्थ असेंबली" नहीं बल्कि ये दानदाता लेते हैं। कोई भी समझ सकता है कि इस संगठन को इतना अधिक दान दरअसल किस लिए दिया जाता है। इसलिए दुनिया में स्वास्थ्य की हालत बिगड़ रही है लेकिन संगठन की हालत दिनोदिन सुधर रही है(Editorial,Nai Dunia,Delhi,29.6.2010)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही विश्लेषण किया है आपने. इस तरह की संस्थाओं का यही हाल हो गया है.

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  2. प्रत्‍येक संगठन मुनाफा कम्‍पनी बन गये है। पता नहीं पैसे की भूख कभी खत्‍म क्‍यों नहीं होती?

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